विवाह के छह वर्ष पश्चात आधुनिक चिकित्सा पद्धति से निराश हो कर मुक्ता और राघव ने अनाथाश्रम से आठ माह की बच्ची गोद ली।
बच्ची के नाक नक्श तो तीखे थे परंतु वर्ण सांवला , स्वास्थ्य में भी दौर्बल्यता थी।
आज बच्ची का नामकरण है।
” मुक्ता! लेना था तो कोई गोरी चिट्टी सी बच्ची गोद लेती ,यही मिली तुम्हें मरगिल्ली सी ” । जेठानी ने बच्ची की तरफ बेमन से देखते गए कहा तो ननद भी भाभी के साथ सुर मिला कर बोली ” हाँ! मुक्ता कुछ तो देख लेती ; समझदार हो, ऐसा नासमझी क्यों दिखाई ?”
सबका आदर करने वाली मुक्ता का चेहरा ऐसी बातें सुन कर क्रोध से तमतमा गया ।
” यह बच्ची मेरे गर्भ से जन्म लेती तब भी आप ऐसे ही बोलतीं रंग तो दो ही होते है काला और गोरा। राघव का रंग भी सांवला है ; दीदी !आपका बेटा कौन सा गोरा है ? ” मुक्ता अपनी जिठानी से बोली।
” मर्द तो सांवले ही अच्छे लगते है ” जिठानी ने अपनी समझ दिखाते हुए कहा।
” आपको तो संतान हो गयी ना, इसलिए ऐसे बोल रही हो, मेरे हृदय में तो मातृत्व की धारा अब फूटी है … नव रात्रि में नौ देवियों को खूब मनोयोग से पूजती हो आप ;उनमें एक देवी माँ कालरात्रि होती है जिन्हें काले वर्ण के कारण माँ काली भी कहा जाता है ।आप उन्हें पूजना छोड़ दो तब मान जाउंगी आप की बात ; अनाथालय और घर के वातावरण में अन्तर होता है अपनी देखभाल से बच्ची के स्वास्थ्य में बदलाव तो अवश्य ले आऊंगी।”
नामकरण-हवन के दौरान पंडित जी ने मुक्ता से बच्ची के नाम हेतु सुझाव माँगा। मुक्ता बोली ”शुभंकरी ” । पंडित जी बोले “बेटी !तुमने नाम तो बहुत अच्छा चुना है अपनी बिटिया का; लेकिन पता है इसका अर्थ क्या है? “
” मुझे पता है पंडित जी ! शुभंकरी, माँ काली का दूसरा नाम है ।हमारी बेटी हम दोनों के लिए शुभ है, इसके आने से हम दोनों के हृदय में प्रेम दोबारा पल्लवित होकर धड़कने लगा है ” कहते हुए राघव ने मुक्ता की ओर मुस्करा कर देखा मुक्ता भी पति को देख कर मुस्करा दी।
दीप्ति सिंह (स्वरचित एवं मौलिक)