श्रद्धांजलि (भाग 9 ) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi

सुकन्या ने मेट्रो में मिली लड़की रजनी की बात भी उसे बताई। मृत्युंजय चाहता था कि सब कुछ पुलिस को बताकर वरदान को गिरफ्तार करवा दिया जाये जबकि सुकन्या चाहती थी कि वरदान का दाम्पत्य पूरी तरह बरबाद हो जाये और उसके पास अपनी पत्नी और बच्चों के पास लौटने के रास्ते बन्द हो जायें। उसकी पत्नी और बच्चे यहॉ तक रिश्तेदार, दोस्त, समाज उससे इतनी नफरत करें कि उसकी ओर देखना भी पसंद न करें। अभी तो वह अपनी पत्नी और बच्चों की दृष्टि में बहुत प्यार करने वाला पति और स्नेहिल पिता है। अभी तो वह कह सकता है कि उसे गलत फॅसाया गया है, सारे आरोप झूठे हैं। वह खुद परेशान हो कर तड़पे और खुद पत्नी और बच्चों को छोड़ने की बात अपने मुॅह से अपनी पत्नी से कहे।

हालांकि मृत्युंजय का बिल्कुल मन नहीं था कि इस नाटक को और आगे बढ़ाया जाये। उससे सहन नहीं हो रहा था – ” सब कुछ जानकर मैं अब तुम्हें उसके पास नहीं जाने दे सकता। मेरा मन कर रहा है कि अभी जाकर उसे गोली मार दूॅ।”

” और चाची के एकमात्र सहारे तुम्हें फॉसी हो जाये? थोड़े से आवेश में तुम उसे इतनी आसान मौत देकर मेरी और नीलिमा की यंत्रणा को क्या उत्तर दोगे? इसीलिये नीलिमा ने सब कुछ मुझे बताया क्योंकि वह जानती थी कि मैं जो भी निर्णय लूॅगी बहुत सोंच समझकर लूॅगी।”

फिर सुकन्या ने मृत्युंजय के हाथ पर अपना हाथ रख दिया – ” जय, मुझे दुख है कि मैं तुम्हें तुम्हारी नीलिमा वापस नहीं दे सकती । उसने मुझे पहले कुछ नहीं बताया। उसने तुम्हारे लिये सारे समझौते किये और अपने परिवार को अपमान से बचाने के लिये अपने प्राण दे दिये।”

” यही सोचकर तो मर जाने का मन करता है कि यह सब मेरे कारण हुआ है।”

सुकन्या ने एक ठंडी साॅस ली – ” हमारी नियति यही थी जय कि हम जिन्दगी भर अपनी नीलू के लिये तड़पते रहें तो क्या कर सकते थे हम? बस यदि हमने वरदान को उसके कृत्य का दंड दे दिया तो नीलू का प्रतिशोध पूर्ण हो जायेगा। हम दोनों मिलकर उसे यही सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं।”

फिर उन दोनों ने मिलकर आगे की योजना बनाई लेकिन मृत्युंजय ने एक शर्त रख दी – ” अब मैं वापस नहीं जाऊॅगा तुम्हें खतरे में छोड़कर।”

” लेकिन तुम्हारी नौकरी………।”

”  जाने दो, नौकरियॉ तमाम मिल जायेंगी लेकिन जानते हुये तुम्हें छोड़कर चला गया और तुम्हें कुछ हो गया तो जिन्दगी भर खुद से नजरें नहीं मिला पाऊॅगा।” आवेश में मृत्युंजय ने सुकन्या का चेहरा अपनी दोनों हथेलियों में भर लिया। थोड़ी देर दोनों बेसुध से हो गये। फिर चौंककर अलग हो गये।

” ठीक है, न तो मैं यहॉ रहूॅगी और न ही तुम इस शहर में किसी को मेरे साथ दिखोगे। अभी मैं अपने ही फ्लैट में रहूॅगी।”

फिर उन्होने तय किया कि आफिस के अलावा जब भी सुकन्या वरदान के साथ रहेगी मृत्युंजय को पूरी जानकारी रहेगी जिससे दूर से ही सही वह सुकन्या के साथ रह सके।

इसके बाद मृत्युंजय अपने कमरे में और सुकन्या अपने कमरे में चली गईं। सुमन ने नीलिमा का कमरा सुकन्या को दे दिया था।

जितने दिन सुकन्या रही, वरदान को बराबर मैसेज करके फोन बंद कर देती थी। सुकन्या के मम्मी पापा से जब चारो लोग मृत्युंजय के फोन से वीडियो काल से बात करते थे तो वो लोग बहुत खुश होते थे क्योंकि उन लोगों को सुकन्या के नये फोन के बारे में पता नहीं था और उसके पुराने फोन में यह सब सिस्टम है नहीं।

वैसे मृत्युंजय और सुकन्या में सामान्य बातें होती थीं लेकिन अपनी योजना सम्बन्धी बातें सुमन के शाम को बाजार या मंदिर जाने पर ही होती थीं।

मृत्युंजय ने सुमन को बता दिया कि उसे यह नौकरी पसंद नहीं है इसलिये उसने दूसरे स्थानों पर आवेदन किया है तब तक वह घर में रहेगा। सुमन की खुशी का ठिकाना न रहा।

जाने से पहले उसने मृत्युंजय से मोबाइल के कुछ नये सिम लेने को कहा, साथ ही यह भी कहा कि वह सिम अपने नाम से न ले।

सुबह आफिस में सुकन्या को देखकर वरदान बहुत खुश हुआ – ” तुमने बताया नहीं कि तुम आ रही हो, मैं तुम्हें लेने एयरपोर्ट आ जाता।”

” फिर अचानक मुझे देखकर तुम्हारे चेहरे की यह दमक और खुशी कैसे देखती? “

” मम्मी ठीक हैं?’

” हॉ ठीक हैं।” सुकन्या ने उतरे हुये स्वर में कहा।

” फिर इतना उदास क्यों हो?”

” लंच के लिये बाहर चलना तुम्हें कुछ बताना है।”

” तो फ्लैट पर चलते हैं जहॉ हम इत्मीनान से बातें भी करेंगे और इतने दिन बाद अच्छे से मिल भी लेंगे। तुम नहीं जानती कि मैंने यह समय तुम्हारे बिना कैसे बिताया है?”

” वरदान यह समय इन बातों का नहीं है, मैं सचमुच बहुत परेशान हूॅ।”

” कह तो रहा हूॅ कि घर चलते हैं, वहीं अच्छे से बात करेंगे। रास्ते से खाना भी लेते चलेंगे।”

” ठीक है, तब तक कुछ काम कर लेते हैं, इसके बाद निकलेंगे। मैं अपने केबिन में जा रही हूॅ।” सुकन्या ने उसी उदासी से कहा।

घर जाते हुये कार में भी सुकन्या चुपचाप बैठी थी। अपने फ्लैट में पहुॅचकर सुकन्या कपड़े बदलने चली गई और थोड़ी देर बाद जूस लेकर आ गई लेकिन उसकी उदासी जरा भी कम नहीं हुई।

वरदान ने उसे हाथ पकड़कर अपनी बगल में बैठा लिया – ” पहले बताओ क्या बात है? तुम्हारे चेहरे पर उदासी मुझे अच्छी नहीं लगती, बहुत प्यार करता हूॅ तुम्हें। तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूॅ। तुम नहीं जानती कि तुम्हें ऐसे देखकर मुझे कितनी तकलीफ हो रही है? ” सुकन्या का चेहरा दोनों हाथों में भरकर चूम लिया उसने।

” वरदान क्या सचमुच तुम्हें प्यार करते हो? या सिर्फ मेरी देह से ही खेलते रहे इतने दिन।” सुकन्या की ऑखों में ऑसू थे।

” तुम्हें क्या हो गया है, इस तरह मेरे प्यार पर शक क्यों कर रही हो? तुम्हारे लिये क्या नहीं किया है मैंने?”

” अगर तुम सचमुच मुझसे प्यार करते हो तो रुद्रा को तलाक देकर मुझसे शादी कर लो।”

वरदान चौंक गया – ” जब हमारे बीच में सब इतना अच्छा चल रहा है तो यह नई बात कहाॅ से खड़ी हो गई?”

” मेरे घरवाले मेरी शादी करना चाहते हैं लेकिन मैंने उनसे कह दिया है कि मैं तुम्हारे सिवा किसी की नहीं हो सकती। बहुत प्यार करती हूॅ तुम्हें।”

” प्यार तो मैं भी करता हूॅ लेकिन यह कैसे हो सकता है?”

” मुझे अपना लो वरदान, वरना मैं कहीं की नहीं रहूॅगी। तुम्हारे प्यार का अंश मेरे भीतर पनप रहा है।”

” यह कौन सी नई कहानी शुरू कर दी है तुमने? “वरदान सचेत होकर सीधा बैठ गया।

” मैं सच कह रही हूॅ, अगर तुमने इंकार कर दिया तो आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा मेरे पास?”

” तुम लड़कियों में यही सबसे बड़ी खराबी है कि तुम बातें तो बहुत बड़ी बड़ी करती हो लेकिन बाद में उसी सदियों पुराने स्थान पर आकर खड़ी हो जाती हो। किसी डाक्टर के पास जाओ और अंदर का सब कचरा बाहर फेंक कर तरोताजा होकर आ जाओ।”

” वो कचरा नहीं है, हमारे प्यार का अंश है। उसे मारने के लिये मत कहो।”

” फिर यह तुम्हारी समस्या है तुम जानो।” वरदान उठने लगा तो सुकन्या ने उसका हाथ पकड़ कर बैठा लिया – ” तुम जो कुछ कहोगे मैं करूॅगी लेकिन इस तरह मुझे छोड़कर न जाओ। इस समय तुम भी छोड़ दोगे तो मैं कहॉ जाऊॅगी ?जिस डाक्टर के पास चाहो , ले चलो।” सुकन्या जानती थी वरदान कभी डाक्टर के पास नहीं जायेगा।

” मुझे कहीं नहीं जाना है, अपनी समस्या तुम्हें खुद निपटानी है। मुझे इन सब झंझटों से कोई लेना-देना नहीं है।”

” तुम मेरे साथ ऐसा कैसे  कर सकते हो? मुझे इस तरह मझधार में नहीं छोड़ सकते?”

” डार्लिंग” वरदान ने कुटिल मुस्कान से कहा – ” तुम तो जीवन के आनन्द की बहुत बड़ी बड़ी बातें करती थीं। अब उसमें तुमने सतर्कता नहीं रखी तो मैं क्या कर सकता हूॅ? उसका फल तो तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा।”

” और हमारा प्यार…….।”

” आज के युग में प्यार वगैरह सब बेवकूफी की बातें हैं। शरीर की एक स्वाभाविक आवश्यकता होती है। उसी के कारण तुम मेरी जरूरत बन गईं थी और उसका मैंने तुम्हारी औकात से ज्यादा मूल्य चुका दिया है।”

सुकन्या फूट फूटकर रोती रही तभी वरदान उठकर खड़ा हो गया – ” मैडम सुकन्या, अब तुम मेरी जरूरत नहीं रहीं इसलिये अब हमारे रास्ते अलग हैं। किसी दिन आफिस आकर अपना तीन महीने का वेतन ले जाना। मुझे और आफिस दोनों को अब तुम्हारी जरूरत नहीं है।”

रोती हुई सुकन्या को छोड़कर वरदान चला गया। इसके तुरन्त बाद अपनी योजनानुसार सुकन्या फ्लैट छोड़कर मृत्युंजय के बताये दूसरे छोटे से मकान में आ गई।

अगले दिन सुकन्या सचमुच नहीं आई लेकिन वरदान के मोबाइल पर बहुत कुछ ऐसा आया जिसे देखकर वह बौखला गया उसने तुरन्त सुकन्या को फोन किया – ” हाॅ बोलो वरदान, कैसे याद किया?”

” यह क्या बदतमीजी है?” वरदान क्रोध से दहाड़ा।

” कौन सी बदतमीजी डार्लिंग?”

” यह सब क्या भेजा है मेरे पास? भूल गईं कि इन तस्वीरों में तुम भी हो मेरे साथ। तुम्हारी कितनी बदनामी होगी, मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा।”

” इस धोखे में मत रहियेगा मि० वरदान। मेरी छोड़िये, अपनी चिन्ता कीजिये। यदि मैं यौन शोषण के आरोप के साथ सब कुछ पुलिस को दे दूॅ तो क्या होगा? आपकी सुलक्षणा पत्नी और बहनों तक भी पहुॅचाने की सोंच रही हूॅ।”

” तुम ऐसा नहीं कर सकती।” वरदान के स्वर में कॅपकॅपाहट स्पष्ट थी।

” क्यों? जब हमारे रास्ते अलग हैं तो तुम्हें मुझसे कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिये। अभी तो मैं इस बच्चे को जन्म देकर इसका डी०एन०ए० टेस्ट करवाऊॅगी, तब कहना कि यह बच्चा तुम्हारा नहीं है। इस बच्चे का तुम्हारी सम्पत्ति में भी अधिकार होगा।”

” इस तरह रखैलों और वेश्याओं के बच्चों का कोई दावा नहीं होता, समझीं तुम।” वरदान क्रोध से पागल हुआ जा रहा है।

” यह सब मुझे मत बताओ, पुलिस और कोर्ट को समझाना।”

सुकन्या ने फोन बंद कर दिया। वरदान को विश्वास नहीं था कि इस बार शिकारी खुद शिकार हो गया है। वह बार बार सुकन्या को फोन करता रहा लेकिन हर बार फोन बन्द आ रहा था। वह सुकन्या के फ्लैट पर भी गया तो वहॉ पर ताला पड़ा था। गार्ड ने उसे एक एयरबैग लेकर जाते देखा था। कहाॅ गई सुकन्या?

वरदान तनाव में पागल हुआ जा रहा था। किसी से कुछ कह भी नहीं सकता था। घर में आते ही अपने कमरे में बन्द हो जाता। रुद्रा कुछ पूॅछने का प्रयत्न करती तो वह बुरी तरह बरस पड़ता, चीखने चिल्लाने लगता, अगर रुद्रा उसे शान्त करने का प्रयास करती तो वह तोड़ फोड़ करने लगा।

जब से गुड़िया के रोने पर उसने उसे थप्पड़ मारा, बच्चे बहुत डर गये थे।‌ वरदान के आते ही वे दोनों सहमकर रुद्रा से चिपट जाते।

एक दिन रुद्रा ने आफिस में फोन करके वरदान की समस्या का पता करना चाहा तो वहॉ भी कुछ पता नहीं चला। बस इतना पता चला कि काफी दिन से सुकन्या मैडम नहीं आ रही हैं तो बॉस को आफिस के कामों में परेशानी हो रही है। रुद्रा समझ गई कि विभागीय परेशानी के कारण वरदान का व्यवहार ऐसा हो गया है। वरदान ने शुरू से ही घर और आफिस को अलग रखा है। आफिस की कोई भी समस्या वह रुद्रा को नहीं बताता था।

कभी रुद्रा ने कहा भी तो वह कह देता – ” आफिस की चिन्ताओं के लिये मैं हूॅ। तुम्हारे पास और भी समस्यायें हैं उनको सम्हालकर तुमने मुझे निश्चिंत कर दिया है तो मेरा भी तो कर्तव्य है कि कुछ मामलों में तुम्हें निश्चिंत रखूॅ।”

जबकि आज घर आकर पहली बार उसने रुद्रा को थप्पड़ मारा – ” मेरी जासूसी करने की जरूरत नहीं। शान्ति से जीने दो मुझे।”

रुद्रा हतप्रभ थी वरदान के इस व्यवहार से। एक स्नेहिल पिता और प्रेमी पति को अचानक क्या हो गया? वरदान का बाहर और घर का व्यक्तित्व बिल्कुल अलग था। वह रुद्रा और अपने बच्चों को बेहद प्यार करता था और बहुत खुश रखता था।

घर में दहशत का माहौल व्याप्त हो गया था। रुद्रा ने भी वरदान से कुछ पूॅछना छोड़ दिया। उसे लगा कि सामान्य होने के बाद वरदान खुद उसे बतायेगा। उसे वरदान पर पूर्ण विश्वास था इसलिये वह वरदान को और अधिक परेशान नहीं करना चाहती थी।

एक हफ्ते के अंदर वरदान टूट गया। एक हफ्ते बाद किसी अनजान नम्बर से फोन आया – ” हलो ” बोलते ही सुकन्या की आवाज आई – ” कैसे हो वरदान?”

” तुम कहाॅ हो और क्या चाहती हो?”

” शादी।”

” तुम्हें पता है कि मैं यह नहीं कर सकता। तुम्हें जितना पैसा चाहिये, बोलो?”

” शादी से कम कुछ नहीं। तुम अपना सारा पैसा रुद्रा और बच्चों को दे दो। मुझे केवल तुम और मेरे बच्चे को तुम्हारा नाम चाहिये।”

” अगर मैं अब भी मना कर दूॅ तो…….।”

” तुम अच्छी तरह जानते हो कि तुम मना नहीं कर सकते। ” सुकन्या कुछ देर चुप रही फिर उसे वरदान की आवाज सुनाई दी – ” क्या हम एक बार मिलकर सारी बातें आराम से नहीं कर सकते?”

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श्रद्धांजलि (अंतिम भाग ) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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