कहां से शुरू करुं?
लंबा वक्त गुजर गया
जब पापा की पढ़ाई में डूबी,रहने वाली,एक छोटे से परिवार की बेटी एक बड़े से परिवार की बहू बनी!
बहुत डरते डरते ही पापा ने हां बोला था
और डर होता भी क्यों ना?
आखिर जब पापा पहली बार मेरे ससुराल गए थे, सभी भाई, मेरे पूज्य ससुर जी ( जिन्हें सब दद्दा कह कर बुलाते थे साथ बैठकर जमीन पर पटा रखकर ,पंगत लगा कर, खाना खाया
बताते चलूं कि मैं छ: भाई,चार बहनों के भरे-पूरे परिवार की बहू हूं!
उनके लिए यह सम्मान की बात थी और मेरे पापा के लिए डर की, कि क्या मेरी बेटी भी इतने लोगों के लिए खाना बना लेगी?
घर में आए मेहमानों के साथ समय निकाल कर साथ में बैठकर भोजन किया जाता है।
ऐसा अम्मा ( मेरी सासू मां) हमेशा कहती थी…. कालांतर में मैंने जाना कि कभी कभी दद्दा जी किसी मेहमान के आ जाने पर उनके साथ दोबारा साथ में बैठकर भोजन करते थे… क्योंकि भले ही आपने भोजन कर रखा हो परन्तु मेहमान के सम्मान में उनके साथ बैठकर खाया जाता है… और फिर दो बार खाने के बाद खाने वाले का क्या हाल होता होगा आप समझ सकते हैं
मुझे संयुक्त परिवार में शादी नहीं करनी। – अर्चना खंडेलवाल : Moral Stories in Hindi
ऐसी ही अपने जीवन की अनेक अनमोल सीखें मैंने अपने दद्दा जी और अम्मा जी से सीखी… अरे भाई, अभी तो शुरुआत ही है
तो बात वही पर आ जाती है जब मैं अपने ससुराल विदा हो कर आ रही थी तो ब्यौहारी नामक जगह पर बस रूकी… चाय नाश्ते के लिए।
सभी नन्हे मुन्ने बच्चे रसगुल्ले ले आए, मुझे अपने हाथों से खिलाने के लिए
नई चाची.. नई मामी.. मेरे हाथ से…
और मैं गिनती भी नहीं कर पा रही थी कि मैं कितने बच्चों की चाची मामी बन चुकी हूं!
और एक अपने घर की सबसे छोटी बेटी रिश्तों की अनजान डोर में बंधी हुई.. अपने छोटों को अथाह स्नेह देना सीख गई!
जीवन की पाठशाला में जो सबक मिलते हैं उनके आगे स्कूल की शिक्षा व्यर्थ हो जाती है।
तो मैं अपने ससुराल के चार मंजिले मकान की चौथे नंबर की बहू बनकर आ चुकी थी।
घर में दादी मां भी थीं, जिनके चेहरे पर सदा एक स्मित मुस्कुराहट विद्यमान रहती थी।
और अम्मा जी?
मेरी अम्मा जरा तेज़ स्वभाव की हैं.. वो जैसी हैं वैसी ही रहेंगी.. वो किसी के लिए नहीं बदलेंगी। मेरी बड़ी भाभी पांच छोटे छोटे बच्चों को छोड़कर गुज़र गई हैं, उन बच्चों को सदा मां का प्यार देना…. मेरे पति देव ने पहले ही दिन यह अपेक्षा बता दिया था।…. और हां, पूरे गांव में चर्चा है कि बहुत पढ़ी लिखी बहू आई है तो किसी को शिकायत का मौका ना मिले।
पूरे घर में अम्मा जी का गज़ब और सख्त अनुशासन था
अम्मा की एक आवाज पर जो छत पर भी होता था चार मंजिल सीढियां उतरते हुए भागते हुए चला आता था।
अनुशासन और अनकहे स्नेह की डोर में अम्मा ने पूरे परिवार को एक सूत्र में बांध रखा था।
सबसे ऊपरी वाली मंजिल में सबसे पीछे वाला कमरा, गर्मी की छुट्टी में सभी ननदों के बच्चों के साथ आने पर बच्चों की धमाचौकड़ी का अड्डा होता था
जब अम्मा के पुकारने पर कोई नहीं सुनता था. तब अम्मा का कहना
… और लंदन के कोने में जाकर बैठ जाओ
और सभी बच्चों का डरते डरते, धीरे-धीरे सीढ़ी उतरना
और तब पता चलता था कि घर के बच्चों के साथ पड़ोस के भी कितने बच्चे घर में खेलने आए हुए हैं
उस समय हमारे पड़ोसी के घर में रेफ्रिजरेटर ना होने के कारण एक बार आइसक्रीम जमाने को दिया हुआ था…. और बच्चों ने उसे निकाल कर पूरा चट कर के डिब्बा बाहर रख दिया था।
और उनके मांगने पर मेरा माफी मांगना… बच्चे हैं, अपना समझ कर खा गए
अल सुबह सब बच्चों का टिफिन तैयार करना, स्कूल से आने पर होमवर्क देखना… पड़ोस के भी बहुत सारे बच्चे जो आज भी मिलने पर याद करते हैं कि चाची आपसे पढ़ने आते थे…
और इन सब यादों के बीच हमारे सैंया जी कहां है?
अरे भई, वो तो शादी के एक हफ्ते बाद ही पोस्टिंग आ गई थी तो बाहर चले गए थे
और मैं?
आप सभी के साथ साथ अपने जीवन की अनमोल यादों को आज दोबारा जी रही हूं!
जब हरि अनन्त हरि कथा अनंता
तब मेरे ससुराल की ढेर सारी यादें कैसे एक ही बार में पूरी हो सकती हैं
आप सभी का स्नेह बना रहा तो दोबारा लिखूंगी, किस्से इतने हैं कि आप डेली सोप क्या पूरा सीरियल बना लें!
वो कहते हें ना
क्योंकि मैं भी कभी किसी घर की बहू थी!
आज दद्दा जी, अम्मा जी दोनों नहीं है
उन दोनों की पवित्र यादों को नमन करके अपनी लेखनी को यहीं विराम देती हूं
वादा करती हूं यह पूर्ण विराम नहीं होगा
इस पर और लिखूंगी
आपकी सखि
पूर्णिमा सोनी
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
# संयुक्त परिवार, कहानी प्रतियोगिता, शीर्षक — ससुराल की खट्टी-मीठी यादें!!