“आप करती क्या हैं, सारा दिन घर में?बस पाँव फैलाकर बैठी रहती हैं।” ऐसा कहकर पूनम पाँव पटकती हुई वहाँ से चली गयी।
मीनू, पूनम के मुँह से ऐसी बातें सुनकर भौचक्की रह गयी। “यह क्या हो गया है इस लड़की को? कितनी बदतमीज हो गई है। ड्रेस जैसी छोटी सी बात के लिए इतना सब कुछ सुना दिया।” मीनू के कानों में अभी भी पूनम के शब्द गूंज रहे थे। ना चाहते हुए भी उसके आॕंखोऺ में आॕंसू तीर आए और आॕंखों के सामने सुबह का वाक्या घूम गया। वह किचन में थी तभी पूनम की जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज आई।
“क्या हुआ, इतना शोर क्यों मचा रही हो पूनम?”
“मेरी पिंक ड्रेस कहाँ है?”
“वह तो धुलने में है, कोई और पहन जा।”
“नहीं, मुझे वही पहननी थी, वह मेरी लकी ड्रेस है। आपसे एक ड्रेस भी नहीं धुली दो दिनों में। आप करती क्या हैं, सारा दिन घर में….?
यह कोई एक बार की बात नहीं थी। आजकल वह बात-बात पर मीनू से चिढ़ जाती थी।अब तो यह उसके रोज का नाटक हो गया था। कभी खाने को लेकर, कभी कपड़ो को लेकर या कभी किसी और बात को लेकर वह रोज मीनू से उलझ पड़ती थी।
दो दिन पहले जब उसकी फ्रेंड्स घर में आई थी। मीनू ने कितने प्यार से सबके लिए मठरी और हलवा बनाया था और सब ने बहुत चाव से खाया भी था। लेकिन, उनके जाते ही पूनम बुरी तरह बिखर पड़ी थी “मम्मा आप मठरी और हलवा क्यों लाई? मैं पिज़्ज़ा मंगवाने वाली थी।आज कल यह सब कोई खिलाता है क्या?
आपको तो कुछ भी नहीं पता। आगे से मेरी फ्रेंड्स के लिए आप कुछ मत बनाना मैं खुद ही ऑर्डर कर दिया करूॅंगी।” मीनू ठगी सी देखती रह गई थी। लेकिन, तब उसने सोचा था कि शायद पूनम का पिज़्ज़ा खिलाने का मन होगा और वह नाश्ता ले गई इसलिए उसने गुस्से में बोल दिया होगा।
यह सोचकर मीनू ने अनदेखा कर दिया था। लेकिन आज तो पूनम ने सारी हद ही पार कर दी थी। मीनू समझ ही नहीं पा रही थी कि आखिर पूनम को हो क्या गया है? क्यों उसका व्यवहार बद से बदतर होता जा रहा है?क्यों उनके प्यारे से रिश्ते में कड़वाहट धुलती जा रही है?
तभी फोन की रिंग से वह अपने विचारों से बाहर आई फोन उठाते ही ससुर जी की बेचैनी भरी आवाज उसके कानों में पड़ी “तुम ठीक हो ना मीनू बेटा?”
“हॉ॑, पापा जी मैं बिल्कुल ठीक हूॅऺ। लेकिन, आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं!”
“क्योंकि इतने सालों में आज पहली बार ऐसा हुआ है कि तूने अपने पापा जी को सुबह 10:00 बजे फोन करके दवाई की याद ना दिलाई हो।”
“सॉरी, पापा जी आपने दवाई ले ली ना। सॉरी, आज काम में इतना बिजी थी कि फोन करना ही भूल गई।” शर्मिंदगी के मारे उसके गले से मानो आवाज ही नहीं निकल रही थी।”
“तू कितना भी बिजी हो मुझे फोन करना नहीं भूल सकती। चल अब जल्दी से सच-सच बता बात क्या है?”
यह सुनते ही मीनू फट पड़ी और उन्हें सारी बातें बता दी। “पापाजी मुझे कुछ नहीं समझ आ रहा जब से वह कॉलेज गई है, तब से एकदम बदल सी गई है। सारा दिन फ़ैशन, घूमना- फिरना, मोबाइल, बाहर का खाना-पीना यही उसकी जिंदगी बन गए हैं। वह माँ जिसकी अंगुली पकड़कर उसने चलना सीखा वही अब उसे ओल्ड फैशन’ लगने लगी है।”
सारी बातें सुनकर वे समझ गए कि “अब तो पानी सिर के ऊपर जा चुका है। ऐसे तो नहीं चलेगा। पूनम को घर और माँ का महत्व समझाना ही पड़ेगा।”
यह सोचकर उन्होंने मीनू से कहा “सुन बेटा, मैं कल आ रहा हूॅऺ। आकर मैं खुद पूनम से बात करूॅऺऺगा। सब ठीक हो जाएगा।”
“क्या कहा पापा जी, आप आ रहे हो! पूरे 6 महीने बाद आ रहे हैं आप। अबकी बार मैं आपको जाने नहीं दूॅंगी।यही रहना होगा हमारे साथ।” ये सुनते ही मीनू बच्चों की तरह खुशी से चहकने लगी।
“हॉ॑-हॉं बेटा चाहता तो मैं भी यही हूॅं। लेकिन क्या करूॅं? यह शहरी आबो-हवा शरीर को सूट नहीं करती।”
“अच्छा यह सब छोड़िए। बताइए आप कल क्या खाएंगे?”
“बेटा,अब भारी खाना तो पचता नहीं है। इसलिए दाल रोटी और तोरई की सब्जी बना लेना।”
“जी पापाजी।”
दूसरे दिन मीनू के ससुर जी सुबह-सुबह पहुॅंच गए। जब शाम को पूनम घर आई तो दादाजी को देखते ही हाई-फाई देते हुए बोली “हेलो, ग्रैंड पा कैसे हैं आप?”
“पूनम, यह क्या तरीका है दादाजी के पैर छूकर आशीर्वाद लो।” मीनू ने पूनम को डाॅंटते हुए कहा।
लेकिन पूनम के कुछ कहने से पहले ही उसके दादाजी बोल पड़े “क्या मीनू! तुम्हें यह भी नहीं पता पैर छूना ‘इज शो आउट डेटेड।’ आजकल के बच्चे तो गले मिलते हैं।”
है ना ‘पू’।” यह सुनते ही पूनम उछल पड़ी।
“वाॅव, दादाजी ‘यू आर सो कूल।’ लेकिन आपको पता है मम्मा तो एकदम आउटडेटेड है। मैंने तो मम्मा को कितनी बार कहा है कि मुझे पूनम नहीं ‘पू’ बुलाइये पर ये तो कुछ समझती ही नहीं। हर बात के लिए रोकती- टोकती है। खुद भी बहनजी बनकर घूमती है और मुझे भी बहनजी बनाना चाहती है। कोई आजादी नहीं, कोई प्राइवेसी नहीं। मैं तो परेशान हो गई हूॅं।” पूनम की बातें सुनकर दादा जी को उस पर बहुत गुस्सा आया। लेकिन, खुद को सामान्य करते हुए बड़े प्यार से पूनम से बोले”
” पू , तुम सही कहती हो, तुम अब बड़ी हो गई हो, तुम्हें भी आज़ादी मिलनी चाहिए। तुम्हारी जिंदगी में हम सबकी दखलअंदाजी गलत है। आज से हम सब तुम्हारी जिंदगी में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। अपना सब काम तुम अपने हिसाब से और खुद ही करना।” यह सब सुनकर पूनम बहुत खुश हो गई।
रात के खाने का समय हो गया था, पर किसी ने भी उसे नहीं बुलाया। रोज बार-बार खुशामद करने वाली उसकी मम्मा ने भी आज उसे नहीं पूछा। जब भूख से परेशान होकर वह बाहर आई तो उसने देखा सब खा चुके हैं।
उसे बहुत अटपटा लगा। आज पहली बार सबने उसके बिना खाना खाया था। पूनम को देखते ही उसके दादाजी ने कहा – ” पू ,आज से तुम्हें यह दाल-रोटी वाला बोरिंग खाना खाने की जरूरत नहीं, तुम अपने हिसाब से टेस्टी खाना बनाकर खा सकती हो। कोई कुछ नहीं कहेगा।” उसके तो होश ही उड़ गए। जैसे-तैसे मैग्गी बनाकर खाई।
दूसरे दिन भी न तो उसकी मम्मा ने उसे सुबह उठाया, न चाय- नाश्ता दिया औऱ न ही उसका टिफिन बनाया। जैसे-तैसे तैयार होकर बिना टिफिन लिए ही कॉलेज गई। शाम को थकी-हारी आकर खुद ही चाय बनाई, अपने कपड़े धोये, कमरा साफ किया औऱ रात में भूखी ही सो गई। अब तो यह रोज का सिलसिला बन गया। न उसे ढंग का खाना मिल रहा था, न धुले हुए कपड़े औऱ न ही वह टाइम पर कॉलेज जा पा रही थी। उसकी ऐसी हालत देख फ्रेंड्स भी उससे कन्नी काटने लगे थे।
एक हफ्ते में ही उसकी हालत पस्त हो गई। अब उसे समझ आ रहा था कि माँ उसका कितना ध्यान रखती थी। उसे अपने व्यवहार पर बहुत शर्मिंदगी हो रही थी। वह माँ के पास जाकर बोली – ” माँ, मुझे माफ़ कर दो। मैंने आपका बहुत दिल दुखाया है।” माँ ने उसे सीने से लगा लिया।
तभी दादाजी ने चुटकी लेते हुए कहा- ” क्यों पू , आज मम्मा, माँ कैसे बन गई?
पूनम ने कान पकड़ते हुए कहा – ” दादाजी, पू नहीं पूनम। ये तो मेरी प्यारी माँ ही है , मैं ही बाहरी चकाचौंध में भटक गए थी।
दादाजी ने उसे गले लगाते हुए कहा-” कोई बात नहीं बेटी, सुबह का भूला शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते ।”
श्वेता अग्रवाल