आज इतवार था ।सुबह उठकर चाय ही बनाने जा रही थी कि फोन बज उठा । देखा तो मम्मी जी का फोन था । मन में अनेकों पुरानी बातें घूमने लगी..हमारी बातें तो काफी समय से बंद है तो आज क्यों कॉल आ रहा , सब ठीक तो होगा ? खैर ..सवालों को अपने दिमाग में ही चलने दिया और फोन उठा लिया ।
इतने दिन बाद भी..”मम्मी जी की पुरानी आदत,हमेशा की तरह..न दुआ न सलाम…बस जरूरी काम । कान में जैसे ही फोन लगाई मम्मी जी शुरू.. “सुन स्वाति ! तेरी ननद की शादी तय हो गयी है । कार्तिक महीने की पूर्णिमा मतलब 27 नवम्बर को हमारे घर बनारस से ही शादी है । आशा है तुम अपने पति और बेटी के साथ जरूर आओगी । अभी कुछ ही दिनों में कार्ड तुम्हें मिल जाएगा, मुझे कोई बहाना नहीं चाहिए । तुम्हारी ननद के परिवार वाले और होने वाले ननदोई जी बहुत अच्छे हैं ।
तुम घर की इकलौती बहु हो, या यूँ कह लो हमारे घर की इज्जत तुम हो तो उम्मीद यही करती हूँ कि तुम आकर हमारे परिवार की इज्जत और हमारे घर का मान रखोगी । तुमने तो इस कदर मेरे बेटे की आँखों पर पट्टी डाल रखी है कि उसे हर बात तुम्हारी ही सही लगती है ।
लेकिन जान लेना बहु वरना पछताओगी..”बहुएँ घर जोड़ने आती हैं , तोड़ने नहीं । मम्मी जी कुछ और बोलतीं इससे पहले मैंने ही बीच में टोकते हुए कहा…”मम्मी जी ! बेटा आपका, चहेता आपका और घर भी आपका । मैं कौन होती हूँ उन्हें रोकने वाली या उन्हें लेकर आने वाली । बेहतर होगा अपने बेटे से आप स्वयं बात कर लें आने के लिए । मन ही मन मैं समझ रही थी कि पहले भी मेरी बात रखने पर बहस हुई और मेरे मायके के संस्कारों को बीच में लाकर मुझे दोषी बनाया गया अब वही गलती मैं दुबारा नहीं करूँगी । मैंने मम्मी जी से बहस करना उचित नहीं समझा और बिना सम्बोधन के प्रणाम करके फोन रख दिया ।
अजीब ऊहापोह में फंस रही थी मैं । ससुराल की इज्जत निभाऊं या अपनी शान में रहूं । बड़ा मुश्किल हो रहा था समझना । खैर…ये बातें तो चलती रहेंगी । सबसे पहले तो चाय पी लेती हूँ तभी मेरा दिमाग सुचारू रूप से काम करेगा और मैंने चाय बना ली ।
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चाय बनाई और लेकर अपने पति के पास ही जा रही थी तो देखा मेरे पति सुधांशु फोन पर लगे हुए थे । मुझे समझते देर नहीं लगी कि मम्मी जी का फोन होगा । खैर..ज्यादा लंबी बात नहीं चली और बातें खत्म होते ही मैंने उन्हें चाय दिया और पीते हुए मेरे पूछने से पहले ही वो बोलने लगे कि मम्मी का फोन था, टिकट देखना होगा बनारस का, तुम्हारी ननद रूपल की शादी तय हो गयी है । देख लेना शॉपिंग का लिस्ट उसके लिए बना लेना ।
हम तो बड़े हैं घर में, हमें तो उपहार देना ही होगा न ? फिर मेरे करीब आकर मेरे गले में बाहें डालते हुए बोलने लगे..”और हाँ ! मम्मी ने तुम्हें विशेष रूप से बुलाया है । तुम घर की बड़ी बहू हो न । सबकी नजरें तुम पर होंगी । तुम भी अपने लिए महँगी वाली चार- पाँच साड़ियाँ ले लेना । इतना बोलकर सुधांशु मुझे कनखियों से निहारने लगे । मेरे मन को टटोल रहे थे शायद ।
गुस्सा तो बहुत आ रहा था पिछली बातों को सोचकर और खून इस क़दर खौल रहा था ये सारी बातें सुनकर जी में आ रहा था सारी भड़ास निकाल दूँ ।
पर फिर मैंने अपने गुस्से पर नियंत्रण रखते हुए कहा..”मुझे न तो शादी में जाना है न ही शॉपिंग करना है , और आपको रोकूँगी भी नहीं । आपकी बहन की शादी है, आपका जाना तो बनता है, बेशक जाइये पर मुझ पर दबाव मत बनाइये ।
अब इन बातों को सुनकर सुधांशु को गुस्सा आ गया । उन्होंने झल्लाते हुए कहा…इतना ज़िद ठीक नहीं स्वाति , ससुराल है तुम्हारा । हम दोनों बड़े हैं उस घर में । ये नादानी ठीक नहीं ।
अब तक तो चुप रहने की ठानी थी पर कोई लगातार दो तरह से रिश्तों के मामले में सोचे तो ज्यादा नहीं चुप रहा जाता। बिल्कुल सहन से बाहर था ।
पुरुषों पर घरवालों का रंग इस कदर चढ़ा रहता है कि उतरने में बहुत समय लगता है फिर भी उतरता नहीं है कम होता है ।
सुधांशु पौधों में पानी डालने लगे और मुझे अपना फोन देते हुए बोलने लगे…”मेरा दोस्त विनय जो है न, उसकी पत्नी के पास साड़ियों के बहुत डिजाइन हैं वो अलग – अलग जगहों से लाती है तुम बात कर लो एक बार ।
मैंने बोला..”कहा ना नहीं जाऊंगी , क्यों जाऊं ? किस इज्जत की बात कर रहे आप ? तब मेरी इज्जत कहाँ थी जब मम्मी जी मेरे मम्मी – पापा और परिवारवालों के सामने मुझे बेवजह बेइज्जत कीं सिर्फ इसलिए कि शादी में मेरे घरवाले आपके मम्मी पापा और बहन के मुताबिक तोहफे नहीं दे सके ? तब आपकी इज्जत कहाँ थी जब मम्मी जी ने सोने के सिक्के अपनी बड़ी बेटी के ननद, देवर को शादी में दिया और मेरी बहन, भाई के शादी में बस बक्से से साड़ी भेंट कर दी ।
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फिर अगले साल हमने घर खरीदा तो मम्मी पापा जी ने कितने ताने दिए थे ये बोलते हुए कि अपना घर लेने की क्या जरूरत थी ? अब तो तुम हमारा नहीं सुनोगे और हम एक पैसा नहीं देंगे घर मे लगाने के लिए । पहले वो लोग देखते तो सही कि हम घर लेने के बाद उनकी सेवा करेंगे या नहीं करेंगे । जब घर लेने लगे तो जलन से उन्होंने आपसे गाँव मे टुल्लू पम्प लगाने के लिए पैसे लिए ।
जब कोई अच्छा काम करने को सोचा इनलोगों ने पैसे माँगकर एक एक पैसे के लिए # मोहताज कर दिया । परीक्षा लेकर देख रहे थे हमारी । कितनी मुश्किलें झेली उनलोगों के लिए । बड़ी दीदी कोमल और छोटी रूपल ! ये दोनों भी तो मम्मी के साथ रहकर मुझे इतना ज़लील की हैं । हमारी बेटी चारु के होने पर मुझे कितना तकलीफ दिया, कुछ नहीं भूली ।
याद आती है ये सब बातें तो मेरा मन कचोटता है किस मुँह से जाऊं ? किसी का सामना करने की इच्छा नहीं होती । कोई सुख नहीं दिया मुझे इनलोगों ने, सिर्फ दुःखी किया ।
और याद दिलाऊँ …? चारु के होने पर मम्मी जी को तुमने मेरी देखभाल करने के लिए बुलाया था और मम्मी जी ने मेरे शरीर मे फुर्ती लाने के लिए ग्यारहवें दिन से ही काम पर लगा दिया था, दोनों माँ बेटी को बनाकर मैं खिलाती थी और वो लोग सिर्फ अपने और मेरे रिश्तेदारों से चुगली करके मेरा मान गिराते थे । जच्चा होकर काम करने में हालत खराब हो गयी थी,
नौकरानी भी हटा दिया था और मैं अकेले जूझते रहती थी । आप तो सिर्फ मम्मी पापा , बहन और दीदी को घुमाने में ब्यस्त रहते थे उनका मनोरंजन करते थे , समय बिताते थे उनके साथ और मैं अकेले घुटती थी । कभी मुझसे ये तक नहीं पूछते थे कि मुझे पीड़ा हो रही है या नहीं।
उस वक़्त भी आपका मुँह नहीं खुला जब मैंने मम्मी जी से नौकरानी दुबारा रखने बोला तो उन्होंने अनाप – शनाप बोलकर और मेरे मायके के इज्ज़त को लेकर धज्जियाँ उड़ा दी । और कुछ याद दिलाऊँ या याद आया ?…बोलो ।
इतना बोलकर आज काफी समय बाद लगा कि मेरे अंदर का बोझ हल्का हुआ । सुधांशु मेरे पास आकर बोले..हो गया तुम्हारा, या और कुछ बोलना है ? मैं इकपल के लिए आहें भरी और ज़ोर का सांस लेते हुए शांत हो गई । जैसे ही दुःखी मन से सोफा पर बैठी तो फोन बज रहा था । देखा तो मेरी मौसी का फोन था । बालकनी जाकर फोन उठाया तो मौसी ने बताया शुभम की शादी 28 जनवरी को तय हुई है और तुम सबको आना है ।
अचानक से मूड माहौल बदल गया । मैं अंदर आयी और सुधांशु से खुश होकर बोलने लगी ..”आप बताओ, मुझ पर कैसी और किस रंग की साड़ियाँ अच्छी लगेंगी ? मेरी मौसी का बेटा है न शुभम उसकी शादी 11 दिसम्बर को है और हमें साथ में जाना है । सुधांशु ने पहले मुझे जी भर के तरेरा और बोला..”ये अचानक सूरज कहाँ से निकल आया ? वो मेरे चेहरे के हाव भाव पढ़ने की कोशिश कर रहे थे, अचानक ये बदलाव कैसे आया ? फिर मैंने बोला..”सर्दी का मौसम है, आप भी अपने लिए कोट, ब्लेज़र आदि ले लेना । मैं अच्छी साड़ियाँ लूँगी तो आपके कपड़े भी तो मैच करने चाहिए न !
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अब तक तो मैं भाव खा रही थी । अब भाव खाने की बारी सुधांशु की थी । सुधांशु ने बोला..”मुझे नहीं जाना वहाँ, जब तुम मेरी बहन की शादी में नहीं जाओगी तो मैं तुम्हारे परिवार की शादी में क्यों जाऊं ?
मैंने बोला..”पक्का नहीं जाओगे ? एक आखिरी बार पूछ रही हूँ । सुधांशु ने कहा…अरे बोल दिया न नहीं मतलब नहीं । बार बार पूछने से मेरे इरादे नहीं बदलेंगे । वजह तुम भी जानती हो क्यों ? जब तुम मेरे घर नहीं जाओगी तो मैं तुम्हारे रिश्तेदार की शादी में क्यों जाऊं ? बस ! हो गयी जमकर लड़ाई ।
काफी देर हम एक दूसरे से लड़ते रहे । ये तो बड़ी बड़ी बातें थी हम तो छोटी बातों पर भी कभी लड़कर अपना मूड फ्रेश कर लेते हैं ।लड़ाई तो ज्यादातर हम वीकेंड पर कर ही लेते हैं । बगैर उसके हमारा खाना ही नहीं पचता । सुधांशु ने बीस हजार रुपए दिए मुझे ज़बरदस्ती शॉपिंग के लिए । तब जाकर मेरे कलेजे को ठंडक मिली और मैं तीव्र से सामान्य हुई । लड़ के बड़ा सुकून मिल रहा था..मानो लड़ने के बाद मुझे मेरा इनाम दिया गया हो ।
अगले दिन सुधांशु के ऑफिस जाने के बाद सारी शॉपिंग कर लिया ।
आखिरकार..बनारस जाने का दिन आ ही गया । स्वाति अच्छे से तैयार हुई देखता ही रह गया उसे सुधांशु । पर रास्ते भर वही पुरानी बातों में बहस, चिकचिक जारी रहा । चारु कभी मम्मी कभी पापा से पूछ रही थी..कर क्या रहे हो आपलोग ? सोने भी नहीं दे रहे परेशान भी कर रहे ।
दोनो बीच बीच मे उसे पुचकार लेते और शिकायतें जारी रहती ।अगले दिन जब वह अपने ससुराल पहुँची ..पूरी तरह बदली हुई थी । सासु माँ को देखते ही उनसे लिपटते हुए बोलने लगी..”मम्मी जी ! आपकी बातों को टाल नहीं सकती थी मैं, देखिए आपका मान कैसे रखने आ गयी । सासु माँ अपना पूरा परिवार देखकर बहुत खुश थीं । उन्होंने स्वाति से बोला..”तुमने तो सच में मेरी लाज रख ली बहु ! हाँ मम्मी जी ! घर है मेरा, मैं नहीं सोचूँगी तो कौन सोचेगा ।
कनखियों से निहारकर मुस्कुराते हुए स्वाति सुधांशु को देख रही थी और सुधांशु मन ही मन बुदबुदा रहा था…”वाह री नारी ! किन शर्तों पर इसका हृदय परिवर्तन हुआ है और वो यहाँ शामिल हुई है वो तो मुझे पता है।स्वाति के इस बदले रूप को देखकर समझ नहीं पा रहा था कि महीने दिन से और रास्ते भर कोसते हुए आयी और तुरंत अपनी चिकनी , मीठी बातों से मम्मी को अपने में फँसाकर कैसे अपना बना ली ।
स्वाति के भीतर भी यही चल रहा था..ससुराल ऐसा ही होता है, पीछे जितनी बुराई कर लो, गलत बोल लो। पति पर हर किसी का गुस्सा उड़ेल दो लेकिन सामने में खुद का प्रभाव बनाने के लिए मम्मी जी ! मम्मी जी करना ही पड़ता है ।
मौलिक, स्वरचित
# मोहताज
(अर्चना सिंह)
VM