सिंदूर खुशहाल जिंदगी का प्रमाण नहीं होता – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

मर क्यों नहीं जाते तुम,कम से कम तुम्हारे न रहने पर हमारी और हमारे बच्चों की जिंदगी तो आसान हो जाएगी।छाती पर मूंग दल रहा है ।सब पैसा गांठ में बांधकर रखें रहता है बुड्ढा और घर में हमलोग एक एक पैसे को परेशान होते हैं ।यह रोज की बात थी मिस्टर और मिसेज शर्मा में करीब करीब रोज़ ही झगड़ा होता रहता है लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता था । होता वही था जो शर्मा जी चाहते थे।

               हमलोग शर्मा जी के परिवार में किराए से रहते थे । काफी बड़ा घर था जिसमें उन्होंने दो कमरों का सेट किराए से उठा रखा था। जिसमें मेरे पति मेरी सास और दो छोटे बच्चे रहते थे । शर्मा जी का परिवार काफी बड़ा था ।चार लड़के और एक लड़की थी । शर्मा जी रेलवे में आफीसर थे। शुरू से ही आफीसर नहीं थे पहले नीचे श्रेणी में थे प्रमोशन से यहां तक पहुंचे थे।वे चाहते थे कि बच्चे अच्छे से पढ़ लिखकर अपनी मेहनत से नौकरी पाए। मगर बच्चों का मन पढ़ाई लिखाई में लगता नहीं था।  

  जब म शर्मा जी की पत्नी सुशीला , कहने को तो सुशीला थी पर वो सुशीला नहीं थी । पढ़ी लिखी तो थी नहीं ज्यादा थोड़ा बहुत ही शायद पढ़ी होगी इसलिए शिक्षा का महत्व नहीं समझती थी।वो चाहती थी कि बच्चे बस जरूरत के हिसाब से पढ़ लें और शर्मा जी रिश्वत देकर या जुगाड लगा कर लड़कों को नौकरी पर लगा दे ।

लेकिन शर्मा जी कहते पहले लिखित में परीक्षा पास करो फिर इंटरव्यू होगा तो हम देख लेंगे लेकिन रिश्वत देकर हम किसी भी तरह की नौकरी नहीं लगवाएंगे ये मेरे वजूद के खिलाफ है । बड़ा आया वजूद वाला सुशीला बोलती अपने बच्चे इधर उधर भटक रहे हैं और ये वजूद की बात कर रहे हैं।

                अगर शर्मा जी पढ़ाई के लिए बच्चों को डांट देते तो तुरन्त सुशीला देवी बच्चों का पक्ष लेती और शर्मा जी को ही भला बुरा कहने लगती । फिर धीरे-धीरे स्थिति में हो गई कि बच्चे पिता के सामने आने से घबराने लगे और पिता से बातचीत भी नहीं करते थे उनके घर आने पर बच्चे दूसरे कमरों में छिप जाया करते। सुशीला देवी बच्चों का पक्ष लेती बच्चों के सामने पिता को भला बुरा कहती तो बच्चों के मन में भी अपने पिता के लिए नफरत की भावना घर करने लगी थी ।

पिता पुत्रों में दूरियां बढ़ने लगी ।घर में शर्मा जी जरूरत भर का सारा सामान मंगवा देते थे लेकिन पत्नी के साथ में पैसा नहीं देते थे। क्योंकि वो बच्चों को बिगाड़ रही थी। धीरे धीरे शर्मा जी के रिटायर मेट का समय आ रहा था लेकिन अभी तक बड़ा बेटा ही नौकरी पर आया था वो भी नौकरी ठीक से नहीं करता था मनमानी थी जब मर्जी हुई गया नौकरी पर नहीं तो नहीं ।इसी बीच उसकी शादी कर दी गई । बड़े बेटे को शराब की लत लग चुकी थी वो शराब पीए पड़ा रहता इसलिए कुछ दिनों बाद बीबी भी छोड़कर चली गई और नौकरी से भी संसपेड कर दिया गया ।

           उसके बाद बेटी की शादी कर दी ।अब बचे तीन बेटे तो तीसरा वाला राहुल तीन बार में इंटर पास कर पाया ।इसी बीच रेलवे में ड्राइवर की नौकरी निकली राहुल के साथ उसका एक दोस्त भी परीक्षा में बैठे । उसमें एक लाख रूपए चोरी से रिश्वत दी जा रही थी राहुल के दोस्त के पिताजी ने एक लाख रुपए देकर बेटे की नौकरी पक्की करा ली ।

अब सुशीला देवी शर्मा जी के पीछे पड़ गई कि तुम भी एक लाख रुपए देकर राहुल की नौकरी पक्की करा दो लेकिन शर्मा जी ने साफ मना कर दिया कि पहले लिखित परीक्षा पास करो फिर मैंने मैं देख लूंगा । लेकिन वो इस लायक था ही नहीं कि परीक्षा पास कर पाए  र ह गया ।अब तो जो महाभारत घर में हुई  सुशीला देवी में और शर्मा जी में कि कुछ पूछो नहीं ।

         रिटायर मेंट के बाद कुछ पैसा घर पर खर्च करके बाकी सारा पैसा अपने पास रखते थे शर्मा जी । हां फंड वगैरह कितना मिला या पेंशन कितनी मिलती है ये सब किसी को नहीं बताते थे। तीसरे लड़का जिसका विपुल नाम था उसने थोड़ी पढ़ाई की और विदिशा के किसी कालेज से बी,ई करके नौकरी करने लगा पहले काफी कम पैसा मिलता था लेकिन वो मेहनत करता रहा और धीरे धीरे आगे बढ़ गया ।

शर्मा जी की बस उसी लड़के से बात होती थी कहा पर क्या पैसा रखा है कहां एकाउंट है उसी को पता था ।इस बीच बाकी जो दो और बच्चे थे दोनों लड़कों को छोटी मोटी दुकान खुलवा दी और इस बीच सबकी शादी व्याह की भी जिम्मेदारी उठाई शर्मा जी ने । हां जिम्मेदारी तो उठाते थे पर सुशीला देवी को पैसे नहीं देते थे ।

           लड़ाई झगड़ा इतना बढ़ गया कि शर्मा जी अलग मकान में रहने लगे और नौकर लगा कर अपना काम करवाने लगे ।और फ़िर अचानक से शर्मा जी बीमार पड़ गए तो सुशीला देवी ने उनकी देखभाल करने से मना कर दिया ।अब शर्मा जी विपुल जो नौकरी कर रहा था उस बेटे के पास गए , बेटे और बहू ने उनकी अच्छे से देखभाल की लेकिन कुछ समय बाद शर्मा जी का देहांत हो गया ।

सुशीला देवी परेशान थी कि सब पैसा कहां रखा है किसी को कुछ बताया नहीं है कैसे पता लगेगा कैसे पैसे मिलेंगे।और मकान में भी सब लड़कों का नाम न लिखकर केवल उसी के नाम कर गए जिसने उसकी सेवा की थी बाकी लड़के तो बात ही नहीं करते थे गालियां निकालते थे बाप के लिए।अब जब उस बेटे से पूछा सुशीला देवी ने जिसके पास आखिरी समय थे तो उसने बताया कि हां पापा सबकुछ हमें बता गए हैं कहा पैसा रखा है ।अब पेंशन सुशीला देवी को मिलने लगी क्योंकि ये तो कानूनी हक है पत्नी का पत्नी चाहे जैसी हो।

           बाकी सभी काम तो शर्मा जी ने पूरे किए ही थे बस रिश्वत के खिलाफ थे।और वो कहते पत्नी से कि तुमने लड़कों को बिगाड़ दिया है वो मेरी भी इज्जत नहीं करते हैं , तुमने मेरी भी देखभाल नहीं की इसलिए मैं तुम्हे पैसा नहीं दूंगा।बस घर की जरूरत भर का करूंगा।

       इतने लड़ाई झगडे के बाद भी सुशीला देवी सिंदूर ऐसे लगाती थी जैसे बड़ी खुशहाल जिंदगी जी रही हो । पीले रंग वाला सिंदूर आगे से लेकर पीछे पूरी मांग भर कर रहती थी । इतना ज्यादा चमकता था वो कि क्या बताएं। मैंने मन में सोचा कि आंटी सिंदूर तो ऐसे लगाती है जैसे पति से बहुत प्रेम हो और इसका उल्टा घर में दिनभर क्लेश  मचा रहता था । मैंने एक दिन पूंछ लिया आंटी आप सिंदूर तो इतना सारा लगाती है लेकिन अंकल जी से तो दिनभर लड़ाई होती है आपकी।तो सुशीला आंटी बोली ये तो सुहाग की निशानी है न , मैंने कहा वही सुहाग जिसके लिए आप कहती रहती है कि मरता भी नहीं है ।

        दोस्तों हमारे संस्कृति में सिंदूर दान भी एक संस्कार है ।जिसको पति के द्वारा पत्नी के मांग में भरने पर एक दूसरे का होने का सम्पूर्ण जीवन एक साथ बिताने का प्रेम और समर्पण का गवाह होता है ।एक स्त्री सिंदूर को जीवन पर्यन्त धारण करना चाहती है ।और इसको प्रेम और आदर से धारण भी करती है । लेकिन जहां प्यार ंनहींएक दूसरे के प्रति सम्मान नहीं वहां इस सिंदूर का क्या महत्व यह तो निराधार और निष्क्रिय है ।

आप हमारी बात से कहां तक सहमत हैं ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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