सांस्कृतिक धरोहर – कमलेश राणा

रुचि बाज़ार जा रही थी,, मम्मी,, थोड़ी देर में बच्चे स्कूल से आ जायेंगे,, 

 

खाना बना रखा है,, आप खिला देंगी क्या उन्हें,, 

 

हाँ बिल्कुल,, तुम निश्चिंत रहो,, मैं सब संभाल लूंगी,, 

 

कैसे गणेश जी लाऊँ मां,, 

 

क्यों बाज़ार से क्यों लाना है गणेश जी,, वो तो मैं घर पर ही बना लूंगी मिट्टी के,, 

 

रुचि आश्चर्य से उन्हें देखते हुए,, आप बना पायेंगी मां,, 

 

हाँ,, हाँ,, क्यों नहीं,, मैं तो कई सालों से बना रही हूँ,, 

 

इसके दो लाभ होते हैं,, एक तो इनका विसर्जन बहुत आसान होता है, घर में भगोने में पानी भर कर उसमें विसर्जित कर देते हैं,, और उस पानी को पेड़ों में डाल देते हैं,, 

 

दूसरे,, वो घर से विदा नहीं होते बल्कि पूरे वर्ष घर में ही रह कर अपना आशीर्वाद और कृपा हम पर बनाये रखते हैं,, 

 

अरे वाह!! इस तरह से तो मैंने कभी सोचा ही नहीं,, आज एक नया नजरिया मिला मुझे,, 

 

ठीक है,, तो अब बाज़ार जाना कैंसिल,, 

 

मैं गमले में से मिट्टी ला कर रख देती हूँ,, जब आपका मन करे,, बना देना,, 

 

तब तक बच्चे चहकते हुए स्कूल से आ गये,, 

 

दादी,, दादी,, पता है आपको आज हमने रास्ते में दुकानों पर और ठेलों पर बहुत सारी सुंदर सुंदर गणेश जी की मूर्ति देखीं,, 

 

हमारे घर भी आप ले कर आओगी न,, 


 

लायेंगे नहीं,, दादी खुद ही बनाएंगी,, मिट्टी से,, घर पर,, 

 

अरे वाह!! दादी,, क्या सच में,, 

 

मैं भी बनाऊँगा आपके साथ,, 6 साल का अभि बोला,, 

 

और,, मैं भी,, 4 साल की परी भाई से पीछे कहाँ रहने वाली थी,, 

 

अच्छा ,, पहले मुँह हाथ धो कर कपड़े बदल लो और खाना खा लो,, फिर बनाएंगे,, 

 

आज दोनों को बहुत जल्दी थी,, फटा फट सब काम कर के तैयार,, 

 

चलो दादी,, बनाओ न,, 

 

बहुत उत्सुक थे दोनों,, अच्छा एक प्लेट ले आओ,, बना कर रखने के लिए,, 

 

पलक झपकते ही प्लेट हाजिर,, 

 

जैसे ही मिट्टी गूंथने लगी,, अरे, दादी आपके तो हाथ गंदे हो गये,, 

 

कोई बात नहीं,, धुल जायेंगे वो तो,, 

 

मैं भी करूँ,, हाँ,, हाँ,, ऐसे करो,, 

 

तभी पास में रहने वाली राधिका की देवरानी आ गईं,, 

 

दादी देखो,, हम गणेश जी बना रहे हैं,, आप को बनवाने हैं क्या,, दादी हमारे लिए बना रही हैं,, मैं आप के लिए बना दूँगा,, 

 

बच्चे की प्यार भरी बातें सुनकर बहुत खुश हो गई वो बोली,, 

 

ये तो बहुत अच्छी बात है,, देखूँ तो मेरा बेटा कैसे बनाता है,, 

 

दादी ये तो गोल गोल सर्कल बना रहीं हैं आप,, अच्छा पहले तीन सर्कल बनाने हैं फ़िर हाथ ,पैर, सूंड के लिए स्टैंडिंग लाइन बनानी है,, कटोरा भी तो बनाओ न दादी,, लड्डू के लिए,, 

 

अब वह राधिका को गाइड कर रहा था,, पहली बार उन्हें इतना आनंद आ रहा था बनाने में,, क्यों कि हमेशा अकेली ही बनाती आई थी वो,, 

 

अब दोनों में उन्हें सजाने की होड़ लगी हुई थी,, चने और मूंग की दाल से आँखें बनाई गई और पगड़ी सजाई गयी,, 

 

दादी देखो,, मैंने आपसे सुंदर बनाये हैं,, अभी पापा को फोटो भेजता हूँ,, 

 

कितना खुश था वो आज,, अपनी इस उपलब्धि पर,, 

 

राधिका भी बहुत खुश थी,, संस्कृति के इस नये पुराने वर्जन के मिलान पर,, 

 

सर्कल और स्टैंडिंग लाइन से बने गणेश जी को देखकर

 

दिन में दस बार देखता है उन्हें,, उसकी पहली कलाकृति जो हैं,, वो भी संसार का कल्याण करने वाले प्रथम पूज्य गणेश जी,, 

 

हमारी सांस्कृतिक धरोहर को आगे चलकर इन बच्चों को ही तो सहेजना है,, तो क्यों न इनके बालमन में संस्कारों के बीज अभी से बोये जाएं,, 

 

कमलेश राणा

ग्वालियर

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