सासुमां बुरी और माँ अच्छी क्यों.. – संगीता त्रिपाठी.. : Moral Stories in Hindi

 टॉपिक तो भयंकर हैं… इतना क्या तुझे सासुमां से प्यार जो ये लिखने बैठी हैं… विभा बोली… बस ऐसे ही… अपने आस – पास जो देखती हूँ तो एक प्रश्न जेहन में आया…. क्या सास हमेशा बुरी होती हैं… मेरी सासुमां तो बहुत अच्छी थी… कल मेरी कामवाली बाई खूब रो रही थी उसका  आदमी  रोज शराब पीता हैं कामवाली बाई के मना करने पर उसे पीटता हैं  ..

वो कह रही थी की मेमसाहेब मेरी सास जिन्दा होती तो मेरा आदमी कभी मुझ पर हाथ उठा नहीं पाता….अच्छे आदमियो को भगवान जल्दी बुला लेता हैं.. वो बहुत अच्छी थी मेरी ही माँ थी …. उससे ये सुन थोड़ा अजीब लगा .. याद आया इससे पहले वाली भी अपनी सास की बहुत तारीफ़ करती थी… अपर क्लास में  भी बहुत अच्छे रिलेशन हैं सास बहू के….

हम मिडिल क्लास को ही क्यों सास अच्छी नहीं लगती… कई घरों मैं मैंने देखा सास ने बहुओं पर कोई रोक टोक नहीं लगा रखा हैं पर बहुएँ कुछ ना कुछ कमी निकाल ही लेती हैं…पर वहां  माँ जितने चाहे रोक लगा सकती हैं… कई घरों में लड़कियां को मायके में वेस्ट्रन कपड़े पहनने नहीं मिलता….

पर वही बहू बनते ही सीधा शॉर्ट्स में आ जाती हैं….   पहले लोग बेटियों को बोलते थे अब ससुराल ही तुम्हारा घर हैं… और बेटियां भी चाहे जैसी ससुराल हो संतुलन कर लेती थी… तब भी सास अच्छी और बुरी दोनों होती थी… पहले रीती रिवाज़ का बंधन ज्यादा था पर आज की सास तो काफी समझदार हैं… फिर भी बुरी हैं… तू कह तो सही रही मीता…

देख विभा,  माँ भी अपनी लड़कियो को डांटती हैं पर लड़कियां उसका बुरा नहीं मानती पर सास जरा भी कुछ कह दे तो दिल पे ले लेती हैं..मै समझ नहीं पाई ये दोगली नीति क्यों… हम बहुएँ ये तो चाहती हैं की हमें बेटी समझा जाये पर क्या हम सासुमां को अपनी माँ समझ पाते हैं  ……

एक दिन मै अनीता भाभी के  घर गई थी देखा उन्हे वायरल हो रखा था फिर भी वो काम कर रही थी किचेन में… और बहू अपने कमरे में सहेलियों से गप्पे मार रही थी….जबकि बहू अपने मायके में बड़ी थी और सारा काम वही करती थी… सुना की उसकी माँ मिलने आई

इस कहानी को भी पढ़ें: 

इज़्ज़त सिर पर पल्लू रखने से नहीं दिल से दी जाती है – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

तो सासुमां को काम करते देखा तो बेटी को खूब डांट लगाई…. कुछ माँए   तो अच्छी होती हैं पर कुछ तो अनावश्यक रूप से बेटी को अपने अनुसार चलाती हैं… बेटी को समझा कर भेजती हैं की सास ख़राब होती हैं…

पर मीता इसमें बेटी की क्या गलती…. क्यों उसके बुद्धि नहीं हैं… क्या अच्छा क्या बुरा… माँए जैसे संस्कार देतीं हैं लड़कियां उसी तरह का व्योहार करती हैं…. मेरे ताऊ ससुर की बहू तो कुछ नहीं करती जब उससे काम बोला जाये तो वो बोलती हैं की मैंने कभी काम किया नहीं…. जबकि उसके घर में पांच बहने थी और पिता की आमदनी ज्यादा नहीं थी और कोई कामवाली उनके घर में नहीं थी….

मेरा बस यहीं कहना हैं की सास बहू ही ठीक हैं,… बेटी और माँ ना बने पर अपने रिश्ते में तो प्यार रखें… जब हम बेटी बनना चाहते हैं तो हमें भी सास को माँ के रूप में देखना चाहिए… कहते हैं ना की औरत ही औरत की दुश्मन होती हैं ..

तो पहले हम औरते ही एक दूसरे को सम्मान देना सीखे… हम बहुओं के पास भी बेटा हैं कल को हमारी बहू भी वही करेंगी जो व्योहार हम अपनी सास से करते हैं…. कर्मो का हिसाब किताब भगवान इसी जिंदगी में बराबर कर देते हैं..

ऐसा नहीं की हमेशा सास अच्छी होती हैं और बहू बुरी… पर ज्यादातर देखा जहाँ सास अच्छी,  वहां बहू नहीं अच्छी, और जहाँ बहू अच्छी वहां सास अच्छी नहीं… इसलिए अपवाद तो सभी जगह हैं…. पर हमें अपने संस्कारों से सबको साथ ले कर चलना चाहिए . .. और हम औरतों ने अगर एक दूसरे का साथ दिया तो कोई औरतों  अपमान करने की हिम्मत नहीं करेगा…

तो सखियो आज से हम नारियाँ एक दूसरे का सम्मान करें कोई भी रिश्ता हो… नन्द, भाभी, माँ, सास, बहन या देवरानी, जिठानी…

                           —- संगीता त्रिपाठी..

error: Content is Copyright protected !!