“संतोष ” – गोमती सिंह

अप्रैल का महीना था शाम का समय घुप ढल चुका था । आँगन में लगे तखत पर नंदिनी बड़ी माँ विस्मित चेहरे से बैठी हुई थी । और सोंच रही थी –कभी इस घर आँगन के कोने कोने में खुशियाँ बिखरी रहती थी , जो जानें कैसे रूठ गई । आज घर के कोने कोने में सुनापन पसर गया है ।

           बड़ी माँ समझ ही नहीं पा रही थी कि आखिर मुझसे क्या गलती हो गई कि आज ये स्थिति आ गई ।

          वो आहिस्ता आहिस्ता अपने बीते दिनों के पन्ने पलटने लगी । मेरी दोनों बेटियाँ अपने अपने ससुराल में खुश हैं

           कहना न होगा कि उनके बच्चों में संस्कार की कमी थी  वर्ना शिकायत वहां से भी आती ।

      मगर जब बहु आई तो मुझसे क्या गलती हो गई कि उम्मीदों से भरा मेरा आँगन सूनेपन से भर गया ।

           वो पहले अपने आप को टटोलने लगी । बहु के साथ गुजरे चंद लमहातों को वह बार बार  दोहरा दोहरा कर अपने दिमाग के चलचित्र में देखने लगी ।कारण स्पष्ट दिखाई दे रहा था ” मोबाइल ” हाँ यही वजह थी कि बहु का मन घर के किसी काम में नहीं लगता था । वह दिन भर किसी दूसरे ब्यक्ति से खुसुरफूसुर करती रहती थी । फिर भी मेरे बेटे ने नजरअंदाज किया।  उसे घुमाने लेकर जाता ताकि उसका मन बदल जाए । आखिर विवाह संस्कार किया था उसके साथ, धर्मपत्नी बनाया था , इसीलिए उसकी नादानियों को सुधारने का भरसक प्रयास किया।  मगर उस लड़की ने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी और एक दिन योजना बद्ध तरीके से घर से भाग गई। 

      वो सक्षम माता-पिता की लड़की थी।उसके पिताजी जाने माने वकील थे । पैसा के बदौलत वकीलों के गलत दलीलें किसी सीधे साधे ब्यक्ति का बखिया उधेड़ने में कसर नहीं छोड़ते।  उस लड़की को उसके माता-पिता सही सलाह देने के बजाय लड़के वालों से मोटी रकम ऐंठ कर तलाक ले लिए ।



              सीधे साधे व्यक्तियों का यही प्रमुख लक्ष्ण होता है; अगर कुछ विषम परिस्थिति आती है तब ऐसे लोग झट से किसी के भी उपर दोषारोपण नहीं करते, पहले अपना मूल्यांकन करते हैं;और जाहिर सी बात है ऐसे व्यक्तियों में खामी की गुंजाइश ही नहीं रहती ।

         इसी उधेड़ बुन में बेचारी ……उस शान्त स्वभाव की बड़ी माँ के लिए  ” बेचारी ” जैसा शब्द लिखना लिखनें वाले को कचोट गया, मगर परिस्थिति ही ऐसी निर्मित हो गई थी कि यह शबद यथायोग्य लग रहा था ।

       ”  एक बात हम सभी इंसानों के लिए कठोर सत्य है कि अगर दुख आया है तो सुख भी लौट कर जरूर आऐगा । “

      सो उस बड़ी माँ के साथ भी यही हुआ

          अचानक उनका बेटा आया और उसके साथ ही तीन चार पत्रकार भी थे , उनके बेटे ने अपनी माँ के चरणस्पर्श किऐ और गले से लिपटकर रोने लगे

           माँ को बड़ा आश्चर्य हुआ; क्या हुआ बेटा ! रो मत दुख आया है तो उसे गुज़ारना ही पड़ेगा ।

     तब माँ से अलग होकर आँसू पोछते हुए संतोष कहने लगा –माँ ये मेरे खुशी के आँसू हैं; इतना सुनते ही उसके माँ की आँखें भी छलक आई

आज वर्षों बाद मेरा बेटा खुश हुआ है ।

              संतोष कहने लगा–माँ! भगवान सुख का एक रास्ता बंद करते हैं तो चार रास्ते खोल देते हैं । ये कहावत नहीं हकीकत है । आज मैं जो अपने लेब में रिसर्च किया हूँ वो बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हुआ है  । आज मेरे लिखे गये लेख में बड़े बड़े वैज्ञानिक लोग खोज कर रहे हैं ।

          मैं इसी में संतुष्ट हूँ माँ!

       हाँ बेटा! तेरे जीवन में भी शान्ति आऐगी । तू अपनी योग्यता का इस्तेमाल कर और रिसर्च में ध्यान लगा उस लड़की के ही भाग्य में तेरे साथ सुख से रहना नहीं लिखा था  बेटा !और सदा सुखी रह ये आशीर्वाद देते हुए माँ ने बड़े नेह से संतोष के आँसू अपने आँचल से पोंछे ।

          ।।इति ।।

      ” गोमती सिंह “

 

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