सह यात्री -बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

   पापा-पापा, आप कहाँ हो?पंडित जी आने ही वाले हैं।आप नहाकर तैयार हो जाओ।आप हो कहाँ?

    बोलते बोलते रोहन पापा के कमरे की ओर बढ़ गया,देखा पापा तो मम्मी की तस्वीर के सामने खड़े है,एकटक उधर ही देखते हुए,कुछ बुदबुदाते हुए।पापा अक्सर ही ऐसे ही मम्मी के फोटो के सामने घंटो बैठे रहते,सबकुछ भूलकर।ऐसे में रोहन या उसकी पत्नी शालिनी उन्हें कभी डिस्टर्ब नही करते।वे जानते थे पापा मम्मी से बेइंतिहा प्यार करते थे,आज जब मम्मी इस दुनिया मे नही है तो उनके फ़ोटो से बात करना जरूर उनको सुकून देता होगा।

      चालीस वर्ष पूर्व राजेश जी का प्रेम विवाह रागिनी से हुआ था।एक बार रेल्वे यात्रा में राजेश जी एवम रागिनी का अकस्मात ही परिचय हो गया था।दोनो का रिजर्वेशन तो था पर हुआ था आर.ए.सी.में।संयोगवश दोनो की सीट्स एक ही बर्थ पर पड़ गयी थी।अब एक लड़का और एक लड़की और दोनो ही अजनबी,पूरी रात्रि का सफर,तो संकोच और हिचक स्वाभाविक ही था। राजेश ने महसूस किया कि पूरी रात एक बर्थ पर इसी प्रकार बैठे बैठे कैसे बिताई जा सकती है,सो उसने उस सहयात्री लड़की से कहा कि

आप इस बर्थ पर सो जाइये,एक कंबल मैं ले लेता हूँ और इसे सामने की दोनो बर्थ के बीच बिछाकर वहां लेट जाता हूँ।लड़की ने कुछ न बोलकर आंखों से मानो थैंक्स बोला।सुबह होने पर पुनः दोनो को एक साथ बैठना ही पड़ा, तब तक दोनो की हिचक काफी हद तक कम हो गयी थी,सो राजेश ने ही बोलना प्रारम्भ किया।मै—राजेश,मेरठ से हूँ और इलाहाबाद जा रहा हूँ, हाईकोर्ट एक केस के सिलसिले में- और आप? मैं रागिनी मैं भी

मेरठ से ही हूँ और मैं भी इलाहाबाद ही जा रही हूं,जॉब के लिये इंटरव्यू देने।आपका धन्यवाद राजेश जी,आपने रात मुझे इतना कोऑपरेट किया। अरे छोड़िये रागिनी जी,एक ही बर्थ पर न आप सो पाती और न मैं,सो मैं नीचे सो गया,दोनो की प्रॉब्लम सॉल्व हो गयी, इसमें थैंक्स वाली कोई बात नही।इस बात पर दोनो ही हंस पड़े।

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     इलाहाबाद आने पर दोनो अपने अपने गन्तव्यों की ओर चल पड़े,पर इतना हो गया था कि एक दूसरे के फोन नंबर और एड्रेस दोनो ले चुके थे।उस समय मोबाइल फोन तो होते नही थे,सो लैंड लाइन फोन ही एक दूसरे को आदान प्रदान हुए।

      मेरठ वापस आने पर राजेश और रागिनी का संपर्क पहले फोन पर हुआ, फिर आपस मे मिलने लगे।कभी साथ सिनेमा देख लेते तो कभी कंपनी बाग में मिलते।स्थिति यह हो गयी थी कि दोनो एक दूसरे के लिये बेचैन रहने लगे।राजेश एक कंपनी में लीगल ऑफिसर था तो रागिनी को भी जॉब मेरठ में ही मिल गया था।

     उस दिन राजेश ने रागिनी से कहा,रागिनी एक बात कहूँ?हाँ-हाँ, बोलो ना क्या बात है?रागिनी मेरे बूढ़े माँ बाप हैं, जिन्हें मैं बहुत ही प्यार करता हूँ, उनकी जिम्मेदारी संभाल लोगी ना? सच रागिनी मैं अब मैं तुम बिन रहने की कल्पना भी नही कर सकता।संभालोगी ना अपना घर? राजेश हम इतने दिनों से मिल रहे हैं, एक दूसरे से प्यार करते हैं तो एक दूसरे को समझ भी गये होंगे तो तुम्ही बताओ तुम्हे क्या लगता है

,क्या मम्मी पापा वे मेरे नही होंगे?ओह रागिनी,कह राजेश ने एक गहरी सांस ली।

        कुछ समय पश्चात ही दोनो ने शादी कर ली।रागिनी एक आदर्श गृहणी व बहू तथा पत्नी साबित हुई।राजेश के माता पिता की जिम्मेदारी पूरे समर्पित भाव से रागिनी संभाल रही थी।रागिनी गर्भवती थी,तो राजेश ने एक फुल टाइम सर्वेंट घर मे रख ली,जिससे रागिनी पर एक्स्ट्रा बोझ ना पड़े।पर रागिनी अपने सास ससुर का ध्यान फिर भी खुद ही रखती।राजेश की सबसे बड़ी संतुष्टि यह थी कि रागिनी केवल उसकी पत्नी ही नही थी

वरन उसकी बौद्धिक खुराक भी थी।तनिक भी अपरिपक्वता रागिनी में नही थी।उसके हर हाव भाव को पता नही रागिनी कैसे ताड लेती थी?एक बार उसकी नौकरी पर बात आ गयी हालांकि नौकरी बच गयी थी,रागिनी ने समझ लिया कि राजेश कुछ तनाव में है।काफी कुरेदने पर जब राजेश ने बताया कि नौकरी जा सकती है तो सहज  भाव से बोली क्यो तनाव लेते हो राजेश दूसरी नौकरी ढूंढो, घर की चिंता मत करना, मैं हूँ ना,सब संभाल लूंगी।राजेश उसका मुंह देखता रह गया।

      समय चक्र बदलता गया,राजेश के माता पिता तो रहे नही, पर  रोहन आ गया उनके जीवन मे,बिल्कुल अपने पिता पर गया था। रोहन ने अब घर की जिम्मेदारी संभालकर अपने पापा मम्मी को हर जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया था,रोहन की पत्नी शालिनी भी उनका ध्यान रखती।राजेश जी बीमार रहने लगे थे,पर रागिनी थी ना तो उन्हें हौसला रहता,बिना रागिनी के वे अपने को असहाय पाते।हर समय रागिनी को अपने पास बिठाये रखते।

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और एक दिन तो राजेश के पास बैठी रागिनी बैठी बैठी राजेश को छोड़ अन्नत यात्रा को चली गयी।राजेश जी तो एकदम टूट गये, रागिनी के बिना उन्होंने जीना सीखा ही नही था।रागिनी की एक बड़ी सी फोटो अपने कमरे में लगवा ली थी,उसी के सामने बैठे हुए राजेश जी बात करते रहते,उन्हें लगता रागिनी कही गयी नही है, बल्कि वही आस पास ही है,बस दिखाई नही दे रही।रोहन और शालिनी पापा के मनोभाव समझते थे,पर माँ को कहाँ से

लाये।जब पापा मम्मी के फोटो के पास बात करते तो वे उन्हें ज़रा भी विघ्न नही डालते।उन्हें लगता इससे पापा को सुकून मिलेगा।रागिनी को गये एक वर्ष हो गया था,इसी कारण आज पंडित जी को बुलाया था।आज राजेश जी कुछ अधिक ही व्यथित थे।

      रोहन अब रात्रि में एक दो बार उठकर अपने पापा के कमरे में उन्हें देखकर आता,क्योंकि अब मम्मी तो थी नही।मम्मी की बरसी की रात्रि को राजेश जी की तेज आवाज सुनकर रोहन और शालिनी दौड़कर पापा के कमरे में पहुँचे तो  देखा पापा ,मम्मी के फोटो को दीवार से उतार कर अपने हाथ मे लिये जोर से कह रहे थे क्यूँ मुझे छोड़ गयी,

बोलो रागिनी बोलो।रोहन पापा को संभालने आगे बढ़े ही थे कि राजेश जी रागिनी का फोटो हाथ मे लिये लिये अपने पलंग पर गिर पड़े,रोहन ने पापा को जैसे ही पकड़ा तो पाया वे तो उसकी मम्मी के पास उन्हें छोड़ जा चुके।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित।

#हमसफर पर आधारित कहानी:

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