Moral Stories in Hindi :
इंजीनियरिंग कॉलेज में सेमेस्टर ब्रेक होते ही अधिकांशत: पूरा कॉलेज ही खाली हो जाता है। दरअसल एक हफ्ते की छुट्टियां होती हैं तो हर कोई घर जाना चाहता है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। इक्का दुक्का लोगों को छोड़कर सभी प्रोफेसर्स और छात्र-छात्राएं घर जाने के लिए बसों से निकल पड़े। पहाड़ी इलाका में बस से ही आवागमन होता है। बस में लेक्चरार सुधा के साथ उसके तीन कलीग्स और आठ स्टूडेंट्स भी थे। डेढ़ घंटे बाद उनमें से दोनों कलीग्स और पांच स्टूडेंट्स का गंतव्य आ गया
और आधे घंटे और चलने के पश्चात दो स्टूडेंट्स भी बस से उतर गए। अब सुधा और एक स्टूडेंट राकेश साथ में ही बैठे थे और बातों-बातों में डिस्कशन उन दोनों के बीच शुरू हो गया, टाॅपिक था आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानि AI का बढ़ता प्रभाव जॉब परिप्रेक्ष्य में और निजता की सीमा के उल्लंघन में । इन सभी में दोनों ही तर्क वितर्क पेश कर रहे थे। अभी भी सफर करीब पौने दो घंटे का बाकी था। राकेश ने इयरफोन लगा लिए और कुछ बिंज वाचिंग करने लगा यूट्यूब पर।
सुधा सिर सीट से टिकाकार मैगज़ीन पढ़ने लगी। पढ़ते-पढ़ते थक गई तो सुधा की नज़र पूरी बस में फिरने लगी। बस में कोई सो रहा था तो कोई ऊंघ रहा था। एकाध जन मोबाइल पर व्यस्त थे। उसने देखा, दूसरी पंक्ति की आगे वाली सीट पर एक युवती सिमटी सी बैठी है, उसके साथ में एक अधेड़ व्यक्ति है। वो जिस तरह से दबी सिकुडी बैठी थी देखकर सुधा को आभास हुआ कि कहीं ना कहीं कुछ तो गड़बड़ है। युवती निगाहें झुककर बैठी थी तो पता नहीं चल रहा था कि क्या बात है। हाॅ॑! वो अधेड़ व्यक्ति बहुत तनकर बैठा था।
खैर, सुधा खिड़की से बाहर देखने लगी। उसका मन नहीं मान रहा था तो उसने दोबारा उसी तरफ देखा। उसकी नज़र युवती की नज़र से टकरा गयी, सुधा को देख युवती ने अपनी खुली हथेली को उसकी तरफ कर पहले अँगूठे को अंदर की ओर मोड़ा फिर चारों अँगुलियों से अँगूठे को ढक दिया।
ओह! सुधा की आशंका गलत नहीं थी। वह युवती वास्तव में किसी बड़ी मुसीबत में थी। युवती ने सुधा को ‘वुमन इन डेंजर’ का सिग्नल दिया था यानि ‘वह खतरे में है’ ऐसा इशारा किया था। बात करने पर वो अधेड़ व्यक्ति सुन सकता था । अतः दिमाग से काम लेते हुए सुधा ने राकेश को व्हाट्सअप कर अपना संशय ज़ाहिर किया। राकेश ने भी उस युवती और अधेड़ को देखा और उसने भी हामी भरी।यह सब व्हाट्सअप पर लिखकर हो रहा था। अब सुधा राकेश की निगाहें उधर ही गढ़ गयीं।
इसके साथ ही सुधा ने तुरंत अपने मोबाइल से १०० नंबर डायल किया।
ऑफिसर-इंचार्ज को वस्तुस्थिति से अवगत कराया। उन्होंने बस नंबर और रूट पूछा। सुधा ने रूट और बस किस रोडवेज की है, बता दिया परन्तु नंबर नहीं बता पाई। पुलिस ने सुधा को कहा कि नज़र रखे और बाकी उनपर छोड़ दे। सुधा का काम हो चुका था। अब सुधा और राकेश की पैनी नज़र उन दोनों पर ही थी।
करीब पौन घंटे बाद बस एक ढाबे पर चाय-नाश्ते के लिए बस रुकी, अधेड़ के उतरते ही वहाँ मौज़ूद पुलिस ने तत्काल दबोच लिया।
युवती ने बताया कि वह शहर में काम करती है, ये अधेड़ उसके गाँव का रहने वाला है और दूर के रिश्ते में उसका चाचा लगता है। उसे यह बोलकर कि उसके पिता मरणासन्न अवस्था में है , उस शहर से दूसरे शहर ले जा रहा है। बीच में युवती ने इसकी बात सुन ली थी किसी को बता रहा था कि माल लेकर पहुँच रहा है, अच्छी दाम मिलेंगे। जब युवती ने पूछा तो धमकी दी कि गाँव में माता-पिता को मरवा देगा, उसके आदमी गाँव में उसके घर पर पहरा दे रहे हैं। वह चुपचाप बैठ तो गयी क्योंकि अधेड़ कोई मौका नहीं दे रहा था।
सुधा को देखकर उसे अपनी मालकिन की याद आ गई जहां वो काम करती है जिन्होंने उसे औरतों-लड़कियों की मदद के इस संकेत के बारे में बताया था तो उसने सुधा को अधेड़ की नज़र बचाकर कर संकेत दिया।
अधेड़ व्यक्ति को तो पुलिस गिरफ्तार कर ही चुकी थी, पुलिस ने युवती के गाँव तत्काल कार्रवाही करते हुए अधेड़ ब्यक्ति के सभी साथियों को भी ह्यूमन ट्रैफिकिंग ( मानव तस्करी) में अरेस्ट कर लिया।
पुलिस ने ‘वुमन इन डेंजर’ संकेत को प्रयोग करने के लिए युवती और उसे देखकर त्वरित एक्शन लेने के लिए सुधा, दोनों की सराहना की। राकेश को भी युवती की सहायता करने के लिए पुलिस ने सराहा। बस में मौजूद महिलाओं ने भी उस संकेत को सीखा, समझा। महिलाओं ने मुसीबत के समय मसीहा बने ‘वुमन इन डेंजर’ सिगनल को ज्यादा से ज्यादा स्त्रियों तक पहुंचाने का संकल्प लिया।
पुलिस की टीम युवती को सुरक्षित उसके गाँव पहुँचाने निकल पड़ी , सुधा की बस भी अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी।
इति।।
लेखिका की कलम से
दोस्तों, मेरी इस कहानी में ‘वुमन इन डेंजर का प्रयोग कर एक युवती की ज़िंदगी बच गई। सभी महिलाओं से अनुरोध है कि इस संकेत को जाने, सीखें और सिखाएं, क्या मालूम कब जरूरत पड़ जाए या किसी और मुसीबत में पड़े व्यक्ति की आप मदद कर जाए।
-प्रियंका सक्सेना
(मौलिक व स्वरचित)