श्रद्धांजलि (भाग 4 ) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi

नीलिमा आफिस तो आने लगी लेकिन उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी रहने लगी, तबियत बोझिल सी रहने लगी, काम में मन नहीं लगता था, गल्तियाॅ अधिक होने लगीं। सबसे बड़ी बात बॉस के व्यवहार में भी पहले जैसी बात नहीं रही।

एक दिन तो उन्होंने सबके सामने उसे बुरी तरह डॉट दिया – ” क्या बात है नीलिमा, काम में मन नहीं लगता तो नौकरी छोड़ दो। मुझे काम चाहिये, तुम्हारी जगह कोई दूसरा आयेगा।” नीलिमा सिर झुका लेती। बॉस को मालुम था कि नीलिमा अभी नौकरी नहीं छोड़ सकती है।

अब नीलिमा के पास इतना काम होता था कि वह आठ बजे के पहले आफिस छोड़ ही नहीं पाती थी लेकिन वह चुपचाप सहती जा रही थी,। पॉच महीने बीत चुके हैं उसको नौकरी करते, किसी तरह बाकी भी बीत जायेंगे।

एक दिन शाम को नीलिमा काम कर रही थी। एकाध लोगों को छोड़कर करीब सभी लोग जा चुके थे। नीलिमा के इंटरकॉम पर फोन आया, बॉस उसे बुला रहे थे।

” बैठो।” बॉस कुछ गंभीर से लगे, नीलिमा चुपचाप बैठ गई। कुछ देर कोई कुछ न बोला, फिर बॉस ही बोले – ” कल घर में बोलकर आना कि तुम रात में घर नहीं लौट पाओगी।”

नीलिमा चौंक गई – ” क्यों सर, मैंने आपको पहले ही बता दिया था कि मेरी अपनी कुछ समस्यायें हैं, इसलिये मैं देर रात तक नहीं रुक पाऊॅगी। वैसे भी मुझे आजकल घर पहुॅचने में देर हो जाती है।”

” यह तुम्हारी समस्या है , मेरा उन फालतू बातों से कोई लेना-देना नहीं है। रही बात इन्कार की तो यह लिफाफा खोलकर देख लो कि क्या तुम मना करने की स्थिति में हो।” बॉस ने नीलिमा के सामने एक बंद लिफाफा रख दिया – ” इसे खोलकर देख लो फिर बताना कि क्या तुम सचमुच इंकार कर सकती हो?”

नीलिमा ने कॉपते हाथों से लिफाफा खोला तो उसके पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। मेज पर पड़ी तस्वीरें देखकर उसके होश उड़ गये। उसे समझते देर नहीं लगी कि  पार्टी से लौटते समय बॉस और उसके दोस्त संजय ने उसे चाय में कुछ ऐसा पिला दिया कि वह अचेत हो गई। उसके बाद उन दोनों ने उसके साथ दुष्कर्म करके ये फोटो खींच ली। सामने बॉस कुटिल मुस्कान लिये बैठे थे ।

” इतना बड़ा विश्वासघात? मैं आपको क्या समझती थी और आप क्या निकले? मैंने आपका क्या बिगाड़ा था ?” नीलिमा की ऑखों से ऑसुओं की झड़ी लग गई।

बॉस बड़े इत्मीनान से उसे रोते हुये देख रहे थे, फिर बिना जरा भी संकोच के बोलने लगे – ” तुम्हारा रोना – धोना खतम हो गया हो तो आगे काम की बात कर ली जाये।” फिर उन्होंने ने नीलिमा की ओर झुकते हुये कहा – ” सोंच लो, अभी यह सब मेरे और तुम्हारे बीच में है। तुम्हारा भाई और तुम्हारी मॉ कभी नहीं जान पायेंगे। तुम्हारी नौकरी वैसे ही चलती रहेगी, एक साल बाद तुम अपने रास्ते चली जाना, मैं अपने रास्ते। मैं ये सारी फोटो पेनड्राइव सहित तुम्हें दे दूँगा। हमारे बीच का सम्बन्ध हमेशा के लिये समाप्त हो जायेगा।”

नीलिमा के पास कोई रास्ता नहीं था। उसने एक बार समर्पण किया तो बॉस के हाथ की कठपुतली बनकर रह गई। नीलिमा के बहुत मिन्नत करने पर वो बस इतना मान गये कि  उसे रात में रुकने को नहीं कहेंगे, जिससे माॅ को पता न चले लेकिन दिन में वह कभी मना नहीं करेगी।

बॉस और उनके दोस्त संजय का जब मन होता , होटल के किसी कमरे में या उस तलाकशुदा संजय के अकेले घर में नीलिमा को उन दोनों की वासना पूर्ति के लिये जाना पड़ता।

नीलिमा की हँसी खो गई। वह हर समय उदास रहने लगी। उसकी चहक भरी आवाज कहीं गुम हो गई। मम्मी के कई बार पूॅछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया। केवल इतना ही कहा – ” बहुत काम रहता है मम्मी, बहुत थक जाती हूँ।बस, थोड़े दिन बचे हैं भाई का एम०बी०ए० पूरा होने में। उसके बाद मैं नौकरी नहीं करूँगी।”

सुकन्या को भी कुछ नहीं बताया उसने  जबकि उसके व्यवहार में परिवर्तन सुकन्या अनुभव कर रही थी – ” मुझे पता नहीं क्यों लगता है कि तुम कुछ छुपा रही हो, कोई परेशानी है तो बताओ।”

उसने सुकन्या को भी वही बताया जो अपनी मम्मी को बताया था – ” कुछ नहीं सुकन्या, काम बहुत बढ़ गया है, इसलिये बहुत थक जाती हूॅ। कभी कभी तो घर आते आते रात के ग्यारह बज जाते हैं।”

”  तुम अपने बॉस को अपनी परेशानी बोलो कि तुम्हें इतनी देर तक न रोकें

” मैंने एक बार बोलकर देख लिया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। अब मैं कुछ नहीं कहूँगी। बस थोड़े दिन बचे हैं, इसी आशा में तो समय काट रही हूॅ।”

” तू बहुत बहादुर है नीलू, अपना ख्याल रखना। मृत्युंजय बहुत भाग्यशाली है जिसके पास तेरे जैसी बहन है। मेरी शुभकामनायें तेरे साथ हैं।”

” अपनों के लिये अपने ही नहीं करेंगे तो कौन करेगा?”

इस बार जब नियत तिथि को माहवारी नहीं हुई तो नीलिमा पीरियड होने की दवा लेकर आई लेकिन उससे कोई फायदा नहीं हुआ तो नीलिमा को चिन्ता हुई। अब वह और परेशान हो गई। चुपके से  ” प्रेगनेंसी टेस्ट किट ” ले कर आई, जिस बात का शक था वही सच्चाई सामने थी।

वैसे नीलिमा बराबर गर्भनिरोधक दवाइयों का प्रयोग करती थी लेकिन पिछले महीने उसको बुखार आने के कारण एक हफ्ते तक वह ये दवाइयॉ नहीं ले पाई, डाक्टर से क्या कहती? दवा लेने मम्मी खुद जाती थीं, वह मम्मी से कैसे ये दवाइयॉ मॅगाती? और जिस दिन आफिस आई उसी दिन इतने दिन के भूखे बॉस की उसे इच्छा पूर्ति करनी पड़ी।

अब क्या करे? जाकर बॉस से बताया तो उन्होंने साफ मना कर दिया – ” बकवास मत करो, मुझे इन सब फालतू बातों से कोई लेना-देना नहीं है।”

” सर, आपने ही मुझे इस स्थिति में पहुॅचाया है। मेरे पास आपकी तस्वीरें हैं, यदि वो सब मैं आपकी पत्नी को दिखा दूॅ तो?”

बॉस ठहाका मारकर हॅस पड़े – ” जाओ, दिखा दो। पहले तो मेरी पत्नी को तुमसे अधिक मुझ पर विश्वास है, तुम्हारी बात मानेगी नहीं। अगर मान भी गई तो उसे बहलाना मुझे अच्छे से आता है। तुम्हारे जैसी लड़कियॉ तो जिन्दगी में आती जाती रहती हैं।”

एक एक शब्द चबाते हुये बॉस ने कुटिलता से कहा – ” मेरी छोड़ो, तुम अपनी बात करो, पेट में बच्चा लेकर कहॉ जाओगी तुम? ये सारी तस्वीरें देखकर तुम्हारी मॉ और भाई कितने खुश होंगे?”

नीलिमा रो पड़ी – ” सर, ऐसा मत करिये। मेरी मम्मी यह बर्दाश्त नहीं कर पायेंगी। मेरे भाई की पूरी जिन्दगी बरबाद हो जायेगी, वह आत्महत्या कर लेगा। आप मेरे साथ डाक्टर के पास तो चल ही सकते हैं?”

” मुझे तुम्हारे झमेलों से कोई मतलब नहीं है। चुपचाप डाक्टर के पास जाओ और यह सब निपटाकर आओ।”

” सर, मेरी परेशानी समझिये, मैं किसके साथ डाक्टर के पास जाऊँ? इस समय मेरा साथ दीजिये, मेरे साथ डाक्टर के पास चलिये। मैं  हमेशा आपकी बात मानती रहूॅगी।”

” मुझे तुम्हारी फालतू बकवास में कोई दिलचस्पी नहीं है। यहॉ से जाओ।” नीलिमा चुपचाप अपनी बेबसी पर सिर झुकाये एक पत्थर दिल इंसान के सामने रोती रही लेकिन उस पर कोई असर न हुआ।

थोड़ी देर तक सन्नाटा छाया रहा फिर जैसे उन्होंने कोई फैसला लिया – ” अच्छा, तुम अपने केबिन में जाकर बैठो, कोई निर्णय लेकर मैं तुम्हें बताता हूॅ।”

नीलिमा अपने केबिन में आकर बैठ गई। करीब एक घंटे के अंदर उसकी मेज पर दो लिफाफे पड़े थे। एक में उसे नौकरी से निकाले जाने की सूचना थी, दूसरे में उसका तीन महीने का वेतन था।

हतप्रभ नीलिमा ने इंटरकाम पर बॉस से मिलना चाहा तो उन्होंने मिलने से मना कर दिया।

नीलिमा थके कदमों से आफिस से बाहर आई तो उसे दुनिया अंधेरी दिख रही थी। घर आकर भी उसने किसी से कुछ नहीं कहा। अपनी नौकरी छूटने की बात भी उसने मम्मी को नहीं बताई। पैसे की चिन्ता नहीं थी क्योंकि तीन महीने का वेतन उसके पास था। फिर भी उसे मालुम था कि नौकरी छोड़ने के बाद भी बॉस उसे ब्लेकमेल करना नहीं छोड़ेंगे।

उसे पता चल गया था कि उसके पहले की दो सेकेट्रियों ने भी बॉस की ऐसी ही हरकतों से परेशान होकर एक महीने के अंदर ही नौकरी छोड़ी थी। आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था लेकिन वह आत्महत्या नहीं कर सकती थी। उसकी मृत्यु के बाद पोस्टमार्टम में उसके गर्भवती होने का पता चलेगा, तब उसकी और उसके घर वालों की इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी।

दूसरे दिन भी वह नियत समय पर ही घर से निकली ताकि मम्मी को कुछ पता न चले। जाकर एक पार्क में बैठकर सोंचने लगी। क्या करे, क्या सुकन्या से बात करे लेकिन सुकन्या तो चुप बैठेगी नहीं।…..नहीं ….उससे बात करना ठीक नहीं है।

अचानक उसने निर्णय ले लिया कि सबसे पहले उसे डाक्टर से मिलकर अपने अंदर मौजूद बॉस की इस गंदगी से मुक्ति पानी है। वहीं बैठे बैठे उसने दो डाक्टरों से मिलने का समय ले लिया ताकि एक जगह काम न हो पाये तो दूसरी डाक्टर के पास भी आज ही जा सके। पहली डाक्टर ने तो इतनी पूॅछताछ की, लड़कियों के संस्कारों पर इतने उपदेश दिये कि नीलिमा और अधिक परेशान हो गई, दूसरे उसकी शर्त थी कि वह अपने साथ अपने प्रेमी या किसी घरवाले को लेकर आये।

दूसरी डाक्टर बहुत अच्छी थी। उसने नीलिमा से कोई बहस नहीं की। उसने नीलिमा को गर्भपात की दवाइयों के साथ कुछ परामर्श के साथ यह भी बताया कि उसे कम से कम तीन – चार बार उसके पास आना पड़ेगा।

एक सप्ताह के अंदर ही नीलिमा ने अनचाही समस्या से छुटकारा पा लिया। मम्मी यह तो समझ रही थीं कि नीलिमा किसी बात को लेकर परेशान है, लेकिन जब बार बार पूॅछने पर भी उसने केवल इतना कहा कि आफिस की कुछ परेशानी है, जल्दी ही ठीक हो जायेगी तो उन्होंने ‌भी अधिक पूॅछना ठीक नहीं समझा।

नीलिमा शारीरिक रूप से ठीक हो रही थी लेकिन मानसिक रूप से और उलझती जा रही थी। मृत्युंजय ने उसे बताया कि एम० बी०ए० के इम्तहान के पहले उसके कालेज में कई कम्पनियॉ आने वाली हैं, शायद इम्तहान के पहले ही कैम्पस सेलेक्शन में उसे नौकरी मिल जाये। नीलिमा के समक्ष अपना निर्णय स्पष्ट हो गया। अब उसके सामने नौकरी की कोई मजबूरी नहीं है। वह जानती थी कि कैम्पस सेलेक्शन में आई कम्पनियों में किसी न किसी में उसके मेधावी भाई को नौकरी अवश्य मिल जायेगी।

अब उसे केवल मृत्युंजय के नौकरी मिलने की प्रतीक्षा थी। उसने मम्मी को बताया कि उसके बॉस एक महीने के लिये विदेश जा रहे हैं, वह भी काम करके बहुत थक गई है, इसलिये कुछ दिन की छुट्टी ले रही है। यही बात उसने फोन पर सुकन्या और मृत्युंजय को भी बताई तो मृत्युंजय ने कहा- ” मुझे नौकरी मिल जाये तो तुम छुट्टियों बाद भी मत जाना, सीधे त्यागपत्र दे देना।”

मम्मी तो बहुत खुश हो गईं – ” ईश्वर तुम्हारी जैसी बेटी सबको दे। जय ठीक कहता है, अब तुम फिर से अपनी पढ़ाई शुरू कर देना।”

एक बार बॉस ने उसे फोन करके बुलाना चाहा तो उसने कुछ न कहकर बहाना बना दिया – “‌ सर, आपसे अलग होकर कहॉ जाऊॅगी लेकिन डाक्टर ने कुछ दिनों के लिये निर्देश दिये हैं। उसके बाद जैसा आप कहेंगे वैसा करूॅगी। ऐसा लगता है कि जैसे अब आप ही मेरी नियति बन गये हैं। “

बाॅस ने ठहाका लगाया – ” तुम चाहोगी तो तुम्हारी नौकरी फिर तुम्हें मिल जायेगी।”

” स्वस्थ होकर आऊॅगी, तब आप जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा।”

अब घर में रहकर नीलिमा हर वक्त मम्मी को सुख देने का प्रयत्न करती लेकिन मन अंदर से रोता रहता। क्या बीतेगी उन पर जब वह नहीं रहेगी? उसकी अच्छी भली जिन्दगी किस मोड़ पर आकर खड़ी हो गई?  मम्मी का असीम प्यार दुलार भी उसे अपने निश्चय से विचलित नहीं कर पा रहा था। उसे तो बस मृत्युंजय के एक फोन ही प्रतीक्षा थी।

जल्दी ही वह दिन आ गया जिसका नीलिमा को बेसब्री से इंतजार था। मृत्युंजय ने बताया कि कैम्पस में आई कम्पनियों में से एक में उसे अच्छे पैकेज के साथ नौकरी मिल गई है।

नीलिमा की ऑखों में ऑसू आ गये। आज उसकी तपस्या सार्थक हो गई है। इस दिन के लिये उसने कितना नरक सहा है, लेकिन अब नहीं…….।

” मम्मी, अब नौकरी नहीं करूॅगी, मैं कल अपना त्यागपत्र दे देती हूॅ।”

” बिल्कुल, बेटा। अब हमारी सारी मुसीबतें दूर हो गईं हैं, अब तुम्हें नौकरी की जरूरत नहीं है लेकिन तुम्हारे बॉस तो विदेश गये हुये  हैं।”

” तो क्या हुआ, मैं कल आफिस जाकर अपना त्यागपत्र बॉस की जगह काम देखने वाले दूसरे आफीसर को दे आऊँगी और आखिरी बार सबसे मिल भी आऊँगी।”

” ठीक है।”

उसने सुकन्या को फोन से बताया तो वह भी बहुत खुश हुई ;- ” तुम्हारे उस समय के उचित निर्णय के कारण यह संभव हुआ, अब निश्चिंत होकर पढ़ाई करना।”

दूसरे दिन सारा दिन नीलिमा घर के बाहर रही और शाम को घर आकर मम्मी को बताया कि उसने त्यागपत्र दे दिया है। नीलिमा मन ही मन अपने निश्चय को दोहराती लेकिन मम्मी का सोंचकर मन डगमगा जाता। चौथे दिन दोपहर को उसने कहा – ” मम्मी मेरा आज रसगुल्ले और समोसे खाने का मन कर रहा है।”

” कल बना दूॅगी।”

” नहीं, मेरा आज ही खाने का मन है। दो रसगुल्ले और चार समोसे के लिये मेहनत करने की क्या जरूरत? आप ज्यादा से बना लेंगी और मैं कई दिन तक खा खाकर ऊब जाऊॅगी। आप बाजार से ला दीजिये।”

” ठीक है, खाना खा लो फिर मुझे कुछ घरेलू सामान भी बाजार से लाना है। तुम्हारे रसगुल्ले और समोसे लेती आऊॅगी।” मम्मी प्यार से दुलराते हुये हॅस दीं।

उन्हें उस पर बहुत प्यार आ रहा था, न जाने कितने दिन बाद नीलिमा ने इतने प्यार से जिद करके कुछ खाने के लिये कहा था।

मम्मी को लौटने में करीब दो ढ़ाई घंटे लग गये। बहुत देर तक घंटी बजाने और दरवाजा खटखटाने के बाद भी जब नीलिमा ने दरवाजा नहीं खोला तो घबड़ाकर उन्होंने पड़ोसियों को आवाज दी। दरवाजा न खुलना था और न खुला। पुलिस बुलाई गई और दरवाजा तोड़ा गया लेकिन नीलिमा तब तक दुनिया छोड़कर जा चुकी थी और उसके पास ही मेज पर आत्महत्या का नोट पड़ा था जिसमें लिखा था कि अपनी मृत्यु के लिये वह खुद उत्तरदाई है, अपनी मर्जी से दुनिया छोड़कर जा रही है।

बहन की आत्महत्या सुनकर मृत्युंजय आया। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि नीलिमा ने ऐसा क्यों किया?

मृत्युंजय का मन माॅ को अकेले छोड़कर जाने का नहीं था, कैसे सूने घर में मॉ को अकेले रहने दे? नीलिमा का दुख मम्मी अकेले कैसे ढ़ो पायेंगी? एक मॉ ही तो बची हैं ।पापा पहले ही छोड़कर जा चुके हैं , नीलिमा तो न जाने क्यों बीच मझधार में छोड़कर चली गई। मृत्युंजय यह सोंचकर काॅप उठा कि अकेले घर में छोड़कर जाने से कहीं वह मम्मी को भी न खो दे।

लेकिन मम्मी नहीं मानी – ” जो हो गया लौटेगा नहीं। अपनी पढ़ाई पूरी करके इम्तहान दे ले फिर जहॉ तुम्हारी नौकरी होगी, ले चलना। अभी तुम खुद चार दोस्तों के साथ एक कमरे में रहते हो, मेरे चलने से परेशानी होगी। कुछ दिन मैं नीलू की यादों के सहारे गुजार लूॅगी।”

मृत्युंजय भी जानता था कि मम्मी ठीक कह रही हैं लेकिन उसका अपना मन नहीं मान रहा था। आखिर मॉ ने समझा बुझाकर मृत्युंजय को वापस भेज दिया।

अगला भाग

श्रद्धांजलि (भाग 5) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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