सिंदूर की आभा – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

जानकी जैसे ही सिंदूर खेला खेल कर  आई, राम ने पीछे से उसे पकड़ लिया, जानकी शरमा कर बोली, “ये क्या कर रहे हैं, छोड़िए!”

“छोड़ने के लिए थोड़ी पकड़ा है।” राम मुस्कुरा कर बोला। 

यह सुनते ही जानकी के चेहरे की सिंदूरी आभा शर्म की लाली से मिलकर और भी सुनहरी हो गई।

“प्लीज, छोड़िए ना कोई आ जाएगा।” जानकी ने शरमाते हुए कहा।

“कोई नहीं आएगा।तुम्हारे यह सब बहाने मैं अच्छी तरह से समझता हूॅं। लेकिन, आज तुम नहीं बचने वाली।”राम ने जानकी को अपनी ओर खींचते हुए कहा। तभी माॅं की आवाज़ आई, “जानकी बेटा, कहाॅं हो? जल्दी आओ, पूजा का समय हो रहा है।” आवाज सुनते ही राम तुरंत दीवार के पीछे छिप गया और जानकी दौड़ती हुई अपनी सास के पास पहुॅंची।

उसकी सास मुस्कुराकर बोलीं, “जल्दी से तैयार हो जा और हाॅं राम, तू भी दीवार की ओट से बाहर आकर जानकी के साथ पूजा के लिए आ जा। पंडित जी बुला रहे हैं।”

जानकी शर्माते हुए बोली, “माॅं, मैं मुॅंह धोकर आती हूॅं।”

“अरे नहीं, सिंदूर से सजा तेरा चेहरा बहुत प्यारा लग रहा है। आखिर इसके लिए तुम दोनों ने इतनी तपस्या की है।” कहकर माॅं पुरानी यादों में खो गईं।

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राम और जानकी बचपन से ही एक-दूसरे से प्यार करते थे। दोनों के परिवार भी इस रिश्ते से खुश थे। सबकुछ ठीक चल रहा था। फिर वो दिन आया, जब राम और जानकी की शादी होनी थी। शहर के सबसे बड़े होटल में उनकी शादी का आयोजन किया गया था। सब खुश थे, हॅंसी-खुशी का माहौल था।

फेरे पूरे हो चुके थे। बस ‘सिंदूर’ की रस्म बाकी थी। लेकिन, तभी एक दर्दनाक घटना घटी। आतंकवादियों ने होटल पर हमला कर दिया। चारों ओर भगदड़ मच गई, चीखें गूंजने लगीं। राम ने जानकी को बचाने के लिए अपने आपको ढाल बनाया, और दो गोलियाॅं उसकी छाती में धंस गईं। जानकी का दिल बैठ गया। वो वहीं बेहोश हो गई, जबकि राम को तुरंत अस्पताल ले जाया गया।

जानकी जब होश में आई, तो उसने अन्न-जल त्याग दिया। राम की सलामती के लिए वह दिन-रात पूजा करने लगी। पूरे सात दिन बाद राम को होश आया। यह खबर मिलते ही जानकी बिना कुछ सोचे-समझे अस्पताल की ओर दौड़ी, लेकिन उसके नंगे पैर और कमजोर शरीर ने उसे धोखा दे दिया और वो एक ट्रक के सामने बेहोश होकर गिर पड़ी। ट्रक उसे कुचलते हुए निकल गया।

अस्पताल में अब दो जिंदगियाँ संघर्ष कर रही थीं। एक तरफ राम की साॅंसें लौट आई थीं, लेकिन दूसरी तरफ जानकी की ज़िंदगी अब मौत के दरवाजे पर खड़ी थी। डॉक्टरों का कहना था कि जानकी कोमा में जा चुकी है। उसको होश आना मुश्किल है। उसकी हालत इतनी नाज़ुक थी कि कब होश आएगा, कोई नहीं जानता था।

राम को लोगों ने दूसरी शादी करने की सलाह दी, लेकिन राम का दिल मानने को तैयार नहीं था। उसने ठान लिया था कि वह सिर्फ अपनी जानकी का ही इंतजार करेगा।

दिन बीतते गए, लेकिन जानकी की हालत स्थिर नहीं हो रही थी। पूरे एक साल तक राम ने इंतजार किया, उसकी हर साॅंस बस जानकी की ज़िंदगी के लिए प्रार्थना कर रही थी और फिर एक दिन, चमत्कार हुआ। जानकी की ऑंखें खुलीं। जब उसने पहली बार अपनी ऑंखों से राम को देखा, उसकी ऑंखों में ऑंसू आ गए।

राम ने धीरे से उसके माथे पर अपना हाथ रखा और उसकी मांग में सिंदूर भर दिया। सबकी ऑंखें नम हो गईं। उस पल में, दोनों के जीवन की तपस्या पूरी हुई। सिंदूर की आभा में उनका इंतजार, दर्द और दुख, सब खत्म हो गया।

धन्यवाद

श्वेता अग्रवाल

साप्ताहिक विषय कहानी प्रतियोगिता-#सिंदूर

शीर्षक -सिंदूर की आभा

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