स्नेहसूत्र – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

 मायका ! इस नाम का एहसास ही इतना सुखद होता है न कि नाम सुनते ही अधरों पर मुस्कान और दिल में एक उमंग छा जाती है । पर कविता की किस्मत विधाता ने जाने किस कलम से रची थी।

उसके  हिस्से में शादी के बाद कभी मायका सुखद एहसास लेकर आया ही नहीं । सभी सहेलियों की चुहलबाज़ी जोरों पर थी । पुराने दिन की यादों को तरोताज़ा करके सब खुश हो रही थीं । पर उसके पास तो बताने के लिए कोई बात ही नहीं थी ।

 सर्दियों का मौसम था और उस दिन इतवार था । सोसायटी वाले पार्क में सहेलियों की मंडली लगी हुई थी । कविता की पड़ोसन और सहेली अचला अभी तीन दिन पहले ही अपने भाई के शादी से लौटी थी । कीर्ति, निष्ठा भी अपने बच्चों के साथ वहाँ मौजूद थीं । सब बच्चे एक तरफ खेलने में ब्यस्त थे ,

पति धूप सेंकने में और हम सहेलियाँ मटर गश्ती करने में । कविता का आठ साल का बेटा अहान और दस साल की बेटी श्रेया बहुत ज़िद्दी हैं दोनों । कितना मना किया कविता ने  फोन में गेम मत खेलो पर वो झूले और आउटडोर गेम छोड़कर फोन में लग जाते हैं । साथ – साथ कीर्ति की बेटी पंखुड़ी भी मोबाइल गेम में एकटक व्यस्त थी ।

बस सबकी बातें सुनकर कविता मुस्कुरा ले रही थी । तभी बच्चे ये बोलते हुए फोन देने आए की ..”मम्मी ! नानी का फोन आया है । कविता के चेहरे की मुस्कान जैसे फीकी पड़ गयी ।

कविता ने बोला अहांन और पंखुड़ी से की तुमलोग खेल लो मैं घर जा के बात कर लुँगी । पर इकपल ऐसा लगा जैसे सबकी नजरें कविता को घूर रही हैं । फिर अचला, निष्ठा और कीर्ति की तरफ देखते हुए कहा..”खेलने दो बच्चों को मैं तसल्ली से घर जा के बात कर लूँगी । निष्ठा ने जोर देते हुए कहा…”कर ले न यार ! देख देरी मम्मी के तीन मिस्ड कॉल हो गए । 

तभी कीर्ति ने कहा..”यार ! कितनी हिम्मत है तुझमें, मेरे मायके से तो फोन आता है तो मैं इकपल नहीं रोक पाती खुद को । सबने उसकी हाँ में हाँ मिलाई । फिर हाथ में फोन लिया कविता ने और चेक करने लगी तो देखा तीन मिस्ड कॉल मम्मी के तो चार मिस्ड कॉल भाभी के भी थे । कविता के चेहरे पर परेशानियों की लकीरें साफ दिख रही थीं । अब हड़बड़ा के कविता मन मे प्रार्थना करते हुए उठी कि भगवान सब ठीक हो वहाँ ।

अचला ने मुस्कुराकर चुटकी लेते हुए कहा..”सबके मायके वालों को देखा है बस कविता के मायके वालों को नहीं देखा कभी और कविता न जाने क्या गुपचुप बातें करती हैं कभी हम सबके सामने नहीं करती । 

कविता सफाई देते हुए बोलने लगी ..मेरी मम्मी और भाभी की बातें लंबी होती है इसलिए नहीं करती बात सामने और तेज़ कदमों से वो अपने घर चली गयी ।

घर जैसे ही घुसी फिर से फोन आ गया मम्मी का और उसने कहा..”हेलो कविता ! प्लीज आ जाओ । सुषमा भाभी  ने मुझे आज बहुत अपशब्द कहा है, मेरे सीने में और सिर में भी बहुत दर्द हो रहा है ।मम्मी न तो हाय हेलो करती न नमस्ते का जवाब देतीं बस फोन उठाते ही भाभी भैया के शिकायतों का पुलिंदा शुरू ।

मम्मी शुरू से ही कठोर स्वभाव की थीं और पूरे पीढ़ी में अकेले कमाने वाली थीं तो उनका घमंड सिर चढ़ कर बोलता था । खुद के आगे वो पापा को भी ज्यादा मान नहीं देती थीं । पापा की एक दिन हृदयाघात से मृत्यु हो गई । भाभी नौकरीपेशा तो नहीं हुनरमंद थीं । शायद इसी वजह से वो दबना नहीं चाहती थीं पर मम्मी की भी आदत गलत थी जो बेवजह रोक – टोक और कटाक्ष करती थीं । दोनों में से कोई सुनने को तैयार नहीं था समझाने की कोशिश शुरू में की तो पापा ने ही अपनी गृहस्थी का वास्ता देकर मुँह

सिल दिया । भैया का व्यापार भी उसी शहर में था तो दोनों को एक दूसरे को झेलना ही था ।  बस यही सब वजह बनी और दोनो का व्यवहार एक दूसरे के प्रति ज्यादा कटु हो गया । भाभी भी शुरू के एक साल तो बर्दाश्त कर लीं लेकिन जब एक घर में एक छत के नीचे रहना है तो कोई क्यों और कितना बर्दाश्त करे । 

पहले पापा सुलझा देते थे मुद्दा तो मुझ तक इतनी बात नहीं पहुँचती थी । शादी के तीन साल बाद पापा चल बसे और तब से एक स्नेहसूत्र बनने की जगह मैं एक पंचिंग बैग बन गयी हूँ ।

माँ की बुराई भाभी से नहीं सुनी जाती लेकिन घर मे शांति बनाए रखने के लिए बस ये कुर्बानी दिए जा रही थी । 

कविता के पति आकाश आए ऑफिस से तो कविता ने कहा..”मायके जाने का सोच रही थी दो दिन के लिए । आकाश ने कहा..”अरे दो दिन के लिए क्यों ? तुम तो जल्दी जाती भी नहीं मज़े से दो सप्ताह घूम आओ न । यहाँ के काम से तुम कितना ऊब जाती होगी और तुम्हारी शिकायतें भी होती हैं कि तुम्हें नहीं ले जा पाता ।

आकाश इतने खुश थे कि जैसे मुझे जन्नत मिल गया हो । टिकट देखने लगे अगले दिन का, कोई भीड़ नहीं थी अभी  ट्रेन में टिकट मिल गया । तुरंत आकाश बाजार से जाकर  मेवे और मिठाईयां ले आए

। चलो कुछ कपड़े ले लो बोलकर वो हाथ मुँह धोने लगे । कविता बैग पैक करने लगी तो श्रेया ने छेड़ते हुए कहा..”मम्मी आपको तो खुश होना चाहिए नानी के घर जा रहे हो वो भी हमारे बिना, कितनी मस्ती से रहोगे आप । 

फीकी सी मुस्कान कविता के चेहरे पर तैर गयी । आकाश उसे स्टेशन जाकर ट्रेन पर बिठा दिए । कविता के भैया लेने आए थे । ट्रॉली गाड़ी के अंदर रखते ही भैया मम्मी की बुराई शुरू कर दिए । पौने घण्टे के रास्ते मे मम्मी के मुझे एक अच्छे गुण सुनने को नहीं मिले । मम्मी के स्वभाव से तो मैं परिचित थी पर मायके में मुझे दखलंदाजी नहीं करनी थी । एक का पक्ष लेती तो दूसरे को बुरा लगता ।

अब घर के पास गाड़ी रुकी । गली, पेड़ – पौधे सब तो वैसे ही थी । उतरने के बाद जैसे ही घर पर नज़र पड़ी तो कलेजा जैसे मुँह को आ गया । मेरे घर के बीच में दीवार ? आँखें छलक आईं । यही वो घर है जो पापा दिन रात एक करके बनाए थे । तभी मम्मी पर नज़र पड़ी तो मम्मी ने आ गयी बेटी बोलते हुए गले लगा लिया ।

दरवाजा घुसने के लिए समझ नहीं आ रहा था तो मेरे भतीजा भतीजी रौनक और पायल ने पानी का गिलास लाकर देते हुए कहा..”दादी के घर बाद में जाना बुआ पहले हमारे घर आओ । मम्मी ने तुम्हारा मनपसंद छोलिये की सब्जी पूरी और और सेवई बनाया है । मम्मी ने मेरी बाँह पकड़ते हुए कहा..”तेरे लिए मटर पुलाव और कोफ्ते बनाए हैं। आजा माँ के पास । खाकर फिर चले जाना । माँ की तरफ वजन लगा और उधर ही खिंचते हुए कविता चली गयी ।

जैसे ही खाने बैठी पायल ने दो पूरी और छोलिये की सब्जी रख दी । इतना अजीब लग रहा था सब कुछ । हर चीज में जैसे खींचातानी।  लग रहा था कोई रिश्ता नहीं दुश्मनी निभाने के लिए सब साथ मे रह रहे । 

किस कदर  जी फट रहा था और बिन आँसू बहाए खून के आँसू बहाकर रो रही थी उसके कोई नहीं समझ सकता था । खाकर जैसे ही माँ से चाय

के लिए बोलने लगी तो माँ बोली चाय जाकर भैया के यहाँ पी ले वरना वो बुरा मान जाएगा कि माँ ने जाने क्यों भड़का दिया इधर नहीं आयी । और सुन ! रात का खाना इधर खाएगी तो ठीक, नहीं तो सोने तो इधर ही आना, बहुत बातें करनी है तुझसे । बिना कुछ बोले कविता उठी और दीवार से पार होकर भैया के घर आ गयी ।

अब यहाँ बारी बारी से भैया भाभी जारी थे मम्मी की शिकायतों का पुलिंदा ले के । इतना रोना आज तक तो ससुराल में भी नहीं आया जितना मायके की स्थिति देखकर आ रही थी । समझ नहीं पा रही थी कि सारे उससे बड़े लोगों को वो क्या समझाए । एक दिन में उसका सिर तनाव से दुखने लगा । 

किसी को भनक तक नहीं लगी कि वो भी हाड़ – माँस की बनी है, उम्र हो रही है और सुगर की शिकार हो गयी है । पर्स से एक गोली निकालकर खा ली फिर उसने आकाश जी को फोन किया कि उसकी तबियत नहीं ठीक लग रही वो आना चाहती है। वो उसकी फिक्र करते  हुए टिकट भेज दिए । अब उसने दोनों तरफ कह दिया कि आकाश जी मुझे बुला रहे हैं तबियत ठीक नहीं उनकी । मैं कल ही निकल जाऊँगी ।

सबने ज़िद किया रुकने की पर बिल्कुल इच्छा खत्म हो गयी थी ऐसा माहौल देखकर की खुद को क्या करूँ । अच्छा है इनलोगों की नज़र से आड़ रहती हूँ । नींद तो रात में जैसे उसे आयी ही नहीं । शुरू के चार घण्टे भैया के यहां फिर मम्मी के यहाँ ऐसे करके रात कटी । ऐसा लगा एक और दिन रहूँगी तो पागल हो जाऊँगी मेरे भी तो अपने बच्चे हैं, पति और गृहस्थी है । 

अगले दिन कविता उदास मन से गाड़ी पर बैठी घर की दशा को एकटक देखती जा रही थी । जिस स्नेह सूत्र में पापा बांधना चाहते थे इस परिवार को वो स्नेहसूत्र अंतिम साँसें गिन रहा था । विश्वास नहीं हो रहा था उसे ये वही घर है जहाँ वो सबके साथ खेल कूदकर बड़ी हुई ।

मौलिक, स्वरचित 

अर्चना सिंह

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