” कैसी हो मां ? ,, कावेरी ने फोन पर अपनी मां सरिता जी से पूछा ।
” ठीक हूं बेटा । ,, बुझे स्वर में सरिता जी बोलीं ।
” क्या हुआ मां ,आप कुछ परेशान लग रही हैं , घर पर सब ठीक है ना , भाई भाभी, पापा। सब ठीक हैं ना ?? ,, कावेरी एक हीं स्वर में पूछ बैठी ।
” अरे हां हां सब ठीक हैं , तूं परेशान मत हो। ,,
” तो फिर क्या बात है मां? ,,
” वो बस तेरी भाभी….. ,, सरिता जी बोलते बोलते रूक गईं ।
” क्या हुआ भाभी को ?? ,,
” होना क्या है , फिर से मुंह सूजा है महारानी का । काम करके अपने कमरे में हीं बैठी है। पहले तो मेरे पास बैठ जाती थी लेकिन कुछ दिनों से तो पास भी नहीं बैठती ।,,
सरिता जी की बात सुनकर कावेरी हौले से हंस पड़ी।
” हूं….. लगता है फिर आपने उसे कुछ कह दिया होगा।,,
” मैं भला उसे क्या कहती हूं !! बस वो कल जरा खाना अच्छा नहीं बना था तो मैंने थोड़ा सा डांट दिया। तुझे भी तो मैं डांटती थी ना । लेकिन इन बहुओं को पता नहीं सास का डांटना इतना क्यों अखरता है?? यदि उसकी मां डांटती तो भी क्या इस तरह मुंह फुलाकर रखती??,,
सरिता जी ने अपना तर्क अपनी बेटी के सामने रख दिया ।
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” ये बात तो है मां… लेकिन यदि आप चाहती हैं कि भाभी आपको अपनी मां की तरह समझे तो आपको भी तो उसे बेटी के समान समझना पड़ेगा।,,
” हां तो मैं कौन सा उसपर कोई पाबंदी लगाकर रखती हूं । जो मर्जी खाती पहनती है। सुबह भी छह बजे तक सोती रहती है। हमारे टाइम में तो हमारी सास पांच बजे हीं कुंडी खुड़का देती थी। मजाल जो सर से पल्लू भी सरक जाए। तेरी भाभी तो सूट भी पहनने लगी है । ,, सरिता जी एक एक चीजें गिना रही थीं कि उन्होंने अपनी बहू को कितनी छूट दे रखी है।
” मां यही तो मैं भी कह रही हूं कि आपने भाभी को छूट दे रखी है लेकिन क्या भाभी बिना आपकी इजाजत के अपनी मर्जी से कुछ कर पाती हैं ?? आपने भाभी को सूट पहनने की इजाजत तो दे दी लेकिन हर वक्त उन्हें दुपट्टा ले कर रखना पड़ता है जबकी मैं उस घर में यूं ही नाइट ड्रेस पहनकर भी घूमती रहती थी। मुझसे यदि खाना खराब बन जाता था तो आप डांटती थीं लेकिन भाई और पापा के सामने यही कहती थी कि
धीरे धीरे सीख जाएगी लेकिन अब जब भाभी से खाना खराब हो जाता है तो आप भाई और पापा के सामने हीं उनकी बुराई करने लगती हैं । मैं किसी काम के लिए मना कर देती थी तो आप खुद काम कर लेती थीं लेकिन यदि भाभी को कोई काम करने में देर हो जाती है तो आप नाराज़ हो जाती हैं । और हां मां , क्या नाराज़ होने पर मनाने की जिम्मेदारी सिर्फ बहू की ही होती है ?? ,,
कावेरी की बात सुनकर आज सरिता जी निरूत्तर हो गईं । उन्हें एहसास हो गया था कि यदि बहू से बेटी बनने की उम्मीद रखते हैं तो खुद भी बहू की मां बनने की कोशिश करनी होगी।
” बेटा, तूं ठीक बोल रही है। शायद गलती मेरी भी है। लेकिन एक बात तो है, तूं आजकल कुछ ज्यादा ही समझदार हो गई है। ,, सरिता जी मुस्कुराते हुए बोली।
” हां मां .. क्योंकि अब मैं भी एक घर की बहू हूं और बेटी बनने की कोशिश कर रही हूं । ,, कावेरी बोली ।
सरिता जी का गुस्सा छू मंतर हो चुका था। उन्होंने रसोई में जाकर दो कप चाय बनाई और अपनी बहू को आवाज लगाई , ” बेटा , आजा चाय पी ले । और हां रसोई से बिस्किट भी लेती आना ।,,
इतना सुनते ही बहू नंदिनी भागती हुई आई ,” मां जी, मुझसे कह देतीं .. मैं चाय बना देती।,,
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” तूं तो रोज ही बनाती है बेटा, आज मेरे हाथ की भी पी ले …. ,,
मुस्कुराते हुए चेहरे पर अब एक दूसरे के लिए कोई नाराजगी नजर नहीं आ रही थी।
लेखिका : सविता गोयल