“ऐ रे चंपा किधर फुदक रही है… चल इधर आ मेरे साथ रसोई में हाथ तो बँटा।” अपनी भारी भरकम आवाज़ में रमिया ने कहा
“ अभी आई ताईजी कहती हुई चंपा गोद में सो रहे दो साल के अपने चचेरे भाई को बिछौने पर सुलाकर रसोई में आ गई
रमिया खुद काम कम करती चंपा से सारा काम करवाया करती थी ।
भरे पूरे परिवार में चंपा, दादा -दादी , पिता,ताऊ -ताई उनके दो बच्चों और अपने एक चाचा के साथ रहती थीं… उसकी माँ उसे जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गई थीं … पिता बदहवास हो गए और बेटी के लिए उसके दिल में कभी प्यार ममता पनपा ही नहीं ।
चंपा के दादा दादी उसको बहुत प्यार करते थे वो चाहते थे चंपा भी अपने बड़े भाई ( ताऊ के बेटे के साथ) स्कूल जाया करें पर रमिया कहा करती,” क्या करेगी पढ़ाई करके… कौन सा इसको कोई सँभालने वाला है … बाप तो देखता तक नही और हमारे पास फालतू पैसे ना है जो उसके पढ़ाई के खर्चे उठाए…
पर चंपा के दादा ने उसे स्कूल भेजा और वो जितना समय मिलता स्कूल से आने के बाद काम के साथ साथ पढ़ाई भी किया करती पर रमिया को चंपा का यूँ पढ़ाई करना रास ना आता तो वो उसे अपने साथ कामों में लगाए रखती नहीं तो अपने बेटे को थमा देती साथ ही ताना देती रहती,” पढ़ कर क्या करेगी… जो जन्म लेते अपनी माँ को खा गई ऐसी अभागी लड़की आज तक ना देखी घर में पड़ी रह काम कर इससे ज़्यादा की औक़ात ना है इसकी।”
कुछ समय बाद चंपा के चाचा की शादी मानसी से हो गई… अब तो रमिया मानसी के आने के बाद बड़ी जेठानी के रौब में रहने लगी… मानसी रमिया का व्यवहार देख आहत होती कभी किसी बात पर अच्छे से जवाब देकर रमिया को एहसास करवा देती की वो भी इस घर की बहू है कोई नौकरानी नहीं…उसे चंपा से लगाव हो रहा था…
बिन माँ की बच्ची को यूँ सहमा सहमा देख कर मानसी उसे माँ की तरह प्यार दुलार करने लगी… जब भी मानसी उससे पढ़ाई की बातें करती चंपा चहक जाती फिर दूसरे ही पल उदास हो कर बोलती,” चाची मैं पढ़ कर कौन सा डॉक्टर बनने वाली हूँ….माँ है नहीं… उसे तो मैं पैदा होते खा गई न और मेरे पापा… वो तो मुझे देखते तक नहीं… जब तक दादा दादी है मैं इस घर में हूँ बाद में सब मुझे घर से बाहर कर देंगे ।”
“ये सब तुमसे किसने कहा ?” छोटी सी बच्ची के मुँह से ये सुन कर मानसी दंग रह गई
“ ताई जी हमेशा मुझे ऐसे ही बोलती रहती है ।” चंपा उदास हो कर बोली
“ ऐसा कभी नहीं होगा चंपा… तुम ज़रूर डॉक्टर बनोगी… तुम्हें मैं पढ़ाऊँगी… तुम अब ये सब कभी मत सोचना ।” कहते हुए मानसी चंपा को गले लगा ली
अब मानसी का सारा ध्यान इस बात पर रहता कि रमिया चंपा को अपने कामों में उलझा कर ना रखें ।
एक दिन रमिया चंपा को रसोई में काम करने के लिए ले गई…मानसी चंपा को खोजते हुए जब रसोई में आई तो उसे बर्तन माँजते हुए देख बोली,” दीदी चंपा से आप बर्तन धुलवा रही हैं… कमली आती है ना काम करने…चलो चंपा तुम ये सब छोड़ो ।” कहकर मानसी उसका हाथ पकड़कर उठाने लगी
“अरे अरे…तुम ये क्या कर रही हो… चंपा को घर के सारे कामकाज सिखाना जरूरी है तभी तो इसके ब्याह के बाद कोई इसे ताना नहीं देगा कि माँ नहीं थी तो ताई चाची ने कुछ ना सिखाया ।” रमिया मानसी को रोकते हुए बोली
“ फिर ठीक है दीदी ये काम तो कोई भी आराम से करना सीख जाएगा… मैं इसे कुछ और भी सीखा देती हूँ ताकि बाद में हमारी बदनामी नहीं हो…चलो चंपा कुछ और काम भी सीख लो।” कहते हुए मानसी उसे कमरे में ले गई
“ सुनो चंपा… अभी परीक्षा आने वाली है… तुम्हें पढ़ाई पर ध्यान देना है याद रखो… तुम इन सब कामों के अलावा और कुछ करने के लिए भी हो… अब से पढ़ाई के साथ कोई समझौता नहीं समझ रही हो?”मानसी ने सख्ती से पर प्यार से चंपा से कहा
“ हाँ चाची।” सिर झुकाए चंपा ने कहा
पढ़ने में होशियार चंपा अब दसवीं पास कर गई थी… समय था आगे पढ़ने और अपनी पसंद की पढ़ाई करने का… चंपा अपनी माँ के मर जाने और उसकी कमी को लेकर हमेशा डॉक्टर बनने का सपना देखती रहती थीं… मानसी को ये बात पता थी उसने उसे अपने तरीक़े से प्रोत्साहित भी किया और रमिया के अपमान और बेतुकी बातों से भी बचाती रही … इस बीच मानसी के भी अपना एक बेटा हो चुका था जिसकी परवरिश में वो कभी कभी बहुत ज़्यादा वयस्त रहती थी पर चंपा की ज़िम्मेदारी वो नहीं भूली थी ।
मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए बहुत मेहनत और लगन की जरूरत होती है ये बात चंपा समझ चुकी थी…और अपनी चाची और दादा दादी के सहयोग को भी समझ रही थी उसने दिन रात एक कर मेहनत किया और आखिर सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाख़िला ले लिया।
मेहनत करके ही आगे बढ़ना है ये मंत्र उसकी चाची ने उसके कानों में डाल दिया था ।
समय गुजरने लगा और चंपा आज डॉक्टर बन कर अपने घर आ रही थी ।
क़स्बे के लोग डॉक्टर चंपा से मिलकर अपनी समस्या बताने को आतुर थे..पर चंपा को अपने घर जाने की जल्दी पड़ी थी ।
घर पहुँचते ही उसने दादा दादी, ताऊजी, पिता और चाचा चाची का आशीर्वाद लिया उसे ताई जी कहीं नज़र न आई उसे दुःख हुआ कि ताईजी उससे अभी भी नफ़रत ही करती है वो फिर भी उनसे मिलना चाहती थी पर डर भी था कहीं फिर उसका अपमान ना कर बैठें… दुविधा में ही थी कि मानसी उसके पास आई और बोली,” क्या हुआ चंपा क्या सोच रही है?”
“ वो ताई जी…?”
“ हमने तुम्हें बताया नहीं चंपा…. दीदी की तबियत बहुत समय से ख़राब चल रही है ।” मानसी दुखी स्वर में बोली
ये सुनते ही चंपा,” क्या हुआ ताई जी को “ कहते हुए भाग कर उनके कमरे में गई देखा तो ताई जी एकदम सफेद पड़ी हुई बिस्तर पर सो रही थीं
“ ताई जी।” चंपा ने मद्धम स्वर में कहा
“ कौन चंपा … कैसी है…देख तेरी ताईजी की हालत क्या हो गई… बिन माँ की बच्ची का इतना अपमान किया है उसकी ही सजा मिल रही है मुझे ।” कहकर रमिया रोने लगी
“ ऐसा क्यों कहती हो ताई जी बताओ तो सही हुआ क्या है… मैं हूँ ना।” चंपा उदास पर ढृढ़ स्वर में बोली
“ बिटिया बहुत समय से ज़्यादा रक्त स्राव हो रहा है…एक बार डॉक्टर को दिखाने गई तो बोले बच्चेदानी निकालनी पड़ेगी पर मैं डर गई और ..।” कहते हुए रमिया रोने लगी
“ आपको कुछ नहीं होगा ताई जी… आप मुझे वो रिपोर्ट दिखाओ ।”चंपा ने कहा
रमिया की रिपोर्ट देख कर उसने कहा,” ये कोई बड़ी बात नहीं है ताईजी बच्चेदानी निकाल कर भी सामान्य जीवन जिया जा सकता है…. अगर रक्तस्राव और ज़्यादा होने लगेगा तो और मुश्किल बढ़ जाएगी… आप बिल्कुल मत घबराइए ।” चंपा ने रमिया को समझाया
तभी चंपा के ताऊ का बेटा अपना मोबाइल लेकर आया और चंपा से बोला ,”चल चंपा तेरी विडियो बनाते हैं… तू उसमें बताना तुझे डॉक्टर ही क्यों बनना था ।”
चंपा अपने बड़े भाई की ओर देख मुस्कुराती हुई बोली,” अच्छा भैया तुझे रिपोर्टर बनना है … आ जा ।”
“ मैं डॉक्टर बनना चाहती थी जब से ये सुना कि मुझे जन्म देते ही मेरी माँ चल बसी और लोग ये बोलने लगे कि मैं जन्म लेते ही अपनी माँ को खा गई… कोई भी संतान अपनी माँ को कैसे खा सकती है वो तो उसका ही अंश होती है बस मैं चाहती थी ये पता कर सकूँ आखिर मेरी माँ को ऐसा क्या हुआ होगा जो मुझे जन्म देते ही वो चल बसी…
और कोई दूसरी चंपा को ये सब सुनने को ना मिले….मेरे लिए ये राह आसान नहीं था… बिन माँ की बच्ची और पिता का नज़रअंदाज़ करना मेरे मन को बहुत दुःखी कर देता था ..उपर से घर में पढ़ाई करना मुश्किल होता था..मुझे पढ़ने नहीं दिया जाता था पल पल अपमानित किया जाता था ऐसे में मुझे माँ समान चाची का साथ मिला
और मेरे लक्ष्य को रास्ता और बस मैं डॉक्टर बन गई… बहुत बार किसी के द्वारा किया गया अपमान किसी के लिए वरदान बन सकता है कुछ ऐसा मेरे साथ भी हुआ और आज मैं आप सबके सामने डॉक्टर बन कर आ गई हूँ ।” कहते हुए चंपा की आँखें भर आई
“ अपनी ताईजी से अब भी नाराज़ हैं?” रमिया ने मलिन स्वर में पूछा
“ नहीं ताई जी वो तो बस मैं बता रही थी मुझे डॉक्टर क्यों बनना था ।” चंपा ने कहा
कुछ दिनों बाद रमिया का ऑपरेशन कर दिया गया और वो स्वस्थ हो गईं ।
चंपा अब अपने कर्मक्षेत्र की ओर बढ़ गई…अभी तो उसे बहुत आगे तक जो जाना था ।
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
# अपमान बना वरदान