आज सुबह का माहौल घर में बेहद व्यस्त और भारी था। सीमा सुबह तड़के ही उठ गई थी। रसोई में हलचल शुरू हो गई थी। घर में ससुर जी का वार्षिक श्राद्ध था, और सीमा इसे बड़ी धूमधाम से मनाना चाहती थी। उन्होंने अपने पति मोहित से कहा था कि वह इस बार श्राद्ध को बिल्कुल परफेक्ट बनाना चाहती हैं। यह पहली बार था जब पूरे समाज के पंडितों और रिश्तेदारों को श्राद्ध के लिए आमंत्रित किया गया था।
रसोई में घी, मसाले, और पकवानों की महक छाई हुई थी। पूड़ी, हलवा, खीर, कई तरह की सब्जियाँ, और पकौड़े—हर चीज़ का प्रबंध सीमा ने खुद किया था। उनकी सास, शांति देवी, जो उम्र के साथ कमजोर हो चुकी थीं, सुबह से सीमा के इर्द-गिर्द घूम रही थीं। वह उत्सुक थीं कि इतने पकवान बनते देख कुछ चखने को मिल जाए।
शांति देवी ने रसोई में आकर प्यार से कहा, “बेटा, जरा एक पूड़ी दे दो। सुबह से कुछ खाया नहीं है।”
सीमा, जो पकवान बनाने में व्यस्त थी, झल्लाकर बोली, “माँजी, यह श्राद्ध का खाना है। इसे पंडितों के लिए बनाया जा रहा है। आप जरा इंतजार कर लें। अभी खाने का समय नहीं हुआ।”
शांति देवी ने फिर से आग्रह किया, “बेटा, थोड़ा सा ही दे दो। मैं बस चखना चाहती हूँ। सुबह से भूखी हूँ।”
यह सुनकर सीमा का पारा चढ़ गया। वह गुस्से में बोली, “माँजी, अपनी जीभ पर थोड़ा काबू रखिए। आप एक दिन देर से खा लेंगी तो मर नहीं जाएँगी। अभी मुझे काम करने दीजिए।”
शांति देवी का चेहरा उतर गया। उन्होंने अपनी भरी आँखों से सीमा को देखा और चुपचाप अपने कमरे में चली गईं।
घर के सभी सदस्य श्राद्ध की तैयारियों में जुटे थे। मोहित ने मेहमानों के स्वागत की जिम्मेदारी संभाली थी, और सीमा ने खाना बनाने और परोसने का काम।
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दोपहर तक, पंडितों को बुलाया गया। हॉल में ससुर जी की तस्वीर पर फूलों की माला चढ़ाई गई। सीमा ने बड़े गर्व से पंडितों को एक-एक करके पकवान परोसे। पंडित खाने की तारीफ कर रहे थे, और सीमा के चेहरे पर संतोष झलक रहा था।
लेकिन शांति देवी कमरे में ही बैठी रहीं। वह न तो हॉल में आईं, न ही किसी से कुछ कहा। उनके कमरे का दरवाजा बंद था।
भोजन के बाद, पंडितों को दान-दक्षिणा देकर विदा किया गया। अब दोपहर के तीन बज चुके थे। सीमा ने चैन की साँस ली। उसने सोचा, “अब माँ को खाना खिला देती हूँ। सुबह की बात को वह भूल गई होंगी। इतने सारे पकवान देखकर उनका गुस्सा ठंडा हो जाएगा।”
सीमा ने एक थाली में पूड़ी, हलवा, खीर, सब्जी, और अचार सजाया। पकवानों को देखकर वह खुद पर गर्व महसूस कर रही थी। वह सोच रही थी कि माँ जी यह देखकर खुश हो जाएँगी।
थाली लेकर सीमा माँ के कमरे की ओर चली। उसने दरवाजा खोला और मुस्कुराते हुए कहा, “माँजी, देखिए, आपके लिए कितने सारे पकवान लाईं हूँ। अब खाइए और मजे से खाइए।”
लेकिन कमरे में अजीब सी खामोशी थी। सीमा ने देखा कि शांति देवी बिस्तर पर लेटी हुई थीं। उनका चेहरा शांत था, लेकिन उनकी आँखें बंद थीं। सीमा ने थाली बिस्तर के पास रख दी और उन्हें पुकारा, “माँजी, उठिए। मैंने खाना लाया है।”
कोई जवाब नहीं मिला। सीमा ने पास जाकर उनका कंधा हिलाया। लेकिन शांति देवी हिली नहीं। उनका शरीर ठंडा और निष्प्राण था।
सीमा के मुँह से एक जोरदार चीख निकली। पूरे घर में उसकी चीख गूँज उठी। मोहित और बाकी परिवार दौड़कर कमरे में आए।
मोहित ने माँ का हाथ पकड़कर देखा। वह समझ गया कि उनकी माँ अब इस दुनिया में नहीं रहीं।
सीमा ने फूट-फूटकर रोना शुरू कर दिया। उसे सुबह की बात याद आ रही थी, जब उसने माँ को झिड़क दिया था। वह सोच रही थी, “अगर मैंने माँ को सुबह खाना दे दिया होता, तो शायद ऐसा नहीं होता। मैंने उन्हें अपनी बातों से कितना दुख पहुँचाया।”
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पूरे घर में मातम छा गया। परिवार के अन्य सदस्यों ने शांति देवी के अंतिम संस्कार की तैयारियाँ शुरू कर दीं। लेकिन सीमा का रोना बंद नहीं हो रहा था। उसे अपनी गलती का एहसास हो चुका था।
उसने खुद से कहा, “मैंने सोचा था कि माँजी पकवान देखकर खुश हो जाएँगी, लेकिन मैंने यह नहीं सोचा कि मेरे शब्दों ने उन्हें कितना चोट पहुँचाया। उनकी भूख से ज्यादा उन्हें मेरे व्यवहार ने तकलीफ दी।”
मोहित ने सीमा से कहा, “तुम्हारे शब्दों ने मेरी माँ को मार डाला। वह सुबह से भूखी थीं और तुमने उन्हें एक निवाला तक नहीं दिया। माँजी का यह हाल तुम्हारी वजह से हुआ है।”
सीमा ने कोई जवाब नहीं दिया। वह सिर्फ रोती रही। उसे समझ में आ गया था कि उसके व्यवहार ने कितनी बड़ी त्रासदी को जन्म दिया।
अंतिम संस्कार के बाद, सीमा ने एक बड़ा निर्णय लिया। उसने कसम खाई कि अब से वह किसी भी बुजुर्ग के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करेगी। उसने अपने बच्चों को भी सिखाया कि अपने बड़ों का सम्मान करना कितना जरूरी है।
इस घटना ने पूरे परिवार को बदल दिया। अब घर में हर सदस्य एक-दूसरे के साथ प्यार और सम्मान से पेश आता था। सीमा ने हर साल सास का श्राद्ध बड़ी श्रद्धा और सच्चे मन से करना शुरू कर दिया।
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें अपने बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए। उनके प्रति हमारी छोटी-छोटी बातें और व्यवहार उन्हें गहराई से प्रभावित कर सकती हैं। रिश्तों में प्यार और सम्मान ही सबसे बड़ी दौलत है।
—- मोनिका रघुवंशी