संकोच की बेड़ियां – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

सुदीप्ता घर की छोटी बेटी थी। मम्मी-पापा और दो साल बड़ा एक भाई थे परिवार में।पिता ने कड़ी मेहनत से कस्बे में अपना व्यवसाय स्थापित किया था,जिसमें अब सुदीप्ता के भाई(आशीष)भी अपना योगदान दे रहे थे।

सुदीप्ता पढ़ने में शुरू से होशियार थी।परिवार की  किसी भी बेटी को बाहर पढ़ने नहीं भेजा गया था। सुदीप्ता के माता-पिता और भाई ने अपने समाज की परंपरा तोड़ते हुए सुदीप्ता को बाहर (शहर)में पढ़ने की इजाजत दी थी।सुंदर और शालीन व्यवहार होने से सुदीप्ता सब की चहेती थी।पोस्ट ग्रेजुएट (कंप्यूटर साइंस)होते ही पुणे में नौकरी भी लग गई उसकी।

संकीर्ण मानसिकता वाले समाज की परंपरा को बदलकर माता-पिता ने सुदीप्ता का सदा सहयोग ही किया।बड़े भाई की शादी तीन महीने पहले ही संपन्न हुई थी।सजातीय लड़की को पसंद करके भाई ने अपनी बहन के ऊपर मां-पापा को मनाने की जिम्मेदारी डाली थी,जिसे सुदीप्ता ने निभाया भी था शत् प्रतिशत।

भाई की शादी के समारोह में ही उसके लिए रिश्तों की बौछार होने लगी।उस समय तो उसने टाल दिया,पर अब मम्मी -पापा ने अल्टीमेटम दे दिया”देख बेटा,अब अगले साल तक तेरी शादी भी कर देंगे हम।तू पढ़ना चाहती थी,हमने पढ़ने दिया।नौकरी करना चाहती थी,हमने वह भी करने दिया।अब भाभी भी तेरी पसंद की आ गई है।अब तू भी शादी के लिए अपना मन बना लें।”

मम्मी -पापा की बातों को झुठला भी नहीं सकती थी वह। मम्मी,जो खुद तो ज्यादा पढ़ नहीं सकीं ,बेटी को पढ़ने दिया।पापा,जिनके परिवार में कभी कोई बेटी बाहर नहीं निकली कस्बे के,वो भी उत्साहित ही करते रहे उसे।सुदीप्ता ने सोचा था भाई की शादी के समय ही बता देगी भाई को अपनी पसंद के बारे में।कई बार बात शुरू भी करनी चाही तो,भाई ने टोका”अरे,तू अभी से टेंशन क्यों लेने लगी?साल भर का समय है ना तेरे पास। अभी तू चिंतामुक्त रह।”

सुदीप्ता ने भी घर में कलह करना उचित नहीं समझा।भाई की शादी से लौटते ही मम्मी के फोन पर बात करने का विषय सीमित हो गया,लड़के पसंद करने की बात पर।रोज़ सुदीप्ता सोचती कि आज बता देगी,पर बता ही नहीं पा रही थी।कल मम्मी ने फोन पर बताया”बड़े पापा की बेटी(सारिका दीदी)की शादी तय हो गई है,दीपू

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दीवाली में सगाई होगी।उसके ससुराल वालों ने एक अच्छे से लड़के का रिश्ता बताया है तेरे लिए।तू जब दीवाली की छुट्टी में आएगी,तब बात आगे बढ़ाएंगे।हां सुन,भाभी के सामने ज्यादा चूं-चपड़ ना करियो।क्या सोचेगी वह कि बेटी को संस्कार नहीं सिखाया हमने।पहले बात और थी,अब बहुत सोच-समझ कर बात करनी पड़ती है

गुड्डो।हमारे घर की बात उसके मायके में पहुंचती है।वैसे तो वह बहुत अच्छी है,पर अपनी मां से अकेले में बतियाती है,तो धीरे-धीरे।मैं भी अब तेरे भैया से ज्यादा डांट-डपट कर बात नहीं करतीं।नई गृहस्थी है दोनों की,दोनों को अकेला छोड़ देती हूं।तू भी ज़रा ध्यान रखना बेटा,अच्छा।”सुदीप्ता को कभी -कभी तो सच में लगता कि

, मम्मी उसे समझती ही नहीं। दकियानूसी ख्यालों में अब तक जकड़ी हैं वे।आज ऐसा लग रहा था, मानो मम्मी ख़ुद ही अग्नि परीक्षा से गुजर रही है।समय के साथ परिवार के सदस्यों के बीच ये कैसे संकोच की बेड़ियां बंध जातीं हैं।बहू के आ जाने से बेटे से संकोच।मतलब यह कि भाभी के रहते,भाई से संकोच करना पड़ेगा कुछ भी बोलने से। भाई-बहन के रिश्तों में भी यह बेड़ियां पढ़ गईं।

अब तो रघु (सुदीप्ता की पसंद) ने अपनी मम्मी से भी बात करवा दी थी, सुदीप्ता की। वीडियो कॉल पर लगभग पंद्रह मिनट बात हुई,रघु की मां से।बात क्या मानो इंटरव्यू ही हो रहा था। विजातीय था रघु,पर उच्च जाति का था।मानने में दुविधा उसकी मम्मी को भी हुई थी,पर बेटे के पहले आग्रह को सम्मान दिया था उन्होंने।

रघु ने बताया था सुदीप्ता को”देखो सुदीप्ता,मैं पूरी कोशिश करूंगा कि मेरे घर वाले मान जाएं।उनकी मर्जी के बिना हम शादी नहीं करेंगे। तुम्हें भी अपने परिवार से बात कर लेनी चाहिए।इस रिश्ते को दोनों परिवारों की सहमति की मुहर लगाकर ही हम शादी कर पाएंगें।”

रघु की बात सही थी। सुदीप्ता भी अपने परिवार के विरुद्ध जाकर तो नहीं करेगी शादी,पर बताए कैसे और किससे?

अपनी रूममेट की मम्मी से अच्छी बनती थी उसकी।आंटी भी अपनी आंखों का तारा समझती थी उसे। सुदीप्ता ने रूममेट (शिखा)को मना किया था अपनी मम्मी से बताने को।शिखा ने बताया भी नहीं था।एक दिन शिखा की मम्मी को सुदीप्ता ने फोन पर सब कुछ बताया,और सलाह मांगी।शिखा की मम्मी ने समझाया

“बेटा,इतनी महत्वपूर्ण बात सबसे पहले तुम्हारे परिवार को पता होनी चाहिए,फिर मुझे।कल को कहीं और से अगर तुम्हारी मम्मी को पता चलेगा,तो कितना दुख होगा उन्हें।मैं तुम्हें प्यार करती हूं,शायद मां की तरह ही,पर मैं मां नहीं हूं।तुम जल्दी से जल्दी परिवार में इस संबंध के बारे में बात करो।समय बदलते देर नहीं लगती बेटा।”

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सुदीप्ता ने भी सहमति जताई और वादा किया कि अगले दिन ही भाई से बात करेंगी।भाई को उसने फोन पर ही अपने प्रेम के बारे में बताया।भाई आशा के विपरीत उदासीन ही रहा। सुदीप्ता ने रघु का नंबर भी दिया ताकि एक बार बात कर लें भाई उससे। संतोष हो मन में तब मम्मी पापा को बताए।

एक सप्ताह बीत गया तो रघु ने ही सुदीप्ता को चेताया। सुदीप्ता ने भाई को फिर से याद दिलाया ,तो वह सपाट स्वर में बोले”देख दीपू,अभी सारिका दीदी की शादी की तैयारी चल रही है। मम्मी पापा भी उसी में व्यस्त है।वैसे तो मुझे पूरा विश्वास है कि पापा कभी नहीं मानेंगे,पर अभी मैं उनसे कुछ कह नहीं पाऊंगा।

मैं भी अभी टेंशन ले नहीं पाऊंगा, क्योंकि तेरी भाभी सोच में पड़ जाती है ,मुझे ऐसे देख।उसके सामने तो मैं किसी से कुछ कह नहीं सकता।कुछ दिनों में वह मायके जाएगी,तब देखता हूं।”

सुदीप्ता अवाक थी,तो मम्मी सच ही कहा रही थी।एक ही छत के नीचे रह रहे लोगों के मन में इतना संकोच कैसे आ सकता है?अब तो भाभी भी मायके जा चुकी थी,पर भाई ने रघु से बात नहीं की थी।शिखा की मम्मी को सुदीप्ता की मां की चिंता हो रही थी,कि कैसे बर्दाश्त करेंगी यह बात। सुदीप्ता ने बताया “आंटी ,भैया ने अभी तक रघु से बात नहीं की।वह भी बार-बार पूछ रहा है कि भाई कब बात करेंगे?मैं बहुत टेंशन में हूं आंटी,आप सलाह दीजिए कि क्या करूं?”

यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि एक मां के विश्वास को मरने ना दिया जाए।अपने परिवार व समाज के विरुद्ध जाकर बेटी को आजादी देना कहीं अभिशाप ना प्रमाणित हो। जिम्मेदारी यह भी थी कि एक कोमल मन संकोच की बेड़ियों में जकड़ा टूट जाए।निश्छल हंसी रोने का कारण ना बन जाए।बेटियां सबकी एक होतीं हैं,

और सारी मांएं एक जैसी‌।शिखा की मां ने सुदीप्ता को समझाया”देख बेटा,जिसने तुझे जन्म दिया है ,उसे तेरी हर अच्छी -बुरी बात जानने का अधिकार पहले है।संकोच की बेड़ियां तुझे ही तोड़नी होगी।वो कल भी तेरी सहेली थी ,आज भी है।ख़ुद उनसे सारी बात सही-सही कह दे।उनसे ही सलाह लें,क्या करना है?वह मां होने से पहले एक औरत है,लड़की है।

तेरे संबंध की विश्वसनीयता और भविष्य वही सही बता सकती हैं।मां से मन की बात कहने में कैसा संकोच?भाई के द्वारा अपनी बात कहलवाना उन्हें भी शायद अच्छा नहीं लगेगा।मां नौ महीने पेट में रखती है अपने,उसे तो सांसों का भी हिसाब रहता है अपने बच्चों का।तू सीधे उनसे बात कर।यदि रिश्ते में संभावना होगी,तो वह जरूर प्रयास करेगी।”

सुदीप्ता फोन पर ही रोते हुए बोली”थैंक यू आंटी,आपने मेरे संकोच की बेड़ी तोड़ दी।मैं कल ही मां से बात करती हूं।उनसे कहूंगी कि अगर उन्हें मंजूर नहीं तो मेरी भी कोई ज़िद नहीं।”

आज रिश्तों के बीच अनजाने आ गई संकोच की एक बेड़ी टूट गई।

शुभ्रा बैनर्जी 

रिश्तों में बढ़ती दूरियां

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