…तीनों बेटियों का ब्याह अम्मा ने उनके पिता के रहते ही कर दिया था… पिताजी ने अपनी हैसियत के हिसाब से जो बन पड़ा… कुछ अधिक तो नहीं… पर खाते पीते घर में सब गईं… बच गया छोटा मोहित… उसके बनने से पहले ही पापा चल बसे…
अम्मा ने बचे पैसे बेटे को एक से एक डिग्रियां दिलाने में लगा दी… “बेटा पढ़ लिखकर कहीं लग जाए…” बस अब एक ही ख्वाहिश थी…
भगवान ने सुन ली… मोहित ने बहुत सारी डिग्रियां लेकर… एक मल्टीनेशनल कंपनी में मोटे तनख्वाह पर नौकरी ज्वाइन की… मां के तो जैसे सारे सपने साकार हो गए…
अब बारी थी मोहित के ब्याह की… बड़े-बड़े घरों से रिश्ते आने लगे… एक से एक बड़े घर की बेटियां… सब देख सुनकर अम्मा ने अपने लिए बहू पसंद किया… साल भर की नौकरी में ही मोहित ने घर को बंगला बना दिया था… दुल्हन आई तो बंगला सज कर महल बन गया…
अम्मा ने बेटियों का भी ब्याह में खूब मान किया… बढ़िया कपड़े, गहने लेकर बेटियां विदा हुईं… उनका मायका अब अमीर हो गया था… वे बहुत खुश थीं… अब वे भी बड़े घर की बेटियां हो गई थीं…
मोहित की दुल्हन छवि… पैसे वाले की बेटी… पैसे वाले की बीवी बनी थी… वह अपनी ननदों से कटी कटी रहती थी… कभी खुलकर बात नहीं होने से भाभी और ननदों के बीच एक दूरी बनने लगी…
ननदों को लगता था की छवि को पैसे का गुरूर है… इसलिए वह ऐंठी रहती है… धीरे-धीरे उन्होंने मायके जाना कम कर दिया… आखिर कोई भी हो जहां खुलकर बातचीत ना हो… वहां मन की बात पता नहीं चल पाती… और एक दूसरे के लिए गलतफहमियां बनने लगती हैं…
छवि के भीतर ननद नाम के साथ एक खौफ था… उसमें तीन-तीन ननदें… कहीं कुछ ऊपर नीचे हो गया तो मेरी तो खैर नहीं… इसलिए वह पहले ही उनसे कटी रहती थी…
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इसी तरह दो साल बीत गए… छवि को पहला लड़का हुआ… मोहित ने बड़ी शानदार पार्टी दी… सभी बहनों को न्यौता दिया… छवि ने अम्मा से कहा…” अम्मा दीदी आएंगी तो उनके लिए क्या लेना है… क्या देना है… आप खुद ही देख लेतीं…!” लेकिन अम्मा मुंह बनाकर बोली…” यह सब जब तक मेरे हाथ में था मैं देती थी… देखती थी… अब तो तेरा घर है… जो जी में आए कर…!”
छवि मोहित के पास गई…” मोहित दीदियों को… जो नेग देना हो आप ही ले लीजिए… मुझे नहीं समझ आता…!”
मोहित ने बेचारगी से कहा…” देखो छवि… मुझे उतना समय नहीं है… तुम भी जानती हो… पार्टी के लिए टाइम निकाल लूं …वही बहुत है… तुम ले लो ना… तुम जो लोगी अच्छा ही होगा…!”
छवि सोच विचार में बाजार जाने लगी.… तो अम्मा ने हिदायत दी…” जो लेना हो… जिसके लिए… वह ले लेना… लेकिन तीनों बहनों के लिए एक सा ही लेना… कोई भेदभाव मत करना… मैंने कभी अपनी बेटियों में फर्क नहीं किया…!” यह सुनकर छवि सोच में पड़ गई… मन तो किया कि दीदियों से ही पूछ ले… मगर यह रिस्क वह नहीं लेना चाहती थी… आखिर उसने सबको पैसे देने का ही मन बना लिया…” इतना एक सा शॉपिंग मुझसे नहीं हो पाएगा… मैं सभी को पैसे दे दूंगी… जिसे जो लेना हो वह ले ले…!” ऐसा मन में विचार कर वह दूसरी तैयारी में लग गई…
मगर यह भूल उसे भारी पड़ गई… बहनों ने जब नेग में कपड़ों और गहने की जगह पैसे देखे तो बवाल हो गया…” क्यों भाभी… हमें भिखारी समझ रखा है क्या…!”
” यह क्या बात हुई… हमारे पास पैसे नहीं थे क्या… जो हमें पैसे का गुरूर दिखा रही हो…!”
“हां तुम्हारे पास ज्यादा है… पर हम भी तो गरीब नहीं…!” बात बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ गई कि घर में सभी मेहमानों का जमावड़ा लग गया… सभी छवि को नसीहत देने लगे…” ऐसा नहीं करना चाहिए था तुम्हें… आखिर भतीजे के जन्म में ननदों का तो अधिकार होता है…!”
छवि रो पड़ी…” माफ कर दें… मुझे नहीं पता था कि यह बात इतनी गंभीर है… मैंने तो सोचा की आप सभी अपने पसंद से ले लेंगी…!”
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आखिर जिस बात का उसे इतने दिनों से डर था वह हो ही गया था… तीनों बहनें एक साथ नाराज हो गई थीं…मगर छवि को रोता देख उनका दिल पसीज गया…” अरे भाभी वह तो ठीक है… लेकिन कुछ तो ले लेतीं…!”
” तुम प्यार से एक सूती साड़ी दे देती… हम खुशी-खुशी ले लेते… हमें महंगे गिफ्ट या पैसों की नहीं… तुम्हारे प्यार से भरे दो बातों और थोड़े समय की चाह है…!” छोटी ननद ने यह कहकर छवि के गले में अपनी बाहें डाल दी…
अम्मा और मोहित ने भी अपनी ग़लती मान कर बात संभाल लिया… छवि का ननदों के लिए मन में दबा सारा डर खत्म हो गया…” अच्छा तो चलिए दीदी… हम सब मिलकर चलते हैं… आप लोगों को जो भी पसंद आए आप ले लीजिए और पैसे मुझे वापस कर दीजिए…!” बहनें मान गईं…
यहां तो बात इतने में बन गई… मगर अक्सर घर परिवार में… छोटी-छोटी बातों में एक दूसरे से संवाद हीनता रिश्तों में दूरियां और फिर खाईयां बनकर उभर जाती हैं… इसलिए कृपया संवाद बनाए रखें… आपको क्या लगता है…
रश्मि झा मिश्रा
“पैसे का गुरूर…”