संजीवनी—– कंचन श्रीवास्तव 

सारे मेहमानों के जाने के बाद अब आखिर में बचा सभी की अदायगी हां भाई जिस जिस को सहेजा था सभी एक ज़वान पर आए,क्या गेस्ट हाउस वाला और क्या रोज़ के नौकर चाकर किसी ने भर शादी मुंह नहीं खोला।

यही वजह है कि रमा का हाथ और खुल गया।और बेटे की शादी के बाद मेहनताना से कहीं ज्यादा पैसा सब पर लुटाया।

एक एक कर सभी का हिसाब किताब हो गया ।तो उसने चैन की सांस ली।

कोई कह नहीं सकता कि खातिर दारी में कोई कमी रह गई हो।

भले राम बाबू बिस्तर पर थे पर सारी जिम्मेदारी बिना झुंझलाए उसने पूरा किया।

उसे अच्छे से याद है शादी के दो चार साल बाद ही उनकी दैहिक स्थिति अच्छी नहीं रही ,अब जब वो नहीं अच्छी रही तो कमाते कहां से।और जब कमाई नहीं तो इज्ज़त और सम्मान कहा।उसका तो दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं पर इसने हिम्मत न हारी और पानी अधूरी पढ़ाई को आगे जारी रखा। फिर कुछ ही दिनों में एक स्कूल की लेक्चरर हो गई।


फिर तो क्या था गाड़ी पटरी पर चल पड़ी। बच्चों से लेकर पति और गृहस्थी सब कुछ संभाल लिया।

जिसे लोग देखते ही रह गए।

और आज देखो न शादी भी धूम धाम से की।

कि देखने वाले दांतों तले उंगली दबा लिए।

और आज, आज सब राम बाबू से सराहना करने लगे।

कि पत्नी हो तो ऐसी जितनी रूपवान , गुणवती उतनी ही धैर्यवान।

कितने धीरज और समझदारी से सब कुछ संभाल लिया।

माना सांस,ससुर घर परिवार का सहयोग नहीं रहा पर पति की सहमति उसका संबल बनी और वो जिम्मेदारियों का वहन करती रही।


और आज सबसे बड़ी जिम्मेदारी उसके सामने है कि जो कुछ उसके साथ हुआ उसे दोहराना नहीं है यही बात उसके और नए संबंधों के बीच संजीवनी का काम किए।

जिस तरह वो बेटी और दामाद का सम्मान की।

ठीक उसी तरह उसने साल भर   पहले घर आई  बहू का भी किया।

सुबह से ही उठकर सारी तैयारी की साड़ी कपड़ा, बच्चे के जरूरत का सामान क्या कुछ नहीं दिया साथ ही उसके खर्च के लिए रूपए ,जिसे पा शोभा गले लग  फूट पड़ी और बोली मां मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मां  यहां  आ गई। खर्च के लिए सांस के द्वारा रूपए पर्स में ढंग से सहेज कर रख ली और पैर छूकर भाई के साथ बच्चे को ले मायके चली गई।

स्वरचित

आरज़ू

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