“सासू माँ की प्रेरणा” – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“भाभी, मैंने तो पहले ही कहा था इस अभागी लड़की से अपने विनय की शादी मत करो।पैदा होते ही अपने माँ-बाप को खा गई और अब अपने सुहाग को। खुद भी बोझ बन आप पर आ पड़ी है। अब भुगतो इस अपाहिज को।अभागन कहीं की। ये मर ही जाती तो बढ़िया होता।” कंचन ने हॉस्पिटल की बेड पर पड़ी नीति की ओर देखकर मुंह बनाते हुए कहा।

अपनी बहू के लिए यह शब्द सुनते ही ललिता देवी इतनी देवरानी कंचन पर भड़क उठी “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कंचन, मेरी बहू के बारे में इस ढंग की उल्टी सीधी बातें करने की।अभी इसी वक्त तुम यहाँ से चली जाओ।”

“हाँ-हाँ जाती हूँ। मुझे भी कोई शौक नहीं है इस अभागन के आसपास खड़े रहने होने का।” कहते हुए कंचन पैर पटकते हुए वहाँ से चली गई।

“माँ, सही तो कहा चाची जी ने ।

मुझसे ज्यादा अभागन और कौन होगी! आज ना केवल मेरी जिद से विनय की जान गई बल्कि मैं भी अपाहिज बन आप पर बोझ बन गई हूँ।” हॉस्पिटल के बेड पर लेटी नीति अपनी सासू माँ ललिता का हाथ पकड़े रोए जा रही थी और उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वे उसे किस प्रकार शांत कराएँ| एक पल में ही सबकुछ उजड़ गया था|अब सबकुछ उन्हें ही सम्भालना था।

“नीति बेटा इस तरह नहीं रोते।यह सब तो किस्मत की बात है। इसमें किसी की कोई गलती नहीं है|” सासू माँ ने उसे चुप कराते हुए कहा|

 नीति लगातार यही रोए जा रही थी और उसकी सासू माँ उसके सिर पर हाथ फेर उसे हौसला दिए जा रही थी| सासू माँ की प्यार भरी थपकी से कुछ ही देर में नीति को नींद आ गई।कंबल ओढ़ाकर वे उसके पास ही सोफे गई और सोचने लगी कि ये क्या से क्या हो गया है? कल की ही तो बात है जब नीति और विनय बारिश में भुट्टे खाने के लिए निकल रहे थे। विनय और नीति दोनों को भी बारिश में भींगना और भुट्टे खाना बहुत पसंद था। तब उन्होंने दोनों को कितना कहा था “बेटा तुम दोनों स्कूटी से मत जाओ। कैब कर लो। रात भर से बारिश होने के कारण सड़क पर बहुत फिसलन है। ऐसे में स्कूटी स्लिप कर सकती है।” पर उन्होंने  उनकी एक ना सुनी थी।

“कुछ नहीं होगा माँ। जो मजा स्कूटी पर बैठकर भींगते हुए भुट्टे खाने में है। वह कैब में कहाँ।” नीति ने जिद करते हुए कहा था। 

“अच्छा ठीक है चले जाओ स्कूटी से लेकिन ज्यादा तेज मत चलाना।” पर, वही हुआ जिसका उन्हें अंदेशा था। एक मोड़ पर  फिसलन के कारण स्कूटी डिसबैलेंस हो गई । विनय और नीति दोनों उछलकर दूर जा गिरे। जब तक वे दोनों संभलते तब तक एक हाई स्पीड गाड़ी उन्हें कुचलती हुई निकल गई।

उन्हें आनन-फानन में हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। विनय ने तो हॉस्पिटल पहुंचते ही दम तोड़ दिया। पर वहीं, दूसरी ओर बुरी तरह से कुचल जाने के कारण नीति के दोनों पैरों को काटना पड़ा क्योंकि इंफेक्शन के कारण उसके पूरे शरीर में जहर फैलने का खतरा था| आज पूरे चौबीस घंटे बाद उसे होश आया था। अब ललिता जी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? बेटे की मौत का मातम मनायें या बेटी समान बहू को संभाले।

अभी भी वे यह सोच रही थी कि तभी डॉक्टर चंद्रा रूम में आई|

“ललिता जी, इस एक्सीडेंट से फिजिकली और इमोशनली दोनों ही तरीके से नीति बहुत कमजोर हो गई है| कई बार लोग इसतरह के आधात को बर्दाश्त नहीं कर पाते और गलत कदम भी उठा लेते हैं| ऐसे में फैमिली सपोर्ट बहुत जरूरी है| अब आपको ही इसे संभालना है| 

डॉक्टर की इस बात को सुनते ही मानो ललिता जी को अपने सवाल का जवाब मिल गया। विनय तो जा चुका था लेकिन, अगर मैंने नीति को नहीं संभाला और उसने कहीं कुछ ऐसा वैसा कर लिया तो? इसी कल्पना से ललिता जी कंपकंपा उठी। उन्हें वह दिन याद आ गया जब विनय ने उन्हें पहली बार नीति से मिलाया था।

“माँ, यह नीति है।”

“बहुत प्यारी है और तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है बेटा?”ललिता जी ने नीति को दुलारते हुए पूछा था।

“माँ, नीति के परिवार में कोई नहीं है। यह अनाथ है।” 

विनय के यह कहते ही तब उन्होंने विनय को डांटते हुए कहा था “आज तो कह दिया आगे से खबरदार जो इसे अनाथ कहा। मैं हूँ ना इसकी माँ।” बस उस दिन से वह नीति की माँ बन गई थी और नीति उनकी बेटी। 

“मैंने बेटे को तो खो दिया है बेटी को नहीं खो सकती।” यह सोचते हुए उन्होंने डॉक्टर से कहा “डॉक्टर, आप बेफिक्र रहें| मेरी नीति ऐसा कुछ नहीं करेगी| वह जिंदगी से हारने वालों में से नहीं है| उसकी आने वाली जिंदगी सबके लिए एक मिसाल बनेगी| यह मेरा वादा है आपसे और फिर मैं तो हूँ ही उसके साथ|”

इसके बाद तो सासू माँ साए की तरह नीति के साथ रहने लगी| उनके प्यार और देखभाल से नीति की तबीयत में तेजी से सुधार हो रहा था| कुछ दिन बाद उन्होंने नीति को सुधा चंद्रन की बायोग्राफी लाकर दी पढ़ने के लिए| मात्र सोलह साल की उम्र में एक्सीडेंट में अपने पैर को खोने के बाद,अपने हौसले से,

कृत्रिम पैर (Artificial leg) द्वारा भरतनाट्यम में महारत हासिल कर अपनी पहचान बनाने की सुधा चंद्रन की कहानी ने नीति को अंदर तक झकझोर दिया| जैसे काली-अंधेरी रात के बाद सुबह की लाली फूटती है,वैसे ही नीति के लिए प्रेरणा और उमंग की लाली बनकर आई सुधा चंद्रन की कहानी। उनकी बायोग्राफी ने उसके सारे निराशा के बादल छाँट दिए और उसे उसकी तकलीफ से लड़ने का हौसला दिया।

दूसरे दिन जब सासू माँ उसके बालों में तेल लगा रही थी| तब उसने पूछा “माँ,क्या मैं भी सुधा जी की तरह जीत सकती हूँ?”

“हाँ, मेरी बच्ची| क्यों नहीं? हौसला और खुद पर विश्वास हो तो इंसान बड़ी से बड़ी जंग जीत सकता है| फिर मैं तो हूँ ही तेरे साथ।” उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा।

बस इसके बाद तो खुद के हौसले और सासू माँ के सहयोग से नीति जुट गई अपनी जीत की कहानी लिखने| सबसे पहले उसके कृत्रिम पैर (Artificial leg) लगे। दो महीने की अथक कोशिशों के बाद नीति अपने पैरों से एक दो कदम चलने लगी| व्हील चेयर पर बैठ धीरे-धीरे अपने काम करने लगी| अब उसे हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई| घर पर ही फिजियोथेरेपी होने लगी| उसकी हालत में दिन-प्रतिदिन सुधार हो रहा था| फिर सासू माँ की प्रेरणा से उसने अपनी अधूरी पड़ी थीसिस को पूरा करना शुरू कर दिया|

चार साल की कठिन मेहनत के बाद उसकी थीसिस कंपलीट हुई| आज उसे उसकी डिग्री मिलनी थी| वह अपनी सासू माँ के साथ स्टेज पर पहुँची| जब उसे उसकी डिग्री दी गई तो उसने यह कहते हुए कि “आज मैं जो कुछ भी हूँ अपनी सासू माँ की प्रेरणा और सहयोग से हूँ। उन्होंने दुनिया की परवाह न करते हुए मेरा साथ दिया। मुझ अभागन को अपने प्यार और आशीर्वाद से भागोंवाली बना दिया। अपने बेटे की मौत के बाद उन्होंने जिस तरह अपने आप को और मुझे संभाला है वह अपने आप में एक मिसाल है।” अपनी उस डिग्री को सासू माँ को समर्पित कर दिया।

सासू माँ ने उसे गले से लगा लिया और भरे गले से इतना ही बोल पाई “नीति बेटा, कभी पीछे मुड़कर मत देखना।आगे और बहुत सी सफलताएँ तुम्हारा  इंतजार कर रही है।”

श्वेता अग्रवाल

#अभागन

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