रितु, ‘ये क्या लाई है अपने मायके से ? तेरी मां कभी कुछ ढंग का देती ही नहीं है। पुराने बक्से में से साड़ी निकालकर दे दी। ऐसी साड़ी तेरी मां ही पहनती होगी, मेरे यहां तो कोई नहीं पहनेगा… तुझे क्या अपने ससुराल के स्टेटस का जरा भी ख्याल नहीं है ? जो तू ये साड़ी बिना सोचे समझे उठाकर ले आई है। गीतांजलि जी ने कड़कती आवाज में कहा।
मम्मी जी, साड़ी महंगी नहीं है, पर ये नई साड़ी मम्मी ने मेरे साथ आकार खरीदी है। ये सुनकर गीतांजलि जी की त्योरियां चढ़ गई। मतलब मै झूठ बोल रही हूं? तू और तेरी मां दोनों सच्ची हो… और तू मुझसे जुबान क्यों लड़ा रही है? अब घर में आ गई तो काम संभाल, खाने -पीने का सारा काम रखा है, सबसे पहले मेरे कमरे में एक कप चाय पकड़ा देना, फिर जाकर खाने की तैयारी शुरू कर दें.. मुंह बनाते हुए वो साड़ी चुपचाप हाथ में लिये अपने कमरे में आ गई। आईने के सामने वो साड़ी खुद पर लपेट कर देख ही रही थी कि अचानक से रितु आ गई।
गीतांजलि जी सकपका गई और फटाफट साड़ी एक तरफ रख दी और पूछने लगी, इतनी जल्दी चाय बन भी गई? मम्मी जी, वो अदरक नहीं है,और आप अदरक के बिना चाय नहीं पीते हो, मनोज भैया से मंगवा दीजिए, और चुपचाप साड़ी पर नजर डालकर रितु कमरे से बाहर चली गई।
रितु की शादी को दो साल हो गये थे और इन दो सालों में उसकी सास ने उसके मायके वालों को नीचा दिखाने का एक भी मौका नहीं छोड़ा… हर बात में उनको दोषी ठहराना उनकी आदत हो गई थी, रितु भी चुपचाप सुन लेती थी क्योंकि उसका पति अपने माता-पिता की कमाई पर ही निर्भर था।
रितु का पति विपिन अपने पिताजी की ही दुकान पर बैठता था, और काम संभालता था… गीतांजलि जी को इसी बात का गुरूर था कि उसका बेटा उसकी दुकान से कमाता है, वो हर महीने बेटे को कुछ रूपये सैलेरी के रूप में देती थी, और वो रूपये बहुत ज्यादा नहीं होते थे। काम तो विपिन सुबह से रात तक करता था पर उसके बदले में पैसे कम ही मिलते थे, विपिन की शादी एक मध्यमवर्गीय परिवार में तय कर दी थी, रितु तीन बहनों में सबसे बड़ी थी, घरवालों ने जैसे-तैसे शादी कर दी।
अब आगे भी दो बेटियों की शादी करनी थी, शादी के वक्त गीतांजलि जी ने कहा था की हमें सिर्फ लड़की चाहिए, पर शादी के बाद दो सालों में रितु के मायके वालों से हर त्योहार और शगुन के नाम पर रूपये और कपड़े मंगवाती रही।
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रितु के पापा एक सामान्य कर्मचारी थे, वो ज्यादा महंगा तो दे नहीं पाते थे, फिर भी बेटी ससुराल में सुखी रहे इसलिए उनकी मांग पूरी करने की कोशिश करते थे… पर रितु की सास कभी खुश नहीं होती थी, उसके मायके से कपड़े महंगे ना आते पर पहनने लायक जरूर होते थे… और गीतांजलि जी बेवजह सुना देती थी पर हर साड़ी वो पहनती जरूर थी।
अपने पैसे के गुरूर के आगे वो रितु की भावनाओं को कुचल देती थी, अब उसे भी इन सबकी आदत हो चुकी थी।
गीतांजलि जी और अशोक जी की तीन संताने हैं। बड़ी बेटी ज्योति की शादी वो इसी शहर में चार साल पहले कर चुके हैं। बेटे विपिन की शादी रितु से कर दी और अब वो अपने सबसे छोटे बेटे मनोज के लिए लडकी तलाश रहे थे… मनोज की शादी वो ऊंचे और अमीर परिवार में करना चाहते थे, क्योंकि मनोज एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर था और उसकी बहुत अच्छी नौकरी थी।
गीतांजलि जी अपने छोटे बेटे के बहुत लाड़ लड़ाती थी, क्योंकि हर महीने वो अपनी कमाई का बहुत सा हिस्सा उनको देता था। उन्हें बहुत घमंड था कि वो छोटे बेटे के लिए बहुत अमीर घर से लड़की लाकर दहेज से अपना घर भर लेगी।
अपनी बड़ी बहू पर दिन रात तानें बरसाने वाली गीतांजलि जी उसे कभी सूकून से बैठने नहीं देती थी, और घर का सारा काम उसी से करवाती थी। रितु की स्थिति देखकर उसका देवर अपनी मां को समझाता था कि भाभी भी इसी घर की है, उनके साथ ऐसा दुर्व्यवहार मत किया करो, पर वो समझती नहीं थी और कहती थी कि बहूओं को तो पैर की जूती के नीचे दबाकर रखा जाता है, वरना वो सिर पर बैठने लगेगी।
एक दिन रितु के पापा किसी रिश्तेदार की शादी में उसी शहर में आये थे तो वो रितु से मिलने के लिए चले गए,जाते वक्त वो फल की टोकरी ले गये।
गीतांजलि जी ने फिर सुना दिया, समधी जी बेटी के घर मिठाई का डिब्बा लेकर जाते हैं ना कि सस्ते भाव में मिल रही फलों की टोकरी… अब भला फलो से कैसे मुंह मीठा किया जाता है?
अब देखो ना हमने आपके स्वागत में दो तरह की मिठाई रखी है, चाहते तो हम भी फल रखकर काम निपटा देते… ये सुनकर रितु के पापा सन्न रह गये, वो बिना कुछ खाए-पिए बेटी को आशीर्वाद देकर ही आ गये। रितु की भी आंखें भर आई, पर वो मजबूर थी, कुछ कहती तो पति का साथ नहीं था और पति अपने माता-पिता पर निर्भर था, सच ही कहा है किसी ने पति का साथ मिले तो पत्नी सारी दुनिया से जीत जाती है।
कुछ समय बाद रितु की छोटी बहन का रिश्ता तय हो गया, अपने पापा से फोन पर ये खुशखबरी सुनकर रितु बहुत खुश थी, वो शादी में जाने की तैयारी करने लग गई।
ये क्या बहू !! तेरे पापा ने हमें तो कुछ नहीं कहा और तू जाने के लिए भी तैयारी करने लग गई। क्या उन्हें पता नहीं कि इतनी बड़ी खुशखबरी है तो समधियों के घर पांच दस किलो मिठाई भिजवा दें, ताकि हम भी यहां पड़ोसियों को मिठाई बांट दे।
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मम्मी जी, पापा जब मुझे लेने आयेंगे तो मिठाई के डिब्बे भी ले आयेंगे, आप तो मुझे ये बताइए कि बहन को शादी में क्या उपहार दूं?
उपहार देने के नाम से गीतांजलि जी की बोलती बंद हो गई। अरे ! हम क्या देंगे? तू लिफाफा दे आना, वैसे भी हमारा कुछ देने का नेग नहीं बनता है।
रितु को पता था कि यही जवाब मिलेगा, पर उसने अपनी बहन की शादी में देने के लिए पैसे जोड़ रखे थे, और पापा कुछ गहने उसके लिए बनवा रहे थे तो उसने अपने पैसे उसी में मिला दिये, ताकि अच्छे गहने तैयार हो सकें। रितु के पापा मिठाई के डिब्बे लेकर आये और अपनी बेटी को लेकर चले गये।
शादी के एक दिन पहले रितु के सास-ससुर, देवर और पति भी उनके यहां शादी में गये, और वहीं मनोज को एक लड़की पसंद आ गई, मालूम करने पर पता चला कि वो रितु के मामा की बेटी है और अमीर परिवार से हैं। अब तो गीतांजलि जी ने भी स्वीकृति दे दी और आगे बात चलाई, दोनों का रिश्ता तय हो गया।
रितु के मामा को मनोज पसंद आ गया और अच्छी कंपनी में नौकरी भी थी। मनोज और रागिनी की शादी धूमधाम से हो गई, रागिनी खुश थी कि उसकी दीदी ही उसकी जेठानी बनी है, अब वो अपनी दीदी के साथ में रहेगी, और अपने पति मनोज के व्यवहार से भी रागिनी बहुत खुश थी। शादी के बाद दोनों घूमने चले गये, वहां से आकर जब रागिनी ने रितु के साथ रसोई संभाली और कुछ महीनों में उसे ससुराल में रितु दीदी की स्थिति का पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ।
गीतांजलि जी अब रागिनी पर भी रौब झाड़ने लगी थी, पर रागिनी सुनने वालो में से नहीं थी…. मनोज ने भी उसे अपनी मां के व्यवहार के बारे में बताया था, जिसे सुनकर वो भी दंग रह गई थी। रितु के दूर के रिश्तेदार की मृत्यु हो गई थी तो वो विपिन के साथ अपने मायके गई थी। उसके जाने के दो दिन बाद रागिनी का छोटा भाई उसी शहर में इंटरव्यू देने आया था.. तो उसने काफी पकवान बनाये तो गीतांजलि जी ने टोक दिया, रागिनी तेरा भाई ही तो आ रहा है, उसके लिए इतने पकवान बनाने की क्या जरूरत थी, रोटी सब्जी ही खिला देती।
मम्मी जी, मै हर किसी का सम्मान करती हूं, वो चाहें मेरे मायके से आये या आपके मायके से आयें… मेहमान तो भगवान होता है, और इज्ज़त और मान सबका होना चाहिए, और फिर मै पकवान मनोज की कमाई में से बना रही हूं, आपको क्यों आपत्ति हो रही है? जब कमाने वाला कुछ नहीं बोल रहा है तो आप भी मत बोलिए। जब मै मायके जाती हूं तो मेरी पूरी आवाभगत होती है, तो मै भी अपने मायके वालों का सम्मान करूंगी।
रागिनी के मुंह से इतनी बड़ी बात सुनकर गीतांजलि जी हक्की -बक्की रह गई, वो कुछ कहे बिना रसोई से चली गई। वो आज अपने आपको बहुत अपमानित महसूस कर रही थी।
रागिनी ने अच्छे से भाई को खाना खिलाया तभी गीतांजलि जी बोली, रागिनी तेरे पापा तो इतने अमीर है, फिर भी भाई खाली हाथ आ गया, मिठाई नहीं लाया?
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मम्मी जी, मैंने ही मना कर दिया था, आपको तो कोई मिठाई पसंद ही नहीं आती है, भैया और रितु दीदी अभी यहां नहीं है, हम लोग मिठाई खाते नहीं है तो क्या पड़ोसियों को बांटने के लिए मिठाईयां मंगवाती? फिर अभी तो कोई त्योहार भी नहीं है, बहू के घर से हर बार कुछ आयें ऐसा जरूरी तो नहीं है।
अब रागिनी अपनी सास को बराबर जवाब दे देती थी, क्योंकि वो दूसरी रितु नहीं बनना चाहती थी, उसने रितु की घर में जो हालत देखी थी वो उससे काफी दुखी थी और इसलिए ही वो अपनी सास को सबक सिखाना चाहती थी। अब गीतांजलि जी कुछ भी कहने से पहले सौ बार सोचने लगी थी, जितनी आसानी से वो रितु को और उसके मायके वालों को सुना देती थी, उतनी ही आसानी से वो रागिनी को कुछ भी कह नहीं पाती थी।
रितु के आने के बाद रागिनी अपने मायके रहने चली गई।
कुछ दिनों बाद वो मायके से वापस आई तो गीतांजलि जी ने आदतन पूछा, क्या भेजा है तेरी मां ने ? पहले दिखा फिर अंदर जायेगी।
मम्मी जी, मेरी मां ने सिर्फ मुझे भेजा है, और आपके लिए ये छोटा सा उपहार भेजा है ।
गीतांजलि जी ने उत्सुकता वश खोला तो देखा उसमें नैतिक शिक्षा की किताब थी, उसे देखकर उनकी त्योरियां चढ़ गई, ये क्या मजाक है? मै इस किताब का क्या करूंगी? कोई महंगी साड़ी नहीं भेजी क्या? रितु की मम्मी तो जब भी रितु को विदा करती थी, साथ में मेरे लिए साड़ी जरूर भेजती थी, जबकि वो तो तेरी मां से भी गरीब है।
हां, रितु दीदी की मम्मी आपके लिए साड़ी भेजती थी, और वो साड़ी में आप दस कमियां निकालकर भी उसे पहनती थी, कभी ऐसा हुआ है आपने कोई भी साड़ी प्यार से या तारीफ करके पहनी हो ? इसीलिए मै साड़ी नहीं लाई। पता नहीं कितनी कमियां निकाल देती, इसलिए आप ये नैतिक शिक्षा की किताब पढ़िए, जिससे आपको सीखने को मिलेगा कि इंसान के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, दूसरों की भावनाओं को कैसे समझा जाएं? आपने तो बहूओं को निर्जीव समझ रखा है ।
आपके लिए बस आपकी इज्जत मायने रखती है, आपको बहू की इज्जत और उसके मायके वालों की इज्जत से कुछ लेना-देना नहीं है।
बहू के मायके वाले चाहें कितना ही कुछ अच्छा क्यों ना भेज दे, उसमें कमियां निकालना जरूरी है। आपका ऐसा ही व्यवहार रहा तो मेरे मायके से कुछ नहीं आयेगा।
रागिनी की बात सुनकर आज रितु को भी हिम्मत आ गई थी, मम्मी जी रागिनी ठीक कह रही है, आपको कोई हक नहीं है कि आप हमारे मायके वालों को अपशब्द कहे या उनका अपमान करें।
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आज आपकी बेटी ज्योति दीदी के ससुराल वाले आपका अपमान करे, आप जायें तो खाने पीने और उपहार जैसी छोटी सी बात के लिए आपको तानें मारे तो आपको कैसा लगेगा ?
हर इंसान को अपनी इज्जत प्यारी होती है, वैसे ही हमें भी है। हमारे हर काम में मीन- मेख निकालकर आप हमारी मां को दोष देती हो कि तुम्हारी मां ने कुछ सिखाया नहीं, ये क्या बात हुई?
अब हम कुछ भी गलतियां करेंगे तो आप प्यार से सिखाएं, मायके वालों को दोष देने से क्या होगा? अब वो तो दोबारा सिखाने नहीं आयेंगी। मायके से कोई सामान आये तो आपको सौ कमियां निकालनी है, मायके से कोई आये तो आपको उसका अपमान करना है, जब आप हमारे मायके वालों का सम्मान नहीं करेंगी तो हम आपका सम्मान क्यों करेंगे ? मम्मी जी, इज्जत और मान सम्मान तो सबका होता है।
गीतांजलि जी का आज घमंड टूट चुका था, छोटी बहू तो क्या अब बड़ी बहू भी उन्हें आईना दिखा रही थी, अपनी बहूओं के मुंह से ये सब सुनकर उन्हें ग्लानि महसूस हो रही थी, तभी पीछे खड़ा छोटा बेटा मनोज भी बोलता है, मम्मी, रागिनी और रितु भाभी कुछ गलत नहीं कह रही है, अगर ये दोनों आपका अपमान करें तो मुझे भी अच्छा नहीं लगेगा, ऐसे ही आप इनके मम्मी -पापा के लिए बोलोगे तो इन्हें भी बुरा लगेगा। अब वो जमाना गया जब लड़की वाला या लडकी अपना अपमान सहन कर लेते थे, आजकल तो सब बराबर हैं, मान सम्मान दोगे तो मान सम्मान मिलेगा।
विपिन भी दुकान से आ रहा था, उसने भी बातें सुनी और अपने भाई की बातों में हामी मिलाई।
तभी रागिनी भी कहती हैं, मम्मी जी, विपिन भैया आपके ही बेटे हैं, वो आपकी ही दुकान में काम करते हैं, तो उन्हें ही दुकान संभालने दीजिए, आप तो उन्हें नौकरों की तरह काम करके कुछ पैसे ही मात्र देती है, आखिर वो जब मन से काम करते हैं तो आप इतना पैसे का गुरूर क्यों करती है? बुढ़ापे में पैसे से ज्यादा आपके बच्चे ही काम आयेंगे, ये ही सेवा करेंगे? सासू मां इतना पैसे का गुरूर भी ठीक नहीं है।
आज गीतांजलि जी चुप थी, अपने बेटे और बहूओं की बातें सुनकर उन्हें अपनी करनी पर पछतावा हो रहा था, और उन्होंने तय किया कि वो बहूओं के मायके वालों के खिलाफ और वहां से कुछ भी उपहार आयें, कभी अपशब्द नहीं बोलेगी और सदा उनका सम्मान करेगी।
आज रितु खुश थी कि उसकी बहन ने उसके दर्द को समझा और रागिनी खुश थी कि उसने अपनी सासू मां को सही रास्ते पर ला दिया, और उनके पैसों का गुरूर तोड़ दिया।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
# पैसे का गुरूर