शायद कभी नहीं – संगीता श्रीवास्तव

Post View 3,146  “अरे, क्या कर रहे हो तुमलोग? शीशे हैं, चुभ जाएंगे पैरों में।” मैंने उन्हें टोका था। उन्हीं में से एक लड़के ने कहा था- “दीदी, हमने इन्हीं शीशों पर तो चलना सीखा है, इन्हीं कूड़ों पर तो होश संभाला है।” “पर इसके पहले तो मैंने तुम्हें यहां नहीं देखा।” “हां दीदी ,हम … Continue reading शायद कभी नहीं – संगीता श्रीवास्तव