माँ का फोन बंद करने के बाद अंजली सोच में डूब गई। माँ कह रही थी संजना की तबियत आज ठीक नही है ।तुम फोन करके उसका हाल चाल पूछ लेना।बेचारी को सारा दिन काम से फुर्सत नही मिलती।कितना काम करती है ना।ऊपर से घर मे बजुर्ग सास ससुर। कितना थक जाती है बेचारी।
संजना अंजली की छोटी बहन थी।कहने को तो संजना अंजली से दो ही साल छोटी थी।लेकिन माँ ने उसे कभी बड़ी होने ही नही दिया।हमेशां उसे छोटी ही रहने दिया और उसको जो सिर्फ संजना से दो ही साल बड़ी थी अपनी उम्र से बहुत पहले ही बड़ी बना दिया यही सब सोचते सोचते अंजली अतीत की यादों में खो गयी।
बहुत छोटी थी तब दोनो बहने ओर दोनो से छोटा एक भाई।
सुबह स्कूल जाने के लिए अंजली सबसे पहले नहा कर तैयार हो जाती लेकिन मम्मी सबसे पहला परांठा संजना को देती और फिर छोटे भाई को। अंजली इंतजार करती रहती और उसकी बारी आखिर में आती। मम्मी का तर्क ये था कि वो दोनो छोटे हैं न।तुम तो बड़ी हो।
मम्मी ने जब भी कहीं जाना होता तो छोटी बहन को हमेशां साथ ले के जाती ।अंजली को घर पर रहना पड़ता क्योंकि वो बड़ी थी और संजना छोटी।
अंजली स्कूल से आकर मम्मी के साथ घर के सभी काम करवाती।मम्मी थकी होती तो उसके लिए चाय भी बनाती। जब अंजली कहती कि आज संजना को बोल दो मम्मी आगे से कहती कोई बात नही वो छोटी है तू बड़ी है न..तू तो मेरी बड़ी सयानी बेटी है। अंजली सयानी बेटी बनने के चक्र में कभी बच्ची बनी ही नही।बचपन मे ही बड़ी हो गयी।
मम्मी पापा जब भी बाजार जाते छोटी बहन के लिए हमेशां नई फ्रॉक या गुड़िया या कोई खिलौना आता। भाई तो खैर था ही लाडला।अंजली जब कहती मम्मी मुझे भी नई फ्रॉक चाहिए तो मम्मी कहती बेटी वो छोटी है ना तू तो बड़ी है।
अगर अंजली को कभी नानी या मौसी के घर से कोई तोहफा मिल भी जाता तो छोटी बहन रो रो के सारा घर सिर पर उठा लेती कि मुझे तो यही चाहिए और मम्मी कहती अंजली दे दे उसको बेटा.. वो छोटी है ना।
अंजली सयानी बेटी थी वो चुपचाप अपना तोहफा संजना को दे देती। अपनी हर बात संजना रो रो कर मनवा लेती।
ऐसे ही धीरे धीरे दोनो बहने कॉलेज पहुंच गई।अंजली सुबह उठ कर भी माँ के साथ काम करवाती। आकर भी शाम का काम करती फिर रात को पढ़ाई करती ओर हमेशां क्लास में टॉप करती।
संजना आकर बस या तो सोती या टीवी देखती ओर दोस्तों साथ घूमती । इसी लिए वो पढ़ाई में भी ठीक ठाक ही थी।क्योंकि वो माँ की लाडली थी तो उसको कोई कभी कुछ नही कहता था।अंजली को कभी कभी लगता कि कहीं वो माँ की सौतेली बेटी तो नही।
एक दिन सामने वाली पड़ोसन जो कि मम्मी की सहेली थी , माँ को मिलने आ गयी। उसने देखा कि संजना आराम से टीवी देख रही है औरअंजली रसोई घर मे खाना बना रही है।
उसने बोला” कभी संजना से भी काम करवा लिया करो ये कैसे और कब काम सीखेगी जब देखो अंजली ही काम करती रहती है”
आगे से माँ बोली,’छोटी है न.. अंजली तो बड़ी है और सयानी है वो खुद ही सारा काम सम्भाल लेती है।”
आगे से पड़ोसन ने जवाब दिया,देख अंजली की माँ, ये वैसे तो तेरे घर का मामला है।पर इस तरह तो संजना कभी बड़ी नही होगी।वो चाहे पचास साल की हो जाये अंजली से तो छोटी ही रहेगी न।लेकिन अब वो भी जवान हो गयी है उसको भी काम करने की आदत डाल। माँ के पास इस बात का कोई जवाब नही था।
अतीत की यादों से अंजली जब वापिस आयी तो वो सोच रही थी कि आज जब दोनो बहने पचास की उम्र को पार कर चुकी हैं और जवान हो चुके बच्चों की मॉएँ हैं अभी भी माँ को कभी नही दिखा कि अंजली कितने बड़े परिवार में गयी है और उस पर कितनी ज़िमेदारियाँ हैं।उसको अभी भी संजना ही छोटी और बेचारी लगती है। बड़ी छोटी का ये फर्क शायद कभी खत्म नही होगा।माँ के रहते तो हरगिज़ नही।
मौलिक एवम स्वलिखित
रीटा मक्कड़