Moral Stories in Hindi : खम्मा घणी ताई सा…
कैसी हो ताई सा….. घर में घुसते ही कला ने अपने ससुराल के पड़ोस में रहने वाली ताई सा सावित्री देवी जी को प्रणाम किया। सावित्री देवी अपने घर में अकेली रहती थी ,उनके कोई आस औलाद नहीं थी, पर उन्होंने गांव के हर बच्चे को अपनी औलाद मान लिया था।
हर किसी के सुख-दुख में वह साथ देती, गांव मानिकपुर में वो हर किसी के लिए एक प्रेरणा स्रोत थी। गांव की हर बच्ची को वह सिलाई कढ़ाई बुनाई की शिक्षा देती, उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने की यथासंभव कोशिश करती।
मानिकपुर एक छोटा सा राजस्थान का गांव है, जहां कला कभी दुल्हन बनकर आई थी, उम्र ही क्या थी कला की तेरह चौदह बरस की रही होगी,जब उसको ब्याह दिया गया था।
कला आज बहुत दिनों बाद अपने ससुराल मानिकपुर वापस आई थी। कला को देखते ही सावित्री ताई सा बहुत खुश हो गई, आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया, कैसी है मेरी छोरी, कितने दिन बाद देख रही हूंँ, मुझे तो लगा कि शहर जयपुर जाकर अपनी ताई सा को बिल्कुल ही भूल गई तू छोरी। मैं म्हारे मन में सोचा करती कि अब तो तू शायद मेरे मरने के बाद ही आवेगी मेरा चेहरा देखने की खातिर।
सावित्री देवी अपनी बात पूरी भी ना कर पावे थी कि कला ने उनके मुंँह पर हाथ रखते हुए कहा मरे आपके दुश्मन ताई सा ,आप तो हमेशा बस हमें सही राय दिखाती रहना, आपके आशीर्वाद की छत्रछाया हम पर यूंँ ही बनी रहवे,बस ईश्वर से यूंँ ही चाहते हैं।
चल चल छोरी अब ज्यादा बात ना बना तू, बता अब दोनों बालक बच्चे कैसे हैं तेरे, छोरी तो अब घनी बड़ी हो गई होगी, छौरा भी अब तो चार-पांच बरस का हो लिया होगा। स्कूल जावन लागा होगा।
जरा यूंँ तो बता कि तू क्यों ना लाई बालकण ने, देख लेती तो कलेजे को ठंडक पड़ जाती, और बता तेरा काम कैसा चल रहा है, गुजर बसर तो तेरी अच्छे से हो रही है ना छोरी।
सब भला चंगा चल रहा है ताई सा, बस यूंँ समझ लें ईश्वर के साथ साथ तेरा ही आशीर्वाद है जिसने किस्मत को धता बताते हुए, आज कामयाबी की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया है थारी छोरी को।
मैं आज ताई सा इसलिए ही आई हूंँ कि तू अब से हमारे साथ ही रहेगी यूं तुझे अकेले रहने की अब कोई जरूरत ना है ताई सा। अब तेरी बेटी कला अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी है, अब किसी की दया की मोहताज नहीं तेरी बेटी ताई सा।
तुझे याद है ना ताई सा, यदि तू ना होती तो जै तेरी लाडो कब की मर गई होती ,याद है ना तुझे जब मेरे पति का असमय ही देहांत हो गया था,गोदी में छ: महीने का छौरा था, और मेरी छोरी कुल पांच बरस की थी ,मैं तो किस्मत को कोस रही थी ,साथ-साथ मेरे ससुराल वाले मुझे कोस रहे थे ,वे अपने बेटे की मौत का जिम्मेदार मुझे मानते थे, क्योंकि उस एक्सीडेंट में उनका बेटा सर पर चोट लगने की वजह से खत्म हो चुका था और मैं अभागन बच गई थी।
मैं तो जिंदा लाश बन गई थी, पढ़ी-लिखी ज्यादा ना थी, हर तरफ मुझे सिर्फ अंधेरा ही नजर आता था,उस अंधेरे में बस एक ही रोशनी की किरण नजर आई और वो तू थी ताई सा, जिसने मुझे रास्ता दिखाया, मुझसे मेरी पहचान कराई ,मेरे हुनर से मुझे मिलवाया, हर एक से लड़ी मेरी खातिर।
सच कहूंँ ताई सा, तेरी सिखाई सिलाई कढ़ाई में मुझे पारंगत तो तूने पहले ही कर दिया था,पर अपनी बेटी कला का उसके अंदर छिपी कला से परिचय तूने ही करवाया । एक हिम्मत दी, एक स्तंभ बनकर खड़ी हुई, जिसके बल पर आज मैं जयपुर में एक छोटा सा बुटीक खोलने जा रही हूंँ। जिसकी नीव मैंने तेरे दिए आशीर्वाद स्वरूप उन कुछ रूपयो और तेरी सिखाई कढ़ाई, सिलाई की बदौलत ही डाली है ।
मैं तो अंधेरे को ही अपनी किस्मत मान चुकी थी ताई सा, पर तेरी प्रेरणा से ही आज अपना वजूद पाया है ।बस अब तू चल मेरे साथ ताई सा।उस वक्त मैं मजबूर थी, अपना ही आसरा ठिकाना न था ,पर आज तेरी यह बेटी तेरे आशीर्वाद से अपने पैरों पर खड़ी है और फिर तू भी तो यहां गांव में अकेली ही रहती है, अब तेरी ज्यादा काम करने की उम्र भी ना रही ताई सा।
अब तू चल मेरे साथ, चलकर कर तेरी बेटी के सावित्री कला बुटीक को संभालना, तेरी बेटी को आज भी तेरी जरूरत है ताई सा। सावित्री कला बुटीक नाम सुनते ही सावित्री देवी का हृदय भर आया, उन्होंने कला को अपने गले से लगा लिया ।आज किस्मत को पीछे छोड़ दोनों अनाथ सनाथ हो चुकी थी, बेटी को माँ की छत्रछाया मिल गई और मां को बेटी और उसका खुशहाल परिवार।
कृप्या पढ़कर अपने विचारों से अवगत अवश्य कराइयेगा, इंतजार रहेगा आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं का।
सादर धन्यवाद 🙏
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश
#किस्मत
बहुत ही अच्छा लगा। काश सभी लोग ऐसे अपनी मदद करने वालो को याद रखे।
Aap ki kahani bahut acchi hai