सावित्री जी ने अपनी युवावस्था में अपने संघर्षरत पति के साथ किए कठोर परिश्रम और अनवरत संघर्षों के पश्चात अपने परिवार को समाज में एक शानदार प्रतिष्ठित स्थान दिलाया था और आज रईसी दुनिया में उनके परिवार का एक विशेष स्थान था। अपने हृदय की उदारता से उन्होंने अत्यन्त औसत परिवार से आई अपनी बहू सविता को भी अपनी पारिवारिक सुख सुविधाओं में सहर्ष स्वीकार किया
लेकिन पिछले 15 दिनों से वे अपनी बहू सविता का एक अति साधारण परिवार से आई अपनी नई-नवेली पोतबहू से शुष्क एवं दंभयुक्त व्यवहार का प्रत्यक्ष अनुभव कर रही थीं, जबकि उनकी पोतबहू के परिवार से बिना दहेज लिए विवाह करने का निर्णय परिवार में सर्वसम्मति से ही लिया गया था। हालांकि
वह स्वयं भी एक औसत परिवार से ही संबंध रखती थी, लेकिन ससुराल के धन-दौलत की चकाचौंध ने धीरे-धीरे उसे अभिमानी बना दिया था और अब वह एक औसत परिवार की सुंदर एवं सुशिक्षित कन्या को अपनी बहू के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही थी और उसे अपने रईस खानदानी पुत्र की शान के समकक्ष हेय मानते हुए बार-बार हीनता का अहसास करवा रही थी ।
यह देखकर सावित्री जी आहत हो रही थीं। अंततः उन्होंने
अपनी बहू को समझाया, ‘बेटा,अपनी बहू के प्रति तुम्हारा रुखा एवं उपेक्षित रवैया मुझे मेरे संघर्षों की याद दिलाने लगा है। तुम्हें अपना ससुराल अत्यन्त प्रतिष्ठित अवस्था में मिला है। इसके पीछे के संघर्ष से तुम सर्वथा अपरिचित हो, लेकिन मैंने इन संघर्षों को जिया है। असल में तुम्हारे यह शानदार ठाठबाट और
रहन-सहन मेरे और तुम्हारे ससुरजी के द्वारा किए गए निरंतर संघर्षों का ही परिणाम है। इस आरामदायक जीवन-शैली की शान के मोह में तुम अपने व्यवहार की शान गंवा रही हो । मैं हैरान हूं कि अभावों में पले-बढ़े अपने पूर्व जीवन को तुम इतनी जल्दी कैसे भुला बैठी हो ? तुम तो ऐसी न थी
! विवाह पूर्व तुम्हारे सरल, विनम्र और शिष्ट व्यवहार ने ही तो हम सब को मोह लिया था । दरअसल आज मैं सचमुच अनुभव कर रही हूं कि ये धन-संपत्ति अच्छे-अच्छों का दिमाग खराब कर देती है।
बहू, तुम्हें इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए कि परिवारों की शान और उनका मान-सम्मान उनके रईसी रहन-सहन में नहीं, अपितु संस्कारों में होता है,जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलायमान रहते हैं।
पोतबहू हमारे कुल की मर्यादा है। अतः अपने बदलते व्यवहार पर आत्मविश्लेषण करो और नवागंतुक बहू को अपने परिवार की वंश परम्पराओं और संस्कारों से परिचित करवाओ ताकि वह भी हमारे कुल की मर्यादाओ का पालन करना सीख सके।’
बहू की आंखें शर्म से झुक गई थीं । उसने तुरंत सासूमां के चरणों का स्पर्श करते हुए आंखों ही आंखों में अपनी गलती को पुनः न दोहराने का अनुमोदन किया। सावित्री जी के मुख पर एक मधुर मुस्कान आ गई।
उमा महाजन
कपूरथला
पंजाब।
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# ये धन संपत्ति ना..अच्छे-अच्छों का दिमाग खराब कर देती है