"अब क्या हो गया तुमको....किस चिंता में बैठी हो ....सब ठीक तो है...."
"अब क्या बताऊं तुमको.....आज फिर उसके यहां झगड़ा हो गया....अभी थोड़ी देर पहले ही उसका फोन आया था....खैर तुम अभी अभी दफ्तर से आए हो पहले आराम से चाय नाश्ता कर लो...."कहते हुए मीनू ने अपनी बहू से चाय नाश्ता लाने के लिए बोल दिया।
"अरे वाह आज इतनी जल्दी चाय नाश्ता....लगता है आज फिर नैना के यहां जाने को तैयार बैठी हो....." विनोद बाबू ने कुछ सोचते हुए कहा।
"और क्या करूं तो....मुझे तो नैना की बड़ी चिंता हो रही है....अभी सालभर भी नहीं हुआ शादी को और अभी से ये हाल है आगे पता नहीं क्या होगा बेचारी का....अब आप जल्दी से चाय नाश्ता करके जल्दी तैयार हो जाइए....फिर चलते हैं....अब उसे उसके हाल पर ऐसे ही थोड़े छोड़ सकते हैं, और उस पर भी तब जब उसका फोन आया है...कितना परेशान हो रही होगी बेचारी.....आखिर विवाह किया है कोई संबंध थोड़े ही खत्म कर दिए कि वो चाहे जैसा व्यवहार करें और हम देखते रहें आखिर बेटी है हमारी....." मीनू गुस्से से बड़बड़ाती जा रही थी।
"देखो मीनू मैंने तुमसे पहले भी कहा था और अब भी कह रहा हूं कि माना कि वो हमारी बेटी है लेकिन तुम खुद ही सोचो कि हम अगर ऐसे ही बार बार वहां जाते रहे तो उसके ससुराल वालों को कैसा लगेगा और फिर अभी विवाह को कुछ ही समय हुआ है....अब नई जगह, नए परिवार में नए लोगों के साथ सामंजस्य बिठाने में कुछ तो समय लगता ही है....इसके लिए एक दूसरे को समझना भी पड़ता है.....मैं मानता हूं कि तुम मां हो उसकी तो तुम्हे उसकी चिंता होती है लेकिन उसे उसके परिवारजनों को समझने का समय तो दो उसे अपनी जिंदगी के उतार चढ़ाव को समझने, उनसे उबरने और जिंदगी को उसके ढंग से जीने का अवसर दो ....वरना अभी तो हम हैं परंतु आगे तो उसी को जिंदगी जीनी है.... हम कब तक उसकी ऐसी छोटी छोटी समस्याओं को हल करते रहेंगे और वो भी वो समस्याएं जो कि वास्तव में हैं ही नहीं...."
विनोद बाबू की इन बातों पर मीनू उन्हें अवाक सी देखती रह गई....
"ऐसे क्या देख रही हो मुझे....सही तो कह रहा हूं ....अब तुम बताओ जब तुम हमारे घर आईं थीं तब तुमको भी तो शुरू शुरू में परेशानी हुई थी न लेकिन धीरे धीरे सब सही हो गया और अब जब हमारी बहू आई तब भी वही समस्या थी लेकिन धीरे धीरे वह हमारे स्वभाव को और हम उसके स्वभाव को समझ गए और अब देखो सब सही हो गया .. लगता ही नहीं कि यह वही बहू है जिसको हमसे या हमको उससे ढेरों शिकायतें रहती थीं .....अब तुम्हीं बताओ कि अगर तुम्हारे मायके वाले या बहू के मायके वाले ऐसा ही व्यवहार करते जैसा तुम नैना के साथ कर रही हो तो क्या तुम और बहू अपना घर संसार बसा पातीं या अपने जीवन में खुश रह पातीं.... नहीं न....इसीलिए कह रहा हूं कि नैना को भी थोड़ा समय दो जिससे वह अपने परिवार को समझ सके और वह लोग भी उसे समझ सकें....मैं जानता हूं कि तुम उसकी मां हो इसलिए चिंता होती है लेकिन मैं भी तो उसका पिता हूं मुझे उसके भविष्य की चिंता होती है....वह यहां सबकी लाडली रही है उसके हर तरह के नाज नखरे हम सबने उठाए हैं लेकिन जरूरी नहीं कि सब जगह ऐसे ही चल जाएगा....सबके रहन सहन का तरीका अलग होता है, सबकी परिस्थितियां अलग होती हैं....पहले जब एक दो बार उसके परिवार में कहा सुनी हुई तब हम उसे समझा बुझाकर वापिस आ गए थे और पिछली बार तो वो हमारे साथ ही आ गई और पूरे एक महीने के बाद गई वो भी दामाद जी के इतनी खुशामद करने के बाद....अब थोड़ी थोड़ी कहासुनी पर ऐसे ही नाराज होकर यहां आती रही तो कहीं ऐसा न हो कि रिश्तों में खटास ही आ जाए...इसलिए कह रहा हूं कि ज्यादा हस्तक्षेप न करके अपनी और अपनी बहू की तरह बिटिया के घर को भी बसने दो..."
"तो अब आप ही बताइए मैं क्या करूं....उसे ऐसे ही उसके हालात पर छोड़ दूं! .. मुझसे तो उसका रोना देखा नहीं जाता...."
"देखो मीनू थोड़ा अपने दिल को समझाओ और जैसे मैं कह रहा हूं वैसे करो....फिलहाल तुम उसके पास फोन करके कह देना कि तेरे पापा अभी आए हैं और उनकी तबियत भी ठीक नहीं है इसलिए हम एक दो दिन में आ जायेगे या फिर दामाद जी से कह देंगे वो तुमको कुछ दिन के लिए यहां छोड़ जाएंगे...."
मीनू ने विनोद बाबू के कहने के अनुसार अपनी बेटी नैना के पास फोन कर दिया और उसे इसी प्रकार समझा दिया।
दूसरे दिन विनोद बाबू ने दामाद जी को भी कॉल करके नैना को उनके यहां छोड़ने के लिए मना लिया।
"मां आपने और पापा ने तो मुझे बिल्कुल ही पराया कर दिया....मैं उस दिन कितना परेशान थी लेकिन आपको तो जैसे मेरी कोई चिंता है ही नहीं ....वहां आपकी बेटी कैसे भी रहे आपको तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता...." नैना ने 2 दिन बाद आकर दुखी होते हुए शिकायत भरे लहजे में कहा।
" अरे ऐसे कैसे बोल रही है ....अगर फर्क नहीं पड़ता तो क्या हम दामाद जी से कहकर तुझे यहां बुलवा लेते..... अब उस दिन की तुझे क्या बताऊं..... मैं तो तैयार हो गई थी कि जैसे ही तेरे पापा आयेंगे तब हम दोनों चलेंगे लेकिन अचानक तबियत खराब हो गई और तेरी भाभी भी कुछ दिन पहले ही मायके गई है तो सारा काम मुझे ही करना पड़ता है तो मुझे भी थकान सी रहने लगी है...."
"क्या?.... भाभी घर पर नहीं है....ये क्या ...जहां पापा की तबियत ठीक नहीं है और आपको भी परेशानी हो रही है तो कम से कम उन्हें अब तो आ जाना चाहिए था.....कब आएंगी वो....?
"अब क्या बताऊं कुछ दिन पहले ड्यूटी से राहुल घर आया था न कुछ दिन के लिए तभी उन दोनों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया था जिससे वह गुस्सा होकर मायके चली गई....खैर कोई बात नहीं अब तू आ ही गई है तो अब ज्यादा परेशानी नहीं होगी....तेरे से बहुत मदद हो जाएगी मुझे...."
"मदद तो हो जाएगी लेकिन भाभी की बात अलग है जितना भाभी काम करती हैं उतना मुझसे तो होगा नहीं....वहां ससुराल में भी करो और फिर अब यहां आकर भी ....."नैना मुंह बनाते हुए बोली।
"वैसे भाभी की ये बात गलत है....मतलब झगड़ा हो गया तो घर चली गईं जैसे कि वहीं रहने से उनकी जिंदगी कट जाएगी....अब यहां पापा की तबियत खराब है तो उन्हें यहां आ जाना चाहिए था...."
"बेटा यही बात हम तुझे समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि छोटी छोटी बातों को लेकर ऐसे झगड़ा नहीं करना चाहिए.....तुम्हे उन्हें समय देना चाहिए जिससे तुम उन्हें और वो लोग तुम्हें समझ सकें ....तुम्हीं सोचो कि मुझमें और तुम्हारी मम्मी में भी तो कभी कभी झगड़ा होता है और तुम्हारी भाभी और भैया में या फिर भाभी और मम्मी में कभी कभी झगड़ा होता है तो क्या कोई घर छोड़कर गया है ....सभी प्रेम से रहते हैं......अब तुम्हें अपनी भाभी को लेकर इतना बुरा लग रहा है कि क्यों चली गईं तो सोचो कि तुम्हारे ससुराल वालों को कितना बुरा लगता होगा उस पर भी तब जब तुम हमारे पास फोन करके हमें बुलाती हो और हमारे साथ आने की कहती हो .....और तो और एक दो बार आ भी गई हो.....अब फिर से यही कर रही थी.....अगर कोई समस्या है भी तो उसे परिवार में रहकर सुलझाने का प्रयास करना चाहिए.....समस्याओं से भागना कोई समस्या का समाधान थोड़े ही है और अगर फिर भी कोई समस्या हुई तो हम हैं ही...." इस बार विनोद बाबू ने नैना को समझाने का प्रयास किया।
"शायद आप ठीक कह रहे हो...." नैना ने धीरे से कहा।
"शायद नहीं, तेरे पापा बिल्कुल ठीक कह रहे हैं....और हां तेरी भाभी कहीं नहीं गई है ऊपर है अपने कमरे में जाकर मिल ले....हमने ही मना किया था आज उसे नीचे आने के लिए जिससे तुझे कुछ समझ आ सके...." कहते हुए मीनू मुस्कुरा दी
"ठीक है मां मैं अभी भाभी से मिलकर आती हूं और फिर तुषार के पास भी तो फोन करना है कि मुझे कब लेने आ रहे हैं...."
"अरे वाह मेरी बेटी तो अभी से समझदार हो गई....चलो अच्छा हुआ कि कुछ तो समझ आ गया....और हां फोन करने की जरूरत नहीं है आज शाम को ही लेने आ जाएंगे तुझे.....तब तक तू आराम कर ले....और ले तेरी भाभी भी नीचे आ गई आखिर उसकी ननद जो आई है...."
"अच्छा तो इसका मतलब सब मिले हुए हैं यहां भाभी तो भाभी आपने तुषार को भी अपने प्लान में शामिल कर लिया....वाह क्या बात है...."जैसे ही नैना ने कहा सब खिलखिला कर हंस पड़े।
प्रतिभा भारद्वाज‘प्रभा’