सामने वाला पार्क – नेकराम : Moral Stories in Hindi

मैं घर के नजदीक ही एक मेडिकल शॉप में काम करता था रात को जब भी घर लौटता पत्नी का चेहरा फूला हुआ देखता न जाने वह किस बात को लेकर गहरी चिंता में डूबी रहती थी शादी को 7 साल बीत चुके थे

शादी के शुरूआती दिनों में तो मैंने पत्नी की इस बात पर कोई गौर नहीं किया हमेशा अनदेखा करता रहा लेकिन जब बात बहुत बढ़ गई तब मैंने एक दिन अकेले में पत्नी बताया …..

घर में हमारा छोटा सा परिवार है

मां को तो मैंने बचपन से कभी देखा ही नहीं घर में केवल बाबूजी है जिन्होंने मुझे पाल पोसकर बड़ा किया है और मैं घर का एक इकलौता बेटा हूं घर की सारी संपत्ति मेरी है और तुम इस घर की अकेली मालकिन हो फिर भी तुम इस घर में खुश नहीं हो आखिर बात क्या है

तब पत्नी ने बताया जब से शादी होकर इस घर में आई हूं बाबूजी सामने वाले पार्क में चले जाते हैं घंटो घंटो वहीं बैठे रहते हैं शाम को जब तुम घर लौटते हो उसके बाद ही बाबूजी घर आते हैं दोपहर की चाय ठंडी हो जाती है मुझे ही पार्क में जाना पड़ता है बाबूजी को खोजने के लिए

वहां बाबूजी के और भी अन्य दोस्त बैठे रहते हैं मुझे ऐसा लगता है जैसे बाबूजी मेरी चुगली अपने दोस्तों से करते होंगे बस यही बात मुझे पसंद नहीं है तभी तो वह घर नहीं आते सारा दिन पार्क में ही पड़े रहते हैं

अपनी शादी के इन 7 सालों में सोनू भी अब 6 साल का हो चुका है

पहले अकेले जाते थे अब सोनू को भी साथ में ले जाते हैं ।।

खुद तो पार्क में पड़े रहते हैं अपने पोते सोनू को भी पार्क की धूल मिट्टी में दौड़ते रहते हैं

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उस दिन पत्नी की बात सुनकर मैं एकदम सन्न रह गया और पत्नी को बताया जब मेरी शादी तुमसे होने वाली थी उसके एक दिन पहले ही

हमारे पड़ोस के मुकेश चाचा हमारे घर पहुंचे मैं बाथरूम में नहा रहा था

मुकेश चाचा बाबूजी को बताने लगे

तुमने बहुत गरीबी देखी है बड़ी मुश्किल से नेकराम को पढ़ाया और लिखा अपनी खून पसीने की गाढ़ी कमाई से जो कुछ पैसे इकट्ठे किए थे  तुमने यह छोटा सा फ्लैट खरीदा था

फ्लैट में एक ही कमरा है  तुमने यह भी नहीं सोचा जब नेकराम की शादी होगी तो उसे भी एक अपना अलग कमरा चाहिए होगा

लेकिन इसमें महंगाई के दौर में यह छोटा सा फ्लैट खरीदना भी तुम्हारे लिए पहाड़ की चोटी पर चढ़ना जैसा काम था जिसकी किस्ते अभी भी बाकी है

तब बाबूजी मुकेश चाचा से कहने लगे नेकराम की शादी के लिए लड़की मिल चुकी है हर पिता का एक अरमान होता है कि वह अपने बेटे की शादी बड़ी धूमधाम से करें मुझे तो दिन पर दिन बूढ़ा ही होना है मुझे कमरे की क्या जरूरत है मैं अपना यह कमरा नेकराम और उसकी बहू को दे दूंगा दिन तो मैं बाहर के पार्क में बिता लूंगा रात को जब नेकराम दुकान से घर लौटेगा तब मैं भी घर लौट आया करूंगा अपने बहू बेटे के साथ में मिलकर खाना खाएंगे फिर आंगन में जो बैंच पड़ी है वहां सो जाया करूंगा

इस फ्लैट की अभी बहुत सी किस्त बाकी है लेकिन मैं नेकराम को बता कर उसे परेशान नहीं करना चाहता हूं

आखिर मैं पिता हूं अपने बेटे के सामने घुटने कैसे टेक सकता हूं

जब एक पिता बेटे को पालने के लिए अपने जीवन भर की पूंजी लगा सकता है उसे और उसकी पत्नी को रहने के लिए कमरे की व्यवस्था कर सकता है इसे ही कर्म चक्र कहते हैं एक पिता अपने बेटे के लिए सब कुछ करता है और फिर वही बेटा अपने बच्चों के लिए सब कुछ करता है ऐसे ही सृष्टि चल रही है

अक्सर गरीब घरों में एक कमरा होने की वजह से परिवार में रहने वाले लोगों में कई समस्याएं उत्पन्न होती है लेकिन हर समस्याओं का समाधान है मैंने समाधान ढूंढ लिया है सामने वाला पार्क

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सारा दिन उसी में जाकर बैठूंगा और अपना दिन बिताऊंगा नए दोस्त मिलेंगे उनसे बातचीत होगी तो समय भी कट जाएगा

पत्नी मेरी बात ध्यान से सुन रही थी

इस बात को सुनने के बाद कई महीने बीत गए पत्नी ने मुझसे कभी बाबूजी को लेकर कोई शिकायत नहीं की

क्योंकि पत्नी को पता चल चुका था घर के बड़े बुजुर्ग अपनी कुर्बानियां देकर बच्चों की खुशियां चाहते हैं

लेखक नेकराम सिक्योरिटी गार्ड

मुखर्जी नगर दिल्ली से

स्वरचित रचना

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