” मम्मी , लिजीए, चाय” सुघा ने चाय का कप देते हुए कहा |
“अरे, इतनी सुबह तुम उठ गई ” सुषमा चाय का कप पकडते हुए बोली |
“मुझे पता है, आप सुबह जल्दी उठ जाती हैं और चाय पीती हैं |” सुघा उनके बगल में बैठते हुए बोली -“मम्मी, ठंड बढ़ गई है | आप ठीक से रहिये और किसी चीज के लिए परेशान न
होईये |”कहते हुए सुघा कमरे से बाहर चली गई |
सुषमा ने चाय का घूंट भरा और
खुश हो गई | चाय अच्छी थी |”कितनी गलत थी मै |”सुषमा ने सोचा और चाय पीने लगी |उसे बीते दिनों की सारी बातें
याद आने लगी |
रौनक उसका इकलौता बेटा था |सुशील, समझदार और पढ़ने में तेज था |इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर एक अच्छी कंपनी में नौकरी भी प्राप्त कर लिया था |मम्मी-पापा दोनो चाहते थे कि अब उसकी शादी कर दी जाए, परन्तु अचानक उसके पापा की मृत्यु ह्रदय गति रूक जाने से हो गई | इस बात के दो साल हो गये और मम्मी फिर उसकी शादी के लिए प्रयास करने लगी
तभी रौनक ने उसे बताया कि वह अपने साथ काम करने वाली सुघा से शादी करना चाहता है |सुषमा खुश थी और उसे इस बात से कोई आपत्ति
न थी |उसने अपनी बडी ननद को खुशी- खुशी यह बात बताई |जब से उसकी ननद को इस बात की जानकारी हुई, तभी से वह रोज सुषमा को इस बात के लिए समझाने लगी कि वह रौनक की शादी
किसी भी तरह सुघा से न होने दे, नहीं तो उसका बुढ़ापा खराब हो जायेगा |
दरअसल वह रौनक की शादी अपनी
जेठानी की बेटी शालिनी से करवाना चाहती थी, जो अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी |वह पढ़ाई में एकदम कमजोर, घमंडी और जिद्दी लड़की थी | उसके पिता के पास पैसा बहुत था | अत: भरपूर दहेज और घरेलू लड़की दोनों बातों से होने वाले लाभ का गुणगान करते वह थकती न थी |
सुषमा रौनक की खुशी के लिए
उसकी शादी सुघा से कर तो दी, परन्तु वह अपनी ननद की बातों से प्रभावित भी हो चुकी थी |उसकी ननद माया, शादी के बाद एक माह तक रूकी |सुघा और रौनक का शादी के दो दिन बाद ही हनीमून पर जाना, विभिन्न पहनावे में फोटो खिंचवाना, हनीमून से आने के चार दिन बाद ही आफिस जाना शुरू कर देना इत्यादि अनेक ऐसी बातें, जो स्वाभाविक और साधारण थी, पर माया इनसब बातों को इस तरह और इतना
बढ़ा चढ़ा कर कहती कि सुषमा को भी
सुघा की सारी बातें गलत ही लगने लगी | सुघा के आफिस जाते ही वह शुरू हो जाती |
“सुषमा, ये नौकरी करने वाली, फैशनेबल कपड़े पहनने वाली, तडक-भडक में रहने वाली लड़की तुम्हारी देखभाल और सेवा क्या करेगी ? सुबह का नाश्ता और टिफिन बनाकर वह तो आफिस चली जाती है |दोपहर का खाना बनाना और रात में देर से आने पर उसकी मदद करना, दिनभर घर देखना, सब संभालना आनेवाले मेहमानों की आवभगत करना सब तो तुम्हारा ही काम है ना |शालिनी से शादी करती तो इन सब बातों से छुटकारा मिल जाता |मुझे देखो मेरी दोनों बहुऐ घर में रहती है और मैं एक ग्लास पानी भी खुद लेकर नहीं पीती हूँ |मजाल है जो मेरी अनुमति के बिना दोनों कुछ कर ले या कहीं जाये |इसे कहते हैं संस्कार |ये संस्कार भला सुघा में कहां से आयेगें ?” माया रोज़-रोज इसी तरह की बातें सुनाती |पहले तो सुषमा माया की बातों पर ज्यादा घ्यान न देती और उसका बिरोध भी करती, परन्तु थीरे-धीरे उसे माया की बातें ठीक लगने लगी |
एक माह के बाद माया तो चली गई, पर सुषमा के मन में अपनी बातों का प्रभाव छोड़ गई |रही सही कसर वह रोज मोबाईल पर पूरा करती |सुषमा को माया की बातें ठीक लगने लगी और सुघा की हर बात गलत |वह रौनक से तो कुछ न कहती, परन्तु सुघा से बेवजह नाराज रहने लगी |वह दिन पर दिन चिड़चिड़ी होती जा रही थी और छोटी- छोटी बातों पर गुस्सा करने लगी थी |नतीजा यह हुआ कि वह हर समय तनाव में रहने लगी और उसका ब्लडप्रेशर हाई रहने लगा |रौनक अपने काम में व्यस्त रहता और सुषमा भी उससे कुछ न कहती, अतः उसे लगता सब ठीक है |सुघा घर का माहौल न बिगड़े इसीलिए चुप रहती |वह मम्मी से जितना नजदीक होने की कोशिश करती, वो उतना ही उससे दूर होती जा रही थी |शादी के छ माह हो गये थे और सुघा सुषमा का दिल जीतना तो दूर, दिल के करीब भी न आ पाई थी |वह मन ही मन उदास रहती और सुषमा जी को खुश करने का हर संभव प्रयास करती |
सुषमा जी पर तो माया का प्रभाव था | उसे सुघा की अच्छाईयां
नजर ही न आती थी | चार दिन पहले की ही बात है, अत्याधिक तनाव, गुस्सा और चिडचिडाहट के कारण सुषमा जी का ब्लडप्रेशर हाई हो गया और वह सुबह सुबह बाथरूम में चकराकर गिर गई |उन्हें अस्पताल ले जाया गया और
पता चला गिरने से उनके घुटने और कमर में चोट लगी है |चार दिन तक वे अस्पताल में रहीं |रौनक और सुघा ने
उनकी पूरी देखभाल की |कल शाम को वे घर आई |डाक्टर ने उन्हें एक महिने तक आराम करने को कहा |साथ ही उनकी पूरी देखभाल करने और चिंता मुक्त रखने को भी कहा |”अस्पताल में तो सुघा ने उनकी बहुत अच्छी तरह से देखभाल की थी, पर क्या घर में भी करेगी”सुषमा ने सोचा और एक गहरी सांस ली |
“मम्मी, यह शीला है | यह आज से आप का सारा काम करेगी |सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक यह यहाँ रहेगी, खाना बनायेगी और आपकी देखभाल भी करेगी | बाकी समय तो हम रहेंगें ही आपके पास |” सुघा ने अपने साथ आई महिला की ओर इशारा करते हुए कहा-” शीला, यह हमारी मां हैं, तुम इनकी अच्छी तरह से देखभाल करना |इन्हें कोई दिक्कत न हो |यह ध्यान रखना |अब जाओ, नाश्ता बनाओ |”शीला बाहर चली गई |
“मम्मी, आप किसी प्रकार की चिंता न करें |आराम से रहे ं |किसी चीज की जरूरत हो तो तुरंत बतायें |जब जो खाने की इच्छा हो, शीला बनाकर देगी | मैंने आफिस से एक संप्ताह की छुट्टी ली है | उसे सब समझा दूंगी |आप परेशान न हों | “सुघा सुषमा को रजाई उठाते हुए बोली |
सुषमा का मन ग्लानि से भर उठा| |कितना गलत सोचती थी वह|”सुघा मुझे माफ कर दो |मैंने
तुम्हारे साथ कितना गलत व्यवहार किया, फिर भी तुम मेरे लिए इतना कर रही हो | अस्पताल में भी मेरी इतनी
सेवा की और घर में भी मेरे लिए परेशान हो |”सुषमा ने सुघा का हाथ पकडते हुए कहा |
“मम्मी,बड़े माफी नहीं मांगते हैं, आर्शीवाद देते हैं |आप हमारी मां हैं |हम आपका ध्यान न रखेंगे, तो कौन रखेगा |
बस आप दूसरों की बात में न आये |आप को जो परेशानी हो, हमसे कहें |” सुघा उनका पैर छूते हुए बोली |
“तुम बहुत अच्छी और संस्कारी हो |भगवान तुम्हें सदा सुखी रखें |” सुषमा ने सुघा को गले लगा लिया |कमरा दोनों की हंसी से भर गया और सारा तनाव खत्म हो गया |
#संस्कार
सुभद्रा प्रसाद