सुकून – कल्पना मिश्रा : Short Moral Stories in Hindi

Short Moral Stories in Hindi : गुड़िया की अचानक मौत की ख़बर पाकर हम दोनों बदहवास से उसकी ससुराल जाने के लिए निकल पड़े। उसने आत्महत्या कर ली थी और पीछे छोड़ गई थी एक चिट्ठी “मेरी मौत के लिए मेरे सास,ससुर व पति ज़िम्मेदार हैं इसीलिए उन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा मिले”  साथ ही उन पर दहेज़ के लिए प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया था उसने। इसीलिये पुलिस उन सभी को गिरफ्तार करके थाने ले गई थी।

माहौल ख़राब था। हो भी क्यों ना? जिस घर में मौत हो गई हो और घर के सभी सदस्य जेल में हों तो माहौल ग़मगीन होने के साथ ही ख़राब तो होगा ही… “पर क्या वो सच में दोषी हैं ..?”  मैं सोच में पड़ गई।

शादी के पहले से ही ऐसी थी मेरी बेटी गुड़िया ..बेहद क्रोधी और ज़िद्दी। अपनी ज़िद पूरी करने के लिये वह कुछ भी कर ग़ुज़रने के लिए उतारू हो जाती थी। हम दोनों उस पर गुस्सा करते, कभी प्रेम से भी समझाते, पर वह समझना ही कहाँ चाहती थी..?

अपनी हर बात मनवाकर रहती और यही कारण था कि अजय से शादी करने के लिए उसने अपनी कलाई की नस काट ली फिर ना चाहते हुए भी, अपनी जाई सन्तान का जीवन सलामत रहे, इसी मजबूरी में हमें उसके अन्तरजातीय प्रेमविवाह को इज़ाज़त देनी पड़ी।

मुझे अच्छी तरह से मालूम था कि गुड़िया जैसा चिट्ठी में लिखकर छोड़ गई है वैसा कुछ नही है ,हाँ सच में ससुराल द्वारा सताई हुई स्त्रियों की रक्षा के लिए बने कानून का फायदा उठाकर वह बेहद सज्जन और बेकसूर ससुराल वालों को ऐसे अपराध के लिए कसूरवार ठहरा गई, जो उन्होंने किया ही नही होगा।

भले ही उसने चिट्ठी में उन्हें दोषी ठहराया था , पर सच क्या है.. ये सिर्फ़ मैं ही समझ सकती थी। जानती थी कि असली दोषी तो मेरी बेटी ही है, जो अपनी ज़िद ,क्रोध और सिरफ़िरेपन के कारण अपना ही जीवन खत्म कर बैठी और ईर्ष्या की आग में जलकर इन्हें फंसा गई।




“क्या करूँ, क्या नही? इनका पक्ष लेती हूँ तो अपनी ही बेटी की बदनामी होगी और बेटी के पक्ष में खड़े होने का मतलब है सीधे सादे शरीफ़ लोगों के साथ अन्याय करना” मेरे दिलोदिमाग़ में अन्तर्द्वन्द जारी था “अब गुड़िया तो चली गई , चाहकर भी मुझे कभी नही मिलेगी.. उसका पक्ष ले लूँ तब भी नही।

पर अब यदि किसी निर्दोष को सज़ा हो गई तो एक हंसता खेलता परिवार बिखर जायेगा,,, नही, नही,, ये तो देख ही नही सकती मैं। मुझे दादी की सीख याद आ रही थी कि “कभी किसी के साथ अन्याय नही होना चाहिए ना अपने साथ और न ही किसी और के साथ,, फिर चाहे वो दुश्मन ही क्यों न हो।

यदि कभी ऐसी परिस्थिति आये तो हमेशा अपने मन की सुनना चाहिए”  मैंने अपने आँसू पोंछे। हालाँकि निर्णय लेना इतना आसान नही था पर कुछ तो करना ही होगा वरना देर हो जायेगी…हाँ, अब मुझे ही निर्णय लेना ही होगा,, एक बेकसूर माता-पिता और पति को न्याय दिलाने का निर्णय।”

दिलोदिमाग़ को संयत कर, बिना एक पल गंवाये हम पुलिस स्टेशन के लिए निकल पड़े और गुड़िया के सास ससुर एवं अजय को बाइज़्जत बरी करवाकर उन्हें उनके घर वापस ले आये।

पता नहीं मैंने सही किया या गलत , परन्तु बेटी को खोने के असहनीय दुख के बावज़ूद आज मेरे मन के एक कोने में किसी निर्दोष को बचा लेने का सुकून भी था।

कल्पना मिश्रा

कानपुर

 

मां पर होते हुए अन्याय को बेटी

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