ससुराल बना मायका – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

नारी जीवन तेरी भी ये कैसी अजीब कहानी…एक घर जहां जन्म व परवरिश यानि जीवन के प्रारंभिक पल, बालपन, अट्ठारह बर्ष का लम्बा सफर तय किया फिर विवाह कर दूसरे घर चली गई मालती एकदम नया घर नया माहौल…बहुत सहनशीलता चाहिए ढलने की ताकत बरकरार रखने के लिए, जहां कदम कदम पर कर्तव्य पूर्ति की अपेक्षा की जाती है न, ऐसे में बड़ा ही मुश्किल होता होगा न आत्मसम्मान, आत्मविश्वास बनाए रखना।

 ससुर जी ने शादी से पहले ही मालती के माता-पिता को कह दिया भई लक्ष्मी जैसी बहु दे रहे हो हमें और क्या चाहिए…?  हमारे पास भगवान का दिया सब कुछ है.. किसी चीज की कमी नहीं है बस सुन्दर सुसंस्कृत सुशील बहु की चाह थी सो मिल गई तो हमारे तो सारे अरमान ही पूरे हो गये।

शादी कर माता-पिता के घर से विदा होकर महेश के घर आ गई मालती के सास ससुर रिटायर अध्यापक, महेश उनकी इकलौती बहुत देर व मन्नत से मिली सन्तान। महेश फौज में नौकरी करता। मालती का व्यवहार उसका अपनत्व व स्नेह बंधन पति महेश को ही नहीं पूरे परिवार को बांध कर रख देता है। उसके मिता पिता के दिए संस्कार ससुराल में मिला लाड़ प्यार धन्य हो जाती है मालती, उसकी सासूमां भी उसे नये परिवेश में ढलने के लिए आगे आकर मदद करती ओढ़ने पहने कोई फालतू छोटी मोटी बातों की रोका टोकी नहीं…सासूमां तो उसका गुणगान करते नहीं थकती.. कैसे एक घर की बिटिया दूसरे घर की बहु बन कर जानी जाने लग जाती है..?

जब पहली बार पग फेरे की रस्म निभाने ससुराल से मायके गई ससुराल का गुणगान करते नहीं थकती थी मालती ।एक बेटी ससुराल से मायके आकर ससुराल का गुणगान करे एक मां पिता के लिए इससे बढ़कर खुशी और शाय़द ही कोई और होगी। दोनों खुशी से फूले नहीं समाते ईश्वर का धन्यवाद करते और सदा सुखी खुश रखने की दुआएं मांगते।

एक माह की छुट्टी आये महेश को पहले ही छुट्टी रद्द कर बुलावा आ जाता है जम्मू-कश्मीर बार्डर पर ड्यूटी उसकी …मातृभूमि की सेवा देखभाल देशवासियों की सुख-समृद्धि शान्ति, खुशहाली के लिए अपने जीवन को अर्पित करने वाले फौजी जो कि मजबूती से डटकर टक्कर देना जानते हैं। महेश वापसी का समाचार पा तनिक भी विचलित नहीं होता…

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“ वैसे भी एक फौजी बनना आसान काम नहीं है उसका तो कार्य की चुनौती पूर्ण होता है जीवन कठिनाइयों, चुनौतियों से भरा जिसका सामना आम व्यक्ति के बस की बात नहीं है “!!

पति कै ड्यूटी पर जाने विदाई देते मालती निस्सहाय सी खड़ी दूर तक जाते देखती रहती है जल्दी लौट आने का वादा कर महेश चला जाता है। घर की जिम्मेदारियों का बोझ लिए अपनों से बहुत दूर भावुक हुए आँखों में आँसू लिए चलता जाता चलता जाता शायद पीछे मुड़कर न देखने की कसम खाई हो जैसे..

अभी उसे गये दो हफ्ते भी नहीं बीते होंगे सुबह सुबह समाचार जिसमें बताया बार्डर पर दुश्मनों के द्वारा चलाई गोलियों से चार फौजी शहीद हो गए जिसमें महेश का नाम सूनकर मालती अपनी सूधबूध ही जैसे खो देती है …बूढ़े मां-बाप पर तो जैसे दुख का पहाड़ ही टूट जाता है…एक तो बूढ़ापा दूसरा वो भी इकलौती संतान उससे जुदा होने का दर्द लफ़्ज़ों में बयां करना नामुमकिन सा है।

 बूढ़े माता-पिता को अपनी चलती साँसे उधार की साँसों सी लगने लगती है। महेश की अन्त्येष्टि अन्तिम विदाई हो जाती है…माँ पिता का उसे सीने से न लगा पाने का दुख पिता का बाहों के घेरे में न समाने की पीड़ा दोनों का दिल उमड़ उमड़ कर रोता.. लेकिन युवा नवविवाहिता बहु का दुख देखकर वो अपने आँसू भीतर ही रोक लेते हैं।

महेश तो चला गया पिता, माँ, पत्नी का कर्ज दार बनकर..एक फौजी की जिंदगी होती ही ऐसी है –

“ जब वो फौजी बार्डर पर लड़ता तो केवल वो ही नहीं लड़ता उसके साथ उसके परिवार का हर सदस्य लड़ता है.. खुद से समाज से, सबसे बड़ी लड़ाई ईश्वर से लड़ता है रोज दुआएं मांगकर “!!!

मालती अपने वृद्ध सास ससुर को दुखी देखकर हिम्मत से काम लेती इस संसार में एक फौजी की पत्नी शेरनी से कम कहां होती कहती मै ऐसे शहीद की पत्नी हूँ जिसने देश के लिए प्राण न्यौछावर किए हैं। कहने को तो कह देती मगर भीतर से जानती…दुख को बर्दाश्त करने की कोशिश करती-

“ इस दुनिया में दो लोगों का साहस, बलिदान देख दिल दंग रह जाता है एक तो फौजी की माँ,दूसरा फौजी की पत्नी.. दोनों की जिंदगी वही खत्म हो जाती है जब वो उसे सरहद पर भेजती है। जिगर लोहे जैसा बन जाता है, शायद उसका “ ।

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समय बड़े से बड़े घाव भर देता है…धीरे धीरे मालती सास ससुर के संरक्षण में दिन व्यतीत करने लगती है उसके माता-पिता की लाख कोशिश के बाबजूद सास ससुर उसे मायके नहीं भेजते अपने पास ही रखते हैं । कहते अब ये भी इसका ही घर है। सास ससुर उसे बहु की जगह बेटी सा प्यार दुलार देते हैं।एक दिन ससुर किसी काम से बाहर जाते वहां उनकी मुलाकात युवा अध्यापक मनीष से होती है वो उसके विचारों से काफी प्रभावित होते हैं । समाज पर न्यौछावर व्यक्तित्व। धीरे धीरे मनीष का घर में आना जाना शुरू हो जाता है वो इतना व्यवहार कुशल वृद्ध दम्पति को अपने बेटे सा लगने लगता है।

एक दिन मनीष मालती से विवाह का प्रस्ताव महेश के माता-पिता के आगे रहते हैं…आप लोग इजाजत दें तो मै मालती से विवाह के लिए तैयार हूँ ..

सास ससुर को मनीष में नेक दिल इंसान के दर्शन होते हैं। वो मालती को समझाते हैं बेटा तुम युवा हो तुम्हारे आगे पहाड़ सी जिंदगी पड़ी है हम ठहरे वृद्ध जन जब तक हैं, ठीक है.. जाने कब ऊपर से बुलावा आ जाये.. मनीष अच्छा लड़का है तुम विवाह कर लो हम तुमको बेटी बना विदा कर देंगे ताकि हम भी निश्चित हो कर चैन की नींद सो सकें।

काफी मशक्कत, समझाने के बाद मालती विवाह के लिए तैयार हो जाती है। और एक दिन वो जिस घर में बहु बनकर आई थी आज बेटी बनकर विदा हो जाती है । सास ससुर उसे गले लगा विदाई देते हैं .. बिल्कुल वैसे ही जैसे अपनी बेटी की शादी, विदाई की जाती है कन्यादान सभी रस्में बखुबी निभाते…मालती उसका दिल लाख दुआएं देता जैसे मेरे सास-ससुर हर को ऐसे ही नसीब हों और जैसा मेरा ससुराल ऐसा ही सबके नसीब में हो ऐसे ही….सास ससुर के रूप में नाज नखरे उठाने वाले माता-पिता… आखिर मालती का ससुराल उसके लिए मायका बन जाता है।

 लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया

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