शहर की चमक – सुनीता मुखर्जी “श्रुति” : Moral Stories in Hindi

संयोगिता बीए. फाइनल की छात्रा थी तभी पिता सतेंद्र को किसी ने शहर के एक खूबसूरत नौजवान लड़के का रिश्ता सुझाया। सतेंद्र शहर गए वहां शांतनु और उसके परिवार से मिले। शांतनु और उसका परिवार उन्हें एक नजर में ही पसंद आ गया।  इसी साल ही शांतनु की बैंक में क्लर्क की पोस्ट पर नौकरी लगी थीं।

गांव आकर सत्येंद्र ने अपने परिवार को रिश्ते के बारे में बताया,जो सबको पसंद आया । शांतनु के परिवार वाले सीमित लोगों को लेकर आए और सगाई की रस्म करके चले गए ।  एक महीने के अंदर ही दोनों विवाह के बंधन में बंध गए । 

संयोगिता और शांतनु का जीवन खुशी – खुशी व्यतीत होने लगा… परिवार के लोग संयोगिता को बहुत चाहते थे। परिवार की इकलौती बहू होने के कारण सबकी लाडली थी।

संयोगिता थोड़ी नकचड़े स्वभाव की थी…शहर की चकाचौंध और दिखावा बहुत पसंद था । शादी के कुछ महीनों के बाद संयोगिता गर्भवती हुई…

सासु मांँ ने आशीर्वाद देते हुए कहा ईश्वर तुम्हारी और तुम्हारे बच्चे की हमेशा रक्षा करें । संयोगिता सास की बात पर तपाक से बोली…. मैं अभी कोई बच्चा नहीं चाहती …जब तक शांतनु  प्रोबेशनरी ऑफिसर नहीं बन जाते। 

मेरा बच्चा एक क्लर्क का बच्चा कहलाए यह मुझे पसंद नहीं। शांतनु ने जब सुना,उसे बहुत गुस्सा आया । 

उसने समझाते हुए बोला-

“तुम नौकरी और पारिवारिक जीवन को एक तराजू में मत तौलो” । 

लेकिन संयोगिता समझना नहीं चाहती थी, और गर्भ से निजात पाने के लिए तरह-तरह के तरीके सोचने लगी।

एक दिन मौका देख कर संयोगिता गर्भपात करवा कर आ गई। उसकी इस हरकत पर परिवार के लोग बहुत गुस्सा 

हुए । लेकिन संयोगिता को कोई फर्क नहीं पड़ा ।

एक साल के बाद संयोगिता ने दूसरी बार गर्भ धारण किया … एक बार फिर परिवार में खुशी की लहर छा गई, सास ने बहु को समझाते हुए कहा… 

“बहू इस बार कुछ ऐसा वैसा मत करना”… संयोगिता ने कुछ जवाब नहीं दिया। 

एक दिन बिना किसी को बताए वह दोबारा गर्भपात करवा कर आ गई। बहुत समझाने के बावजूद संयोगिता  बार- बार गर्भपात करवाती रही  । अब ससुराल में उससे कोई ज्यादा बात नहीं करता था।

शांतनु और संयोगिता के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा था ।शांतनु ने समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह कुछ सुनना नहीं चाहती थी…शांतनु भी उससे अब कटे – कटे से रहने लगे।

सात साल के बाद शांतनु प्रोबेशनरी ऑफिसर बन गए। संयोगिता फूली नहीं समा रही थी, कहने लगी-अब मेरा रुतबा बढ़ेगा …मैं एक अधिकारी की पत्नी कहलाऊंगी । शांतनु ने कहा कि अब तो “मुझे पिता बनने का सौभाग्य मिलेगा”?

बच्चे के लिए हम तरस रहे हैं ।

संयोगिता बोली- हां क्यों नहीं मेरा बच्चा एक अधिकारी का बच्चा…। 

विवाह के 10 साल के पश्चात भी उन्हें बच्चे का सुख नहीं प्राप्त हुआ। बहुत इलाज कराया लेकिन डॉक्टरों ने स्पष्ट मना कर दिया… अब संयोगिता मां नहीं बन सकेगी….!

जब सासू मांँ और परिवार वालों को पता लगा तो उन्हें बहुत बड़ा धक्का लगा। 

संयोगिता के मायके वालों को घटनाक्रम के बारे में पूरी जानकारी थी…उन्होंने संयोगिता को कई बार समझाने की कोशिश की थी। लेकिन वह नहीं समझी। 

सासू मां ने संयोगिता के पिता को बुलाया, और कहा- कि संयोगिता के बच्चा नहीं होता… तो कोई बड़ी बात नहीं थी। ईश्वर की इच्छा समझ कर मान लेते…. लेकिन उसने जो जानबूझकर गलतियां की है, उसके लिए…. हम इस जन्म में उसे कभी माफ नहीं कर सकते हैं । 

“नाकों चने चबवा दिए हैं हमारे परिवार को… ! आप अपनी बेटी को ले जाइए…तलाक के पेपर हम भिजवा देंगे।”

पिता ने कहा – “हम उसे अपने साथ लेकर नहीं जाएंगे”। उसकी गलतियों पर मैंने और उसकी मां ने कई बार समझाया था लेकिन…. 

“अब हम उसके साथ नहीं हूं।” आप लोगों की जैसी इच्छा हो करें … कहकर वापस गांव चले गए ।

शांतनु ने संयोगिता को तलाक दे दिया । भरण-पोषण के लिए पैसा प्रतिमाह बांध दिया गया.. संयोगिता अपने कर्मों पर बहुत शर्मिन्दगी महसूस कर रही थी। 

शांतनु का दूसरा विवाह हो गया। लड़की बहुत संस्कारी और सुशील थी । घर को एक सूत्र में पिरो कर पूरे घर में खुशियां बिखेर दी । 

एक साल के बाद शांतनु के आंगन में किलकारी गूंजने लगी। पूरा घर खुशियों से भर गया।

सुनीता मुखर्जी “श्रुति”

लेखिका 

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित 

हल्दिया, पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल

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