।आज सुबह सुबह ही मालूम हुआ कि काकी चली गई ।मन बहुत उदास हो गया ।काकी का सबके लिए, हर पर्व त्योहार, जन्म दिन, विवाह की वर्षगांठ पर रटा रटाया आशीर्वाद रहता-” सौभाग्य वती भव” चाहे अपना हो या पराया ।काकी ने कभी किसी से भेदभाव नहीं किया ।वह थी तो उड़िया ,लेकिन कोशिश करके हिंदी बोल लेती थी।उनसे मेरा परिचय तब हुआ था जब मेरे पति की बदली भिलाई हो गई थी ।
तीन तल्ले वाले क्वाटर के दूसरे तल्ले पर हमारे बगल में उनको भी घर मिला था ।बगल में, रहने के कारण दोस्ती आत्मीयता में बदल गई थी ।उनके अपने बाल बच्चे हुए ही नहीं ।अतः उनके पति ने अपने भतीजे को गोद लिया था ।छः महीने का था वह जब काकी उसे लेकर आई थी ।देवदत नाम रखा था उनहोंने ।बड़ी बड़ी आखों वाला प्यारा बच्चा था वह।
बच्चा तो अक्सर हमारे घर ही ,हमारे बच्चों के साथ रहता ।और खाली वक्त में काकी पुरे मुहल्ले में घूमती रहती ऐसे ही नहीं ।उन्हे याद रहता, आज किसका जन्म दिन है, किसकी शादी की सालगिरह है, कौन सा त्योहार है ।सभी लोग उनका बहुत आदर सम्मान करते, पैर छू कर प्रणाम किया करते तो झट काकी के मुँह से आशीर्वाद निकलता ” सौभाग्य वती “रहो ।
पूरे मुहल्ले की खोज खबर, रखती थी वह ।किसी के यहाँ बड़ी बनानी है, कहाँ अचार डालनी है, झट पहुंच कर मसाला कूटने बैठ जाती ।हमलोग भी उनसे उड़िया सीख लेते थोड़ा बहुत ।आत्मीयता के बीच भाषा कभी दीवार नहीं बनी।हम औरतें अपने अपने पति को काम पर भेज कर आपस में मिलकर सुख दुख साझा करती ।दिन गुजरने लगा था ।
बच्चे बड़े हो गये थे तो अपनी पढ़ाई में आगे बढ़ने लगे।उनका देवदत भी पढ़ाई में तेज था ।उसका नामांकन दूसरे, अच्छे स्कूल में कराया गया था ।उसके जाने के बाद काकी उदास रहने लगी ।अब वह अपना समय हमारे बच्चों के बीच बिताने लगी ।खेल खेल में एक दिन मेरा छोटा बेटा कटा हुआ सूरन ( ओल) खा गया ।
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किसी ने उसे कह दिया था कि ओल की सब्जी बहुत अच्छी होती है, कच्ची सूरन तो और भी अच्छी लगती है बस क्या था कि बेटे ने बिना सोचे समझे मुँह में डाला और चिल्लाने लगा ।क्योकि उसका मुँह बहुत खुजलाने लगा था और पूरा मुँह लाल हो गया ।मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करूँ? फिर काकी को मालूम पड़ा तो दौड़ती आई ” क्या हुआ बच्चे को?” ” देखिए न काकी इसने सूरन खा लिया,
कच्चा ही ” मै भी रोने लगी थी उसकी हालत देख कर ।बच्चे, बड़े सभी उनको काकी ही बोलते ।वह सबकी काकी थी स्नेह और ममता से भरपूर ।मुझे चुप कराया और नींबू का टुकड़ा काटकर बेटे के मुँह में रगड़ती रही ।करीब आधे घण्टे के बाद वह ठीक हुआ तो मै खुशी से उनके गले लग गई ।ऐसी थी काकी।एक दिन बात बात में उनहोंने बताया कि उड़िया लोग पखाड़ भात खाते हैं जो बहुत अच्छा लगता है
और स्वास्थय के लिए भी अच्छा होता है ।बस मैंने उनसे अपने खाने की इच्छा बताई ।फिर क्या था।जोर शोर से तैयारी होने लगी ।उनहोंने कहा आज मुझे वह पखाड़ भात खिलाएंगी ।मै भी तैयार होकर, खुश हो कर गयी उनके घर ।मन में था कुछ विशेष होगा ।खाना परोसा गया
।पानी डाला हुआ भात,साथ में बड़ी आग पर सेंकी हुई, आलू का भरता।,अचार ।मेरा मन जाने कैसा हो गया ।” यही खाना है?” मन में कुछ विशेष की इच्छा थी वह धूल में मिल गई ।क्या करें? थोड़ा सा खाकर उठ गयी ।कैसे न खाती भले ही वह मुझे बहुत अच्छा नहीं लगा, लेकिन काकी का प्रेम तो था ही उसमें ।
हाँ तो ,मै कहाँ से कहाँ सोचने लगी ।मै दौड़ पड़ी थी उनके यहां ।उनका पार्थिव शरीर जमीन पर रखा हुआ था ।फूल माला से सुसज्जित ।उनके पति पास में बैठे रो रहे थे।” अब कौन देखभाल करेगा मेरी, देखो तुम लोग कैसे चुप चाप पड़ी हुई है ” भतीजे को खबर दी गई तो उसने आने में असमर्थता जताई ।
वह बड़ा हो गया था ।एक नामी डाक्टर बन गया था ।अपने मन से ही सहकर्मी डाक्टर से शादी रचा ली थी ।पत्नी ने साफ मना कर दिया था कि माँ बाप की सेवा नहीं होगी हमसे ।किसी एक को चुनना होगा तो डाक्टर ने सिर्फ पत्नि को चुन लिया था ।वह नहीं आया ।कहते हैं
कि उसकी शिक्षा के चलते काकी ने अपने सारे जेवर बेच दिया था।बेटा पढ़ाई कर लेगा तो सहारा होगा ।काकी को ले जाने की तैयारी होने लगी ।कानाफूसी होने लगी ।बेचारी काकी ,अपना जीवन होम कर दिया सबके लिए ।बेटा मानकर चली थी,कहाँ बन पाया बेटा? कौन मुखागनि देगा? तभी मेरा बेटा आ गया ” मै दूँगा, मै हूँ ना उनका बेटा? ” बेटे ने अपना कंधा लगा दिया ।
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लगा अभी काकी बोल उठेंगी बहुत सौभाग्य शाली हो तुम, ऐसा बेटा पाने के लिए ।सौभाग्य वती भव ।काकी का हाथ लगा उठ गया हो मुझे आशीर्वाद देने के लिए ।मेरी तंद्रा टूटी ।काकी बहुत दूर जा चुकी थी।अब कभी दर्शन नहीं देंगी ।सबके दुख सुख में शामिल होने वाली खुद कितनी अकेली हो गई थी ।उन्हे तो अच्छे कर्मो के लिए मोक्ष मिला, लेकिन उनके पति का क्या? किसी ने शायद नहीं सोचा ।बस यही कहानी है हमारी काकी की ।—
उमा वर्मा,
राँची, झारखंड ।
स्वरचित ।मौलिक ।