सिर्फ़ बहु से बेटी बनने की उम्मीद क्यों ?? : Moral Stories in Hindi

सुबह -सुबह घर की घंटी बजी , देविका ने दरवाजा खोल कर देखा तो सामने शर्मा ऑन्टी थीं।  उसने अभिवादन कर उन्हें बैठाया।  तभी उसकी सासूमाँ सरिता जी भी अपने कमरे से बाहर आकर हॉल में बैठ गयी।  दोनों बातें करने लगी।  देविका चाय-नाश्ता लेकर हॉल में पहुँची तो उसकी सास हर बार की तरह अपना मनपसंद विषय “बहु पुराण ” लेकर बैठी हुई थीं।

  अरे बहन  इन्हे कहाँ घर सम्हालने आता है , दो दिन ध्यान ना दूँ तो ये तो घर बेच खायें।  ज़रा – ज़रा सी बात पर मुँह फुलाके बैठ जाती हैं।  एक हम थे जिनका सारा समय सास की जी हुजूरी में ही निकल जाता था। शर्मा आंटी भी पूरी तरह बात में बढ़ -चढ़कर हिस्सा ले रहीं थी। 

देविका की तरफ़ देखकर बोलीं : भागों वाली हो देविका जो ऐसा घर मिला है , ऐसी सास मिली है जो बेटी की तरह रखती है तुम्हें। बेटी बेटी होती है और बहु बहु होती है आंटी जी।  देविका बोली. बहु कभी बेटी नहीं बन सकती  बोलने से ही बहु बेटी नहीं बन जाती उसके लिए मन भी वैसा ही रखना पड़ता है।  कथनी और करनी में फ़र्क होता है। 

जैसे ही ये कहकर देविका जाने लगी सरिता जी चिल्लाते हुए बोलीं : हाँ – हाँ हमने तो तुम्हें नौकरानी बना कर रखा है।  तेवर तो देखो इनके सब-कुछ घर में लाकर दो तब भी महारानी के नखरे कम नहीं होते, हमारी तो किस्मत ही फूट गयी ऐसी  बहु पल्ले पड़ी है।  तभी देविका पनीली आंखें लिए बोली : किस्मत आपकी नहीं मम्मी जी मेरी फूट गई है।

जब से शादी कर के इस घर में आयी हूँ एक दिन ऐसा नहीं गया जब अपने ताने न मारे हों।  कभी दहेज़ को लेकर , कभी काम को लेकर , कभी कुछ कभी कुछ।  अगर मैं पलटकर जबाब नहीं देती इसका मतलब ये नहीं मुझे बुरा नहीं लगता। अपनी मर्जी के कपड़े नहीं पहन सकती , बाजार नहीं जा सकती , पहले नौकरी करती थी वो भी छुड़वा दी ये कहकर की मुझसे अब काम नहीं होता।

  जब आप बीमार पड़ती हैं तो मैं रात -दिन एक कर देती हूँ आपकी सेवा में , लेकिन गलती से मैं बीमार पड़ जाऊं तो खाना तो बड़े दूर की बात है कोई चाय तक नहीं पूछता।  खुद हर तीसरे दिन बाजार जाती हैं कभी मुझसे पूछा  की तू भी चल पड़ , कभी नहीं।  अपने बेटी के साथ भी आप ऐसे ही रहतीं थीं ?

यहाँ तक की मैंने अपना बच्चा तक खो दिया आपकी वजह से।  डॉक्टर ने कहा  था कॉम्प्लिकेटेड केस है , रेस्ट बहुत जरूरी है।  फिर भी ये नहीं मानी , घर का सारा काम मुझसे करवाती थीं , एक दिन भी चैन से नहीं बैठने दिया।  उस दिन भी मेरी हालत ठीक नहीं थी , फिर भी इन्होंने अपनी सहेलियों को घर बुलाया पार्टी के लिए। 

इतना सारा खाना , स्नैक्स , चाय।  और फिर सब होने के बाद बर्तनों  का ढेर।  इतनी देर खड़े रहने की वजह से ब्लीडिंग शुरू हो गयी।  जब तक हॉस्पिटल पहुंची मेरा बच्चा मर चुका  था। सिर्फ आप की वजह से। देविका की आँखेँ दुःख और गुस्से से लाल हो रहीं थीं।  इतना सब होने के बाद भी ये मुझे ही दोष देती हैं कि मैं ही मनहूस हूँ , जो अपने बच्चे को खा गयी… अरे कौन सी माँ चाहती है कि उसका बच्चा मर जाए।  कौन सी माँ….. देविका हिचकते हुए बोली। 

अरे जब आप खुद बहु की माँ नहीं बन सकतीं तो उनसे बेटी बनने की उम्मीद क्यों रखती हैं ? क्यों नहीं उन्हें बहु ही रहने देती।  शादी के वक़्त तो बड़े – बड़े वादे करते हैं , आपकी बेटी हमारी बेटी है , इसे रानी बना कर रखेंगे , इसने तो बेटी की कमी पूरी कर दी और भी पता नहीं क्या -क्या….. रहने दीजिये हमें बहु ही रहने दीजिये।  कहकर देविका रोती हुई अपने कमरे में चली गई।  सरिता जी और शर्मा जी की एक दूसरे का मुँह देखते रह गए।

समिता बडियाल

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