सीमा रेखा पार कर दी मैंने। – सुषमा यादव : Moral Stories in Hindi

शिवानी शादी के पहले से ही नौकरी कर रही थी, इसलिए वह अपने मायके में ही रह रही थी। उसके पति एक दूसरे प्रदेश में उच्च पद पर कार्यरत थे। 

शिवानी के मायके में उसके तीन भाई मां और पिताजी उसके साथ रहते थे। सबकी प्यारी दुलारी शिवानी थी। उसके भाई भी उसका बहुत आदर सम्मान करते। दीदी दीदी कहते उसके आगे पीछे घूमते। शिवानी के पति महीने दो महीने में एकाध बार चक्कर जरूर लगाते। सबके लिए महंगा महंगा तोहफा लाते। सब कोई हंसी खुशी से रहते।

कुछ दिन बाद शिवानी के भाई की शादी हुई। घर में नई बहू का पायल छनकाते गृहप्रवेश हुआ। 

पूरे घर में उत्सव का माहौल था। सास बहू की बलैया ले रही थी। दोनों देवर और ननद उसके आगे पीछे घूम रहे थे। बहू की खूब पूछ परख होती। उससे एक भी घर का काम नहीं कराया जाता, यदि उसे कुछ बनाने के लिए कहा जाता तो साफ कह देती, मैंने अपने मायके में कभी कुछ नहीं किया। मुझसे ना हो सकेगा।  अब शिवानी को ही करना पड़ता। 

धीरे धीरे शिवानी को परिवार वालों का भेदभाव रवैया समझ में आने लगा। उसका वहां रहना शायद भाभी को रास नहीं आ रहा था। वह दुखी और उदास रहने लगी। अंतरराज्यीय होने के कारण उसका तबादला भी अपने पति के कार्यरत स्थान पर नहीं हो सकता था। 

शिवानी अपने साथ हो रहे उपेक्षा और अपमान को अच्छी तरह समझ रही थी,पर सहने के अलावा कोई और चारा भी नहीं था। वह एक दम अलग थलग पड़ गई थी। उसी समय उसे एहसास हुआ कि वह मां बनने वाली है,पर किसी के रवैए में जरा सा भी फर्क नहीं आया।

एक दिन मोहल्ले की एक चाची उसके घर मिलने आईं,उनकी पारखी नजरों ने शिवानी के साथ उसकी भाभी और परिवार वालों का रवैया देखा और धीरे से शिवानी से बोलीं,चलो, थोड़ा बाहर घूम कर आतें हैं।

शिवानी उनके साथ चल दी। चाची जी उसे अपने घर लेकर आईं। उसे समझाते हुए कहा कि शिवानी अब तुम्हारा उस घर में

रहना ठीक नहीं है। वो घर अब तुम्हारे भाभी का है। शिवानी रो पड़ी, चाची जी, मैं कहां जाऊं ? 

चाची जी ने कहा,अब तुम्हारे पास एक ही रास्ता है, तुम यहीं कहीं पास में एक किराए का मकान ले लो। उसमें अपनी मर्जी से आराम से रहो। अपना मान सम्मान बनाए रखो।  इससे पहले कि वो लोग तुम्हें बेइज्जत करके घर से निकाल दें। 

शिवानी ने कहा, चाची जी, आपने तो मुझे एक महान संकट से ऊबार लिया। आपने बहुत अच्छी सलाह दी।

कुछ दिनों बाद शिवानी किसी की एक नहीं सुनती और चुपचाप अपना सामान पैक करती रहती।

एक दिन भाई ने कहा, दीदी, मेरे लिए चाय बना दो, शिवानी ने कहा, मैं स्कूल से थककर आईं हूं। 

भाभी से कह दो, मेरे लिए और सबके लिए चाय बना दे।या तो मां से कह दो।

भाई ने गुस्सा कर कहा, दीदी,आप अपनी# सीमा रेखा पार कर रहीं हैं। वो सो रही है।आप अब सबसे जुबानदराजी करतीं हैं।  आप हमारे घर में हमीं से जुबान लड़ातीं हैं। 

शिवानी ने अपने बैग उठाए,यह कहते हुए रिक्शा पर सामान रखा हां भैया, मैं अपने माता-पिता के बनाए हुए# सीमारेखा को पार करके अपने घर जा रहीं हूं,

यहां मत जाओ, वहां मत बैठो।ये करो वो ना करो। हमेशा मुझे एक सीमा में रहने को मजबूर किया गया अब बस और नहीं,और चल दी। पूरा परिवार उसके इस निर्णय को हक्का बक्का हो कर देखता रहा।

सुषमा यादव प्रतापगढ़ उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

 

सीमा रेखा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!