Post View 412 अप्रैल का महीना था शाम का समय घुप ढल चुका था । आँगन में लगे तखत पर नंदिनी बड़ी माँ विस्मित चेहरे से बैठी हुई थी । और सोंच रही थी –कभी इस घर आँगन के कोने कोने में खुशियाँ बिखरी रहती थी , जो जानें कैसे रूठ गई । आज घर … Continue reading “संतोष ” – गोमती सिंह
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