रोहित की बड़ी हसरत थी कि वह इंजीनियर बने उसके परिवार में वह पहला इंजीनियर बनने वाला था। पढ़ाई पूरी होते ही एक टेलिकॉम कंपनी में जॉब मिल गई सारे परिवार में खुशी का माहौल था।
दो साल बड़े अच्छे से निकल गये तभी कोरोना ने पांव पसारने शुरु कर दिये। कमाई से अधिक जीवन बचाने की जद्दोजहद शुरू हो गई लॉकडाउन के बीच लोग दहशतजदा होकर अपने अपने घरों की ओर भागने लगे। बहुत ही करुण दृश्य था, रोजगार खत्म हो चले थे पेट भरने का संकट मुँह बाये सामने था पर घर से निकलना मना था। बच्चों को भूख से तड़पता देखकर माँ बाप का क्या हाल होता होगा उसकी कल्पना ही रोंगटे खड़े कर देती है।
कुछ कंपनियों ने वर्क फ्रॉम होम की सुविधा दे दी थी अपने कर्मचारियों को पर रोहित का फील्ड वर्क था इसलिये उसे रोज ही साइट पर जाना पड़ता था। दो महीने घर रहने के बाद कंपनी ने उसे बुला लिया। वह जाना नहीं चाहता था पर जिस तरह कंपनियां छंटनी कर रही थी उसे देखते हुए थोड़ी सी भी आनाकानी का मतलब था नौकरी से हाथ धो बैठना इसलिए मन मसोस कर वह चला गया।
एक दिन उसका फोन आया कि उसका ट्रांसफर झारखंड के देवभूमि में हो गया है। यह क्षेत्र बहुत दूर और अंजान था बहुत सारी झूठी सच्ची खबरें भी वहाँ के बारे में सुनाई देती रहती थी मसलन वहाँ नक्सलियों का भय है वे कर्मचारियों को अगवा कर लेते थे और फिरौती लेकर ही छोड़ते। सबके मन आशंकित हो गये माँ का तो दिल डूबने लगा पर रोहित के पिता ने उन्हें समझाया अगर सब ऐसे ही सोचने लगे तो फिर वहाँ विकास कैसे होगा आखिर किसी को तो जिम्मेदारी लेनी ही पड़ेगी।
लेकिन माँ तो माँ होती है उसके घर से निकलने के पहले सौ – सौ हिदायतें देती.. बीच में जब भी फुर्सत मिले फोन जरूर करना.. कोई जंगली जानवर खासतौर से हाथी दिखे तो दूर से ही वापस लौट आना .. तुमसे हमारे बुढ़ापे की बहुत सारी उम्मीदें हैं बेटा कोई भी जोखिम लेने से पहले एक बार हमारे बारे में जरूर सोच लेना।
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माँ – नीलिमा सिंघल
ओ माँ.. मेरी प्यारी प्यारी माँ जिस तरह से आपको मेरी फिक्र है और आप अपने मन की हर बात जब चाहें तब फोन लगाकर मुझ से कर लेती हैं और मेरा हाल जानकर खुश भी हो जाती हैं और संतुष्ट भी कि आपके घर का चिराग सही सलामत है पर माँ क्या आपने कभी सोचा है कि इस दुर्गम इलाके से भी बहुत सारे नौजवान रोजी रोटी की तलाश में दूर दराज़ के क्षेत्रों में जाते हैं और महीनों उनका अपने घर वालों से कोई संपर्क नहीं हो पाता.. प्यार और परवाह तो हर इंसान में एक जैसी ही होती है न।
मैं अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझता हूँ जो उनके बीच सेतु बनने का सौभाग्य मुझे मिलने जा रहा है जब तक आपका आशीर्वाद मेरे साथ है तब तक मुझे कुछ नहीं होगा.. आप जानती हैं माँ जब मैं वहाँ जाता हूँ तो लोग मुझे घेरकर खड़े हो जाते हैं और मेरे वहाँ आने का मकसद जानकर और यह जानकर कि अब वे जब चाहेंगे अपने बच्चों और प्रियजनों से बात कर सकेंगे तो उनके चेहरे पर जो आशीर्वाद और कृतज्ञता का मिला जुला भाव होता है काश आप उसे देख पातीं तो जान पातीं कि कितने लोगों की दुआएं मेरे साथ हैं।
आखिर रोहित वहाँ पहुँचा उसका काम टेलिकॉम टॉवर लगाने के लिए सर्वे करना था उसका कार्यक्षेत्र जहाँ वह रहता था वहाँ से 40 किलोमीटर दूर था। रास्ता बिल्कुल सुनसान, दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आता ऐसे में अगर बाइक खराब हो जाए रास्ते में तो कम से कम 20 किलोमीटर घसीटना पड़े इसके अलावा जंगली जानवरों का डर अलग से। उस इलाके में हाथी बहुत है और वह कभी अकेले नहीं होते झुंड में ही रहते हैं कहीं बाइक की आवाज़ से उनकी शांति भंग हो जाए और वह हमला न कर दें यह भय हमेशा बना रहता उसके दिमाग में।
दूर दराज के गाँवों के रास्ते इतने ऊबड़ खाबड़ होते कि चलना मुश्किल होता कभी कभी लैंड माइन्स की खबर पेपर में आती तो जान मुट्ठी में आ जाती।कई बार तो वह इतना डर जाता कि साइट पर निकलने से पहले फोन करता और फिर वापस आने के बाद भी सूचित करता।घरवाले भी बीच में फोन करके डिस्टर्ब नहीं करते यह सोचकर कि कहीं जंगल में फोन अटेंड करने रुके तो कोई दुर्घटना न हो जाये।उसे विभाग से भी हिदायत मिली हुई थी कि हाथियों का झुंड दिखाई दे तो तुरंत वहीं से लौट आये।
इन क्षेत्रों में भी लोगों को नेटवर्क प्रोवाइड कराने की कोशिश सचमुच सराहनीय है ताकि वे भी देश दुनियां के समाचारों से जुड़े रहें और विकास से खुद को जोड़ पाएँ और उसका लाभ ले सकें लेकिन इस सबके पीछे ऐसे दुर्गम इलाकों में काम कर रहे लोगों को सलाम है क्योंकि सही मायने में उनकी कोशिश से ही हम सभी संचार सेवाओं का लाभ ले पा रहे हैं और घर बैठे देश विदेश से जुड़े हुए हैं यह नेटवर्क दिलों के बीच किसी सेतु से कम नहीं है।
#जिम्मेदारी
मौलिक एवं स्वरचित
कमलेश राणा
ग्वालियर