मधु…..मधु….। मधु को लगा जैसे कोई उसे आवाज लगा रहा है। उसने पलट कर देखा तो उसकी ओर तेज तेज कदमों से चलती उसकी सहेली रेखा आ रही थी। उसके पास आकर हंसते हुए बोली, क्या यार कब से आवाज लगा रही हूंँ। रेल की तरह दौड़ी चली जा रही है। रेखा को देखकर मधु खुश होकर बोली तुम यहां कैसे। जब से शादी हुई है हम तो एक-दूसरे से अलग ही हो गए हैं। मैं अपने एक रिश्तेदार के यहाँ आई हूंँ। और देख ऐसे ही बाहर को घूमने निकली तो तू मिल गई। दोनों के मिलने की खुशी आवाज में साफ झलक रही थी। चल मेरे साथ घर चल। मधु रेखा से बोली।
आज तो नहीं। पर हाँ कल पक्का आऊंगी। तू मुझे अपना पता दे दे। मधु बाजार से वापस लौटी तो बहुत खुश थी। वह संयुक्त परिवार में रहती थी। उसने घर जाकर सबको बताया कि कल उसकी सहेली आएगी। उसे खुश देखकर सब घर वाले भी खुश थे।
अगले दिन रेखा मधु के घर पहुंँच गई। मधु के घर में उस समय उसकी सास और दो जेठानी थी। उसके जेठ, ससुर और पति अपने-अपने काम पर जा चुके थे। घर में छह बच्चे थे। जिन्होंने पूरे घर को खेल का मैदान बना रखा था। लेकिन रेखा को देखकर वे चुपचाप एक कमरे में जाकर खेलने लगे।
कुछ देर मधु की जेठानी और सास भी उन लोगों के साथ बैठी।फिर उसकी सास बोली बेटा तुम बातें करो मैं आराम करने जा रही हूंँ। उसकी जेठानियॉं भी उन्हें अकेला छोड़कर खाने की तैयारी करने लगी।
मधु को अकेला पाते ही रेखा बोली, यार तेरी हिम्मत है। जो तू इतने लोगों के साथ रह लेती है। मैं तो इस तरह कभी ना रह पाती। मधु हंसते हुए बोली मुझे तो अच्छा लगता है। अच्छा तू बता तेरे घर में कौन-कौन है। अरे कोई नहीं रहता मेरे साथ। बिंदास अकेली रहती हूंँ। मेरे पति अकेले हैं। सास-ससुर गांँव में रहते हैं। ये अकेले हैं। इसीलिए तो मैं गांव में शादी के लिए तैयार हो गई। परिवार का झंझट ही नहीं।
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ऐसी बात नहीं है रेखा। परिवार के साथ रहने से खुशी बढ़ती है, और दुख कम होते हैं। मैं मानती हूँ कि कुछ समझौते करने पड़ते हैं। लेकिन वह समझौते तो परिवार में रहने वाला हर सदस्य करता है। चाहे छोटा हो या बड़ा। अगर थोड़ा शांति और समझदारी से काम लिया जाए।
तो संयुक्त परिवार के बहुत फायदे हैं। उसके सामने यह छोटे-छोटे समझौते कुछ भी मायने नहीं रखते। अब देख मैं तेरे साथ बैठी हूंँ। मुझे यह तो चिंता नहीं है ना कि खाना भी बनाना है। यह अलग बात है कि अपनी सुविधानुसार मैंने खाने की कुछ तैयारी पहले ही कर दी थी। जिससे मेरी जेठानियों का काम कुछ हल्का हो जाए। अरे यार तो उतना ही परिवार में काम भी तो ज्यादा हो जाता है। पर समय भी तो बढ़िया कट जाता है। पता ही नहीं चलता कब दिन बीत गया।
चल छोड़ ये सब। पता नहीं अब कब मिलना होगा। लेकिन हांँ अब हम एक दूसरे को फोन जरूर किया करेंगे।
रेखा के जाने के बाद मधु उसकी बातों को याद करके मुस्कुरा दी। और अपने घर के कामों में लग गई।
एक दिन मधु ने रेखा को फोन किया। तो रेखा ने उसे बताया कि वह दोबारा मां बनने वाली है। अरे यह तो बड़ी खुशी की बात है मधु बोली। हां वह तो है ।लेकिन इस बार मुझे बहुत परेशानी हो रही है। डॉक्टर ने बेड रेस्ट करने को बोला है। सास ने भी आने से मना कर दिया है।
लेकिन यार अब बता मैं अकेली हूंँ। बेटी भी छोटी है। सारा काम होता है। घर के काम करने के लिए कोई नौकर भी नहीं मिल रहा है। मेरी जगह तू होती तो तुझे तो इस सब के बारे में सोचना ही नहीं पड़ता। हाँ मेरी बहन यही सब तो उस दिन मैं तुझे समझा रही थी। कि हमारे लिए परिवार कितना जरूरी है। और फिर तूने भी तो कभी सास की जिम्मेदारी नहीं उठाई। यही वजह है कि उन्होंने आने से मना कर दिया। तू ही नहीं बहन आजकल सबकी सोच यही है कि किसी का करना ना पड़े। हमें अकेला लड़का चाहिए। लेकिन जब अपने आप को जरूरत होती है तो परिवार याद आता है।
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हांँ सचमुच अब मेरी आंखें खुल चुकी हैं। जब मैं अपनी बेटी की शादी करूंँगी। तो कोशिश करूंँगी कि उसे परिवार का सुख मिले। मधु बोली, आखिर मैं तेरे ज्ञान चक्षु खोलने में सफल रही। तो रेखा भी हँसदी बिल्कुल….।
नीलम शर्मा
मुजफ्फरनगर उत्तरप्रदेश,