” मैं तुम्हें पहले भी कह चुका हूं, मुझे तुम्हारा इस तरह से तुम्हारे बहन बहनोई से फोन पर बातें करना बिल्कुल पसंद नहीं है.. क्या तुम्हें याद नहीं तुम्हारी बहन के पति अभय ने मेरा कितना अपमान किया था? उसके बावजूद तुम अपनी बहन से बात करती हो.. क्या तुम्हें मेरी इज्जत की इतनी भी परवाह नहीं है “
निखिल की बाते सुन आराधना की आंखों से आंसू बह चले।
निखिल दिन पर दिन और कठोर होते जा रहा था। उसकी अपनी अकड़, गर्म मिजाजी और बदतमीजी से बात करने की आदत घरवाले सुन सकते हैं बाहर वाले सुनकर बिना जवाब दिए कहां छोड़ देने वाले हैं? पर यह बात समझा समझा कर आराधना थक चुकी थी।
निखिल स्वभाव से ही कड़ा और किसी से भी बात करने से पहले कुछ सोचता नहीं था, जो मुंह में आया बोल देता था। जब शुरू शुरू में आराधना ने चिंतित होकर अपनी सास से यह बात कही तो उन्होंने कहा था
” अरे जाने दो! मर्द जात है, गरम दिमाग होते हैं, बचपन से ही ऐसा जिद्दी है.. इसके पिताजी भी ऐसे ही है.. अब कहां किससे क्या बोलें? जैसा कहता है वैसा करो? या सुनके अनसुना कर दो”
आराधना को बहुत बुरा लगता कि कम से कम सास निखिल को सही गलत का भेद समझातीं तो सही! उनका पूरा परिवार समाज से कटा कटा रहता अपने इसी व्यवहार के चलते। आराधना के संग वैसे तो उनका व्यवहार बहुतेरे ठीक ही रहता लेकिन जब बात सामाजिक रिश्तो को निभाने की आती सब लोग दखलअंदाजी करने लगते थे।
पिछली बार जब निखिल अराधना के मायके गया था एक शादी में तो उसके छोटी बहन के पति अभय द्वारा साधारण से मजाक पर भड़क उठा था और भरी महफिल में उसे उल्टा सीधा बोल दिया था। अभय भी उस समय तो शांत रह गया लेकिन फिर निखिल जितने दिन रहा उसे नीचा दिखाने की हर कोशिश करता रहा, जिससे परेशान होकर उसने भी निखिल को उल्टा से सुना दिया था।
तब से निखिल ने फरमान जारी कर दिया था अराधना के लिए कि “आज से तुम अपनी बहन और बहनोई से कोई रिश्ता नहीं रखोगी” और यह कोई एक बात नहीं थी आए दिन निखिल कभी इससे तो कभी उससे बात करने से मना किया करता रहता था। किसी भी रिश्ते का लिहाज करना जैसे उसने सीखा ही नहीं था।
आज निखिल के इस फरमान पर आराधना के सब्र का बांध टूट पड़ा। उसने अपनी बहन को जन्मदिन की बधाइयां देने के लिए फोन किया था। उसे यह अफसोस हुआ की गलती उसी की थी। उसे बात बंद करनी ही नहीं चाहिए थी। पर उसने यही सोचा कि शायद कुछ दिन में निखिल का गुस्सा ठंडा हो जाएगा तब तक उसकी बात मान लेने में क्या बुराई है? पर यही सब चीजें थी जो उसे इस व्यवहार के लिए और बढ़ावा दे रही थी।
” देखो निखिल! तुम्हारा किस से क्या झगड़ा हुआ है वह तुम देखो.. मैं अब तुम्हारे फैलाए रायते नहीं समेटने वाली हूं.. तुम्हें नहीं बात करनी है मत करो.. वह मेरे रिश्तेदार है मैं बात कर रही हूं और रही बात अभय की तो तुमसे माफी मांगने के लिए कई बार कॉल कर चुका है और कोशिश भी कर चुका है, तुम हो कि बात खत्म करना ही नहीं चाहते हो। बड़े हो बड़प्पन दिखाओ। “
” अब तुम उनकी वकालत मुझसे करोगी? दूसरों के लिए अपने घर में झगड़ा करोगी? निखिल तमतमा कर बोला
” यह कौन सा हिसाब किताब है जिसमें तुम्हारे रिश्तेदार मेरा परिवार है और मेरे घर वाले तुम्हारे लिए दूसरे ‘बाहर वाले’ हो जाते हैं। अब बहुत हो गया मैं भी शादी करके आई तब से तुम्हारी मम्मी ने ना जाने मुझे कितनी बार क्या कुछ नहीं बोल दिया होगा, तुम्हारे घर में और भी लोग मुझे बहुत कुछ बोल चुके हैं लेकिन मैं अपने हैं यह समझ कर अनदेखा कर देती हूं और तुम हो कि बातों को तूल देने लगते हो। “
गुस्से में आराधना उठ के वहां से चली गई। उसे मालूम था बात बढ़ा कर कोई फायदा नहीं है। निखिल ना समझता है ना समझना चाहता है। गुस्से में निखिल भी बाहर चला जाता है। रात भर दोनों के बीच में कोई बात नहीं होती है। अगले दिन आराधना की बहन का फोन आता है
” दीदी अगर तुम भी यही चाहती हो तो मैं तुम्हें कॉल नहीं करूंगी.. लेकिन कल जो जीजू ने किया है वह बर्दाश्त करने से बाहर है। मैंने पहले भी कहा था अभय माफी मांगना चाहते थे और जीजू इस बात को आगे बढ़ा रहे हैं। हालांकि मजाक करना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन फिर भी मैं मानती हूं गलती अभय की थी जो उन्हें नहीं पसंद होने के बावजूद जीजू के साथ मजाक किया “
” अब क्या हुआ? बताओगी साफ-साफ.. “
आराधना ने घबराते हुए पूछा
” दीदी! कल जीजू ने रात के समय मेरी सास को फोन करके कहा कि आप अपनी बहू को काबू में रखिए, आप अपने बेटे को समझाइए.. वह हमारे घरेलू मामलों में दखल अंदाजी ना करें.. हमारे यहां फोन ना करें वगैरा-वगैरा.. क्या हमारा रिश्ता इतना कमजोर हो चुका है? जिन से रिश्ता होता है उनका मान सम्मान भी महत्व रखता है.. मैं किस मुंह से अपने ससुराल में बताऊं कि हां मेरी जीजू इसी स्वभाव के हैं.. सबको आपके ऊपर दया आने लगती है कि बेचारी कैसी रहती होगी? अगर बात इतनी आगे बढ़ चुकी है तो ठीक है आप मेरे लिए दीदी हो और हमेशा रहोगी, जब फोन नहीं होते थे तो क्या रिश्ते नहीं होते थे? हम नहीं बात करेंगे। पर आइंदा से आप जीजू को समझा दीजिएगा.. इस तरह से मेरे परिवार में बातें खराब करने की कोशिश ना करें “
आराधना का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसके सब्र का सारा बांध टूट चुका था। निखिल घर पर आया तो देखा आराधना सामान बाँध चुकी थी
” कहां जा रही हो? जरूर उन्हीं लोगों ने फोन करके कुछ उल्टा सीधा बोला होगा… मैंने कहा ना वह घर में आग लगा कर ही मानेंगे.. “
” बस बहुत हो गया निखिल!! अब नहीं!!! मैं इतने सालों से तुम्हारे व्यवहार को झेलती रही.. जिस तरह से तुम्हारे मम्मी पापा ने तुम्हारे इस स्वभाव को पोषित किया शायद मैं भी वही कर रही थी, बस इस बार.. चलो बस इस बार और जाने दो कह कह कर तुम्हारे हर गलत बात को हमने बर्दाश्त किया। आज तुम यह कर रहे हो कल को मेरे बच्चे भी यही सब करेंगे!! मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होता है.. उसे अपने साथ साथ समाज में रहने की भी कला आनी चाहिए। हर किसी से लड़ाई कोई समाधान नहीं होता है। बड़ों के प्रति आदर और छोटों को माफ करना सीखना चाहिए पर मैं भी किससे कह रही हूं तुम्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ता है तो मैं तुम्हें बता दूं कि तुमने मुझसे शादी की है कोई सौदा नहीं किया है जो मैं अब तुम्हारी संपत्ति हुई। तुम चाहोगे तो मैं इससे बात करूंगी.. तुम चाहोगे तो मैं उससे बात नहीं करूंगी… अरे मैंने तुम्हारे लिए अपना करियर दांव पर लगा दिया.. सब कुछ छोड़ छाड़ कर तुम्हारी जिद को पोषित किया पर अब बस!! अगर मैं अब ना रुकी तो खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊँगी.. और हां खबरदार जो मेरे किसी रिश्तेदार या परिवार वालों को फोन करके इस बारे में परेशान करने की कोशिश की क्योंकि अब मैं अपनी मर्जी की मालिक हूं ना मैं तुम्हारे कहने से जा रही हूं मैं किसी और के कहने से वापस आने वाली हूं.. तुम्हें तुम्हारी जिद और झूठी इज्जत मुबारक हो “
दोस्तों कभी कभी आपसे रिश्तो के बीच में गलतफहमियां आ जाती है पर उन्हें बात करके सुलझा लेना चाहिए। किसी भी रिश्ते में सौदेबाजी नहीं चलती है खासकर पति पत्नी के रिश्ते में विवाह हो जाने के पश्चात लोग जीवनसाथी को निजी संपत्ति समझने लगते हैं और चाहते हैं क्यों उनकी पसंद नापसंद, उनका समाज में उठना बैठना, इन्हीं के हिसाब से रहे जो कि कतई सही नहीं है और ऐसे व्यवहार को बढ़ावा दे नहीं देना चाहिए। घुट घुट कर जीने से अच्छा है, खुल कर बात कर लेनी चाहिए।
©सुषमा तिवारी