सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग2) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

.काफी देर तक दोनों साथ बैठे रबींद्रसंगीत का आनंद उठाते रहे। फिर थोडी देर इधर-उधर चहलकदमी कर सुमित के साथ नमिता अपनी सहेलियों के बीच आ गई और सभी बातचीत में व्यस्त हो गये। नमिता की सहेलियों ने सुमित को सोनाझुरी का अपना पूरा प्लान बताया और अपने साथ घूमने के लिए आमंत्रित किया। बडी विनम्रता से सुमित ने उन्हे टालने का प्रयास किया। हालांकि बार-बार निवेदन करने पर उसे हामी भरनी पड़ी।

अबतक रात के दस बज चुके थे और सबों के पेट में चुहों ने अपना आलाप मचाना शुरु कर दिया था। फिर सभी साथ ही रिसॉर्ट के भीतर बने रेस्टुरेंट की तरफ बढने लगे। नमिता ने सुमित को बताया कि वे जिस रिसॉर्ट में ठहरे हैं, उसका रेस्टुरेंट बेंगॉली व्यंजन के लिए काफी प्रसिद्ध है। बातचीत करते सभी रेस्टुरेंट के भीतर पहुंचे।

वह रेस्टुरेंट भी मानो भारतीय सभ्यता-संस्कृति और प्रकृति के संगम की अदभुत मिसाल पेश कर रहा था। वह एक बडा-सा हॉल था, जिसकी दीवारे लाल मिट्टी से रंगी थी। उन दीवारों पर कहीं हाथों से बनी चित्रकारी उंकेरी थी जिनमें गांव का परिदृश्य दिखाया हुआ था, तो कहीं कबीगुरु और इकतारे को दर्शाया गया था। समूचा रेस्टुरेंट मोटे-मोटे लकडी के खम्भों पर टिका था, जिसका छत फुस और खपडों से बडे ही सुंदर तरीके से मढा हुआ था। वह समूचा रेस्टुरेंट चारो तरफ टंगे लालटेन की रोशनी से नहाया हुआ था, जहाँ रात्रि भोजन कर रहे लोगों के कांसे की थाली में परोसे व्यंजन और अभी-अभी हुई हल्की बारिश से लिपटी लाल मिट्टी की सोंधी खुशबू सबों के मन-मस्तिस्क पर अमिट छाप छोड़ रहे थे। 

बंगाली व्यंजन जो सामान्य होने के बावजूद भी काफी समृद्धशाली रहा है, हमेशा से ही सुमित का पसंदीदा था। फिर बेंगॉली भोजन को खाने का भी अपना एक अलग ही अंदाज़ होता है। ये सारी बातें सदा से ही सुमित के दिल के काफी करीब थी, तभी तो शहर के चकाचौंध से दूर वह प्रकृति और संस्कृति के अद्भुत संगम वाले इस प्रदेश में खींचा चला आया था। मेन्यू कार्ड का इंतज़ार किए बगैर उसने बंगाली थाली और माछेर झोल ऑर्डर कर दिया।

तभी अपने परिवार के साथ भोजन कर रही कुछ भद्र महिलाएं भावविहोर होकर रबींद्रसंगीत के सुरीले बोल गुनगुनाने लगी, जिसपर वहाँ बैठे कुछ स्त्री-पुरुष तथा नमिता की सहेलियों के कदम थिरकने पर मजबूर हो गये। उस वक़्त पूरा रेस्टुरेंट जैसे भारत की धनाढ्य संस्कृति का एक जीता-जागता मिसाल बना था, जिसने माहौल को खुशगंवार बना बना दिया था।

इशारे से नमिता की सहेलियों ने सुमित को भी अपने साथ नृत्य के लिए आमंत्रित किया। पर दर्शक बनकर उन्हे देखना ही सुमित को ज्यादा अच्छा लगा और मुस्कुराकर बडी शालीनता से उसने उन्हे मना कर दिया। रेस्टुरेंट के दूसरे छोर पर बैठी नमिता भी उनके नृत्य का लुत्फ उठा रही थी। सुमित को अकेला बैठा देख उसे कम्पनी देने के लिए वह भी उसके पास ही आकर बैठ गई। अब दोनों एकसाथ उस सांस्कृत्य समृध्य दृश्य का आनंद उठा रहे थे। 

“आपकी कल की क्या प्लानिंग है?”- नमिता ने मुस्कुराते हुए अपने सामने बैठे सुमित से पुछा।

“अभी ज्यादा कुछ सोचा नहीं!”- सामने चल रहे नृत्य से अपनी नज़र हटाकर नमिता पर टिकाते हुए सुमित बोला। 

“कल शनिवार है और यहाँ पूरे इलाके में हाट लगेगा। सुना है इस हाट में हाथों से बने एक से एक सामान और कपडे मिलते हैं। हम सारी सहेलियों का तो जमके खरीददारी करने का इरादा है।”- अपनी उत्सुकता जाहिर करते हुए नमिता ने कहा। चेहरे पर मुस्कान लिए सुमित उसकी बाते बडे गौर से सुनता रहा।

“मुझे तो यहाँ की वादियों में आकर बड़ा सुकून मिला। मैने तो कल सुबह-सुबह ही आसपास के इलाकों में घूमने का मन बना रखा है।”- अपनी आंखें चौडी करते हुए सुमित ने कहा।  

“वाओ! आपने तो मेरे मन की बात कह डाली! प्लीज़ सुमित जी, मेरा आपसे रिक़्वेसट है कि जब आप सुबह में ठहलने जायें तो मुझे भी साथ ले ले। वो क्या है न कि मेरी सहेलियां बडी आलसी किस्म की और देर तक सोने वालों में से हैं। सुबह-सुबह ठहलने की बात सुनकर उन सबने तो अपने हाथ खडे कर लिये। हुह…खुद तो जाएंगी नहीं और उनकी नींद खराब ना हो, इसलिए मुझे भी जाने से मना कर ही रही थी! कहती हैं तुझे चोट लगी है, अभी आराम कर! अब आप ही बताइए, मैं यहाँ घुमने आयी हूँ या चादर तानकर सोने!!!”- नमिता ने अपने मन के भीतर के बच्चे को बाहर निकालते हुए कहा, जो सोनाझुरी की वादियों में आकर खुद को खुला छोड देना चाहता था।

“वैसे वे सब गलत नहीं हैं। सही ही कह रही हैं। आपके चोट हरे हैं और आपको इनका ख्याल रखना चाहिए।”- सुमित ने नमिता के हाथो की तरफ इशारा करते हुए कहा, जिसे सुनकर वह कुढ गई।  

“मुझे वो सब कुछ नहीं पता! आप बस चुप रहिए और जल्दी से अपना कॉन्टैक्ट नंबर मुझे दीजिए ताकि मैं सुबह-सुबह फोन करके आपको परेशान कर सकुं! नही तो पता चला कि आप मुझे छोड़कर अकेले ही इन वादियों की सैर पर निकल पड़े!!” – नमिता ने भौवें चढाते हुए कहा और अपना कंधा उचकाया। उसकी बातें सुन सुमित के चेहरे पर दबी हुई मुस्कान बिखर आई और फिर दोनो में अपना मोबाइल नंबर एक्सचेंज़ किया।

अब खाने की बारी थी। सुमित के कहने पर वेटर ने नमिता का खाना भी उसी के साथ एक ही टेबल पर लगा दिया। समूचा खाना कांसे की थाली में परोसा गया था। चा(व)ल-दाल, आलूभाजा, बैंगनभाजा, आलू-पोस्तो, पॉपोड, रुही माछ (रेहू मछली), लोटे माछ(एक तरह की मछली), सलाद और सबका पसंदीदा रॉसोगुल्ला। बंगाली व्यंजन देख सुमित के आंखें फैल गई। थाली को निहारते सुमित को देख पास बैठी नमिता मुस्कुरा रही थी।

“ऐसे क्या देख रहे हैं! ये थाली देखने के लिए नहीं, खाने के लिए ही लगाया गया है।”- नमिता ने मुस्कुराते हुए कहा।

“हम्म…वो तो मैं भी समझ रहा हूँ! पर इतने परम्परागत तरीके से परोसा गया बंगाली व्यंजन, वो भी कांसे की थाली में अब विरलै ही नसीब होता है।”- सुमित ने मुस्कुराते हुए कहा।

दरअसल सुमित की पैदाईश पटना में हुई थी और अपने माता-पिता के साथ रहकर उसने अपनी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं पूरी की। बचपन से ही भारतीय संस्कृति और प्रकृति उसे अपनी तरफ आकर्षित करते रहे थे। फिर बंगाल तो समूचे भारत में संस्कृति का गढ रहा है। कोलकाता में नौकरी लगने के बाद से वह पिछले कई वर्षों से वहीं रह रहा था। छुट्टियों में अक्सर वह शांतिनिकेतन आया करता, जहाँ उसे अजीब-सी शांति की अनुभूति होती थी।

सामने रखी थाली से ज्यों ही सुमित ने पहला निवाला उठाया, नमिता ने आंखे दिखाकर उसका हाथ थाम लिया। फिर जब समझ में आया कि वह क्या कर रही है तो असहज होकर अपने हाथ पीछे खींच लिये।

“क्या हुआ! खाने में कुछ कमी है क्या? मुझे रोक क्यूं दिया!”- सुमित ने नमिता की तरफ देखकर कहा, जिसकी निगाहें अभी भी सुमित की थाली पर टिकी थी।

“नहीं, खाने में कोई कमी नहीं हैं।” – नमिता ने अपना सिर हिलाकर कहा।

“तो फिर! मेरा हाथ क्यूं थामा?”- सुमित ने भौवें सिकोडकर पुछा।

“थामती नहीं तो और क्या करती! इतने शिष्टता से परोसे खाने का अपमान होते देखती!”- नमिता ने भी भौवें सिकोडते हुए जवाब दिया।

“अपमान?? किसने किया अपमान!” – सुमित के कंठ की घंटी उछली।

“आपने और किसने! बंगाली व्यंजनो को खाने का भी अपना शिष्टाचार है और आप, जैसे मन आया वैसे ही खाने लगे!!”- नमिता ने शिकायत भरे लहजे में कहा।

उसकी बातें सुन सुमित मुस्कुराता हुआ बोला- “तो फिर आप ही बता दें कि इसे खाते कैसे हैं?”

“देखिए, भोजन जब इतनी भद्रता से परोसा जाये तो उसे खाने का तरीका भी बडा भद्र होना चाहिए। अब मैं जैसे-जैसे खाउंगी, आप भी मुझे देखकर वैसे ही करने का प्रयास करें। पहले थोड़े से चावल में आलूभाजा मिलाया और उसे खाये। फिर आलू-पोस्तो के साथ चावल का कोर। उसके बाद माछेर झोल की थोड़ी सी माछ ली और उसे चावल के साथ मिलाकर खाया। फिर लोटे माछ के साथ। और सबसे अंत में यह रॉसोगुल्ला।”- नमिता के कहने पर सुमित ने आज बंगाली व्यंजन का बंगाली तरीके से ही लुत्फ उठाया और यह अंदाज़ उसके दिल को भा गया। एक तो पहले से तो वह बांग्ला रहन-सहन का कायल था। ऊपर से खाने के इस अलग शिष्टाचार ने उसे अपना फैन ही बना लिया था।

खाना खत्म कर थोडी देर नमिता और उसकी सहेलियों के साथ बातचीत करने के बाद सुमित अपने कमरे की तरफ बढा। जाते-जाते भी नमिता ने इशारे से सुमित को अगली सुबह अपने साथ ले जाने की बात याद दिलायी।

कमरे में आते ही सुमित बिस्तर के हवाले हो गया और मीठी नींद का आनंद लेने लगा।

***

सुबह के पांच बजे। बिस्तर पर लेटा सुमित गहरी नींद में डूबा था जब उसका मोबाइल घनघनाया।

आंखें बंद किए ही मोबाइल रिसीव कर कानों से लगाया तो दूसरे तरफ से नमिता की आवाज़ आयी- “गुड मॉर्निंग, सुमित जी! चलना नही है क्या? जल्दी से तैयार होकर नीचे आइए। मैने होटल वाले को दो कप चाय का ऑर्डर दे दिया है। फटाफट आइए, फिर चाय पीकर टहलने चलेंगे। हैलो…सुमित जी? आप सुन रहें हैं न मैं क्या कह रही हूँ? उठिए, उठिए!!”

“ह्म्म…ठीक है। मैं बस दस मिनट में आया।”- उंघते हुए सुमित ने कहा और मोबाइल कट कर बिस्तर के दुसरी तरफ सरका दिया। फिर उठा और फ्रेश होकर कमरे से बाहर निकल आया, जहाँ दूर से ही नमिता रिसॉर्ट के बाहर सोनाझुरी पेड के नीचे बैठी ठंडी हवा खाती दिखी।

“गुड मॉर्निंग, सुमित जी!”- नमिता ने मुस्कुराते हुए अपनी तरफ आते सुमित से कहा।

“गुड मॉर्निंग! लगता है, आप बहुत सुबह उठ जाती हैं!”

“क्यूं! मैंने आपकी नींद खराब कर दी क्या?”

“अरे नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं! मैं भी उठने ही वाला था जब आपने फोन किया। पर आप तो मुझसे भी पहले उठ गई!”

“हाँ तो उठती नहीं तो और क्या करती! कमरे में बंद रहकर इतना सुंदर मौका हाथ से निकल जाने देती! जरा यहाँ आसपास चारो तरफ नज़र दौडाकर देखिए- ये हल्की ठंडा हवा, यहाँ बिखरी शांति, चारो तरफ फैली हरियाली मन को कितना सुकून पहुंचा रहे हैं।”- दूर-दूर तक नज़र दौडाकर नमिता ने कहा। उसकी आंखे जैसे इस पूरे दृश्य को अपने भीतर क़ैद कर लेना चाहती थी।

तभी एक लडका गरम चाय से भरा मिट्टी का दो प्याला लेकर आया और उनकी तरफ बढा दिया। चाय की चुस्की लगाने के बाद दोनों टहलने के लिए निकल पडें।

उगते सूरज की लालिमा, चिड़ियों की चहचहाहट, पास से गुजरती बैलगाड़ी और बैलों के गले में लटकी घण्टियों से आती टन्न-टन्न की आवाज़ – एक अविस्मरणीय दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। उस क्षण को अपने स्मरण में कैद करते हुए वे दोनों सोनाझुरी पेडों और हर तरफ फैली लाल मिट्टी की उन वादियों में चहलकदमी करने लगे। ठहलते हुए कई बार नमिता के हाथ सुमित से टकराते और वह सिहर उठती। फिर दूर हटती हुई वह सोनाझुरी के पत्तों के बीच से झांकते सुरज की लालिमा पर अपनी नज़रें टिकाने का दुस्साहस करती दिखती। दरअसल सुमित से मिलने के बाद और उसके साथ थोडी देर ही सही, बिताए हर लम्हे नमिता के हृदय में उतर चुके थे और उसे खुद भी मालूम नहीं था कि वह सुमित को मन ही मन पसंद करने लगी थी।

अब जख्म कैसा है आपका? दर्द कुछ कम हुआ?- अपनी चुप्पी तोडते हुए सुमित ने नमिता की तरफ देखकर पुछा।

“थोड़ा दर्द तो है। धीरे-धीरे चला जाएगा।” चेहरे पर मुस्कान लिए नमिता ने धीरे से कहा और खुद को दुपट्टे से ढंककर उन मीठी हवाओं को अपने भीतर आने से रोकने का प्रयास करती दिखी।

आसपास कुछ लोग भी इन खूबसूरत वादियों का आनंद लेते दिखे, जो उस दृश्य को अपने कैमरे और मोबाइल में कैद करने में लगे थे।

आज शनिवार का दिन था, यानी शॉनिवारेर हाट का दिन। एक-एक करके स्थानीय विक्रेता और कलाप्रेमी अपने साजो-सामान पेड़ की छाँव में फैलाते दिखे, जिसके लिए नमिता काफी उत्सुक थी क्यूंकि उसने सुन रखा था कि इस हाट में हस्तकला के ढेरों समान मिलते हैं। नमिता वहां मिलने वाली खादी, कॉटन, सिल्क, बालूचरी से बने साडियों एवं ऑक्सीडाइज्ड ज्वैलरी की खरीददारी के लिए भी काफी उत्सुक थी।

नमिता की फैली आंखें उसके भीतर के कौतुहल की चुगली कर रहे थे, जिसे सुमित ने पढ लिया था। फिर दोनो वहीं एक पेड़ के चारो तरफ बने बेंत के गोलाकार चबूतरे पर बैठ उन मनोरम वादियों को अपने स्मरण में कैद करने लगे।

थोड़ी देर तक हर तरफ फैली हरियाली से आंखें सेकने के बाद जब नमिता ने सुमित की तरफ देख कुछ कहना चाहा तो सुमित भी कुछ बोलने को हुआ और दोनों खिलखिलाकर हंस पडे।

“अच्छा पहले आप बोलिए, क्या कहना चाह रही थीं!”- सुमित ने नमिता की तरफ देखकर कहा।

“कुछ नहीं! मैं ये सोच रही थी कि ज़िंदगी के किस मोड पर किससे मुलाकात होगी ये कोई नहीं जानता। अब देखिए न, कल तक हमदोनों एक-दूसरे के लिए अंजान थे और आज एकसाथ बैठे हैं!”

“सही कह रही हैं आप! दरअसल ये हमदोनों का सोनाझुरी और कबिगुरु के तरफ आकर्षण है, जिसने हमें मिलाया!”

“अच्छा!! और इसमे उस मोटरसाइकिल वाले का कोई रोल नहीं! न वो मुझे टक्कर मारता और न आप मुझे सम्भालते और न हमारी मुलाकात होती!!”- नमिता ने खिलखिलाते हुए कंधा उचकाया, जिसपर सुमित भी ठठाकर हंस पडा। फिर उसकी तरफ देख नमिता ने कहा- “आप अपने बारे में कुछ बताइए। आपके घर में कौन-कौन है? आप कहाँ से बिलॉन्ग करते हैं।”

नमिता की बातें सुन सुमित का खिला चेहरा मुर्झा गया।

“क्या हुआ सुमित जी! मैने कुछ गलत सवाल तो नहीं पुछ लिया!!”- नमिता झिझकती हुई बोली।….

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सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग3) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

written & copyright by Shwet Kumar Sinha

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