“ओफ्फोह! कितना काम पड़ा है? कोई भी उठने को तैयार नहीं है। लगातार आठ दिन के नवरात्रि के व्रत और फिर नवमी पर हलवा पूरी खा कर सब सुस्त और थक कर सोए हैं कि कोई भी उठने को तैयार नहीं है। अरे! बच्चों उठ जाओ, आज दशहरा है और दशहरे की सारी तैयारियाँ करने में बहुत समय लगता है।” आभा बच्चों की चादर खींचते हुए बोली।
“मम्मी, थोड़ी देर और सोने दो ना।” रिंकी ने अपनी आँखों पर हाथ रखते हुए कहा।
“नहीं बेटा, अब आप दोनों उठ जाओ। पापा और दादा जी चाय पीकर नहाने जा रहे हैं। दादी माँ नहा धोकर तैयार हो गई हैं। रिंकी तुम फटाफट कमरे को व्यवस्थित करके बाहर आओ और मानव तुम जल्दी से नहा कर दादी जी के साथ जाकर सोन पत्र ले आओ।” आभा कमरे से बाहर जाते हुए बोली।
“माँ, ये सोन पत्र……..।” मानव की बात बीच में ही रह गई।
“चलिए दादी माँ, सोन पत्र ले आएँ। पर दादी माँ यह सोन पत्र क्या होते हैं? मानव ने दादी माँ से पूछा।
“मेरे लाल! पहले मेरे साथ तो चल, फिर घर वापस आकर तुझे पूरी कहानी सुनाती हूँ।” दादी माँ ने कहा।
दादाजी गोबर से रावण का प्रतीक रूप बनाने लगे और आभा उन्हें सारा जरूरी सामान लाकर दे रही थी। रिंकी और पापा बाजार से मिठाई लाने चले गए।
“चलो पहले सब रावण की पूजा कर लो, फिर तुम दोनों को मैं सोन पत्र के बारे में बताऊँगी।”दादी माँ फर्श पर बिछी दरी पर बैठते हुए बोली।
दादा जी ने सब को तिलक लगाया।फिर सब ने मिलकर रावण की पूजा की। रिंकी ने मानव के कान पर ज्वारे रखकर उसका तिलक किया और सब ने दादा जी और दादी जी का आशीर्वाद लिया।
पर बच्चों की उत्कंठा बढ़ती जा रही थी इसलिए उन्होंने दादी माँ को घेर लिया।
“अच्छा! अच्छा! बताती हूँ। सुनो जब रामचंद्र जी लंका पर आक्रमण करने जा रहे थे तो उन्होंने विजय पाने के लिए शमी के वृक्ष के सामने शीश नवाया था। शमी का पेड़ भी बरगद और पीपल के पेड़ के समान ही पूज्य होता है। जब रामचंद्र जी विजयी होकर वापस लौटे तो यह मान्यता चल पड़ी कि शमी की पत्तियाँ विजयदशमी के दिन सुख, समृद्धि और विजय का आशीष देती हैं। शमी की पत्तियाँ ही सोन पत्र कहलाती हैं क्योंकि धीरे-धीरे बाद में इन्हें स्वर्ण के समान मान लिया गया। स्वर्ण को बोलचाल की भाषा में सोना कहते हैं इसलिए शमी की पत्तियों को ही सोन पत्र कहने लगे।दशहरे के दिन सोन पत्र देकर हम एक दूसरे को यह शुभकामना देते हैं कि आपके जीवन में इन सोने की पत्तियों जैसा सौभाग्य एवं समृद्धि आए। इसके साथ शमी के पेड़ का वैज्ञानिक महत्व भी है कि शमी के पेड़ किसानों को आगामी फसल, मौसम के बारे में भी जानकारी देता है। इसकी जड़ें बहुत गहरी होती है जिसके कारण उपज के सूखने का भय नहीं रहता।” दादी माँ ने बताया।
“दादी माँ ! मैं समझ गई कि हमारे हर रीति रिवाज, परंपरा के पीछे पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के साथ वैज्ञानिक कारण भी होता है।” रिंकी ने अपना काॅलर ऊपर उठाते हुए कहा।
“हाँ! हमारी दादी माँ, आप तो दादी माँ की भी दादी हो। आप हर बात का निष्कर्ष बड़ी जल्दी निकाल लेती हो।” मानव रिंकी की तरफ जीभ चिढ़ाई।
रिंकी ने मानव को आँखें दिखाईं तो सब ठठा कर हँस दिए।
फिर सब एक दूसरे को शुभकामनाओं के साथ सोन पत्र देने लगे।
मौलिक सृजन
ऋतु अग्रवाल, मेरठ