अरे बहु मानसी बहुत खांसी उठ रही है जरा सा गर्म पानी दे दो निर्मला जी लगातार खास रही थी और अपनी बहू मानसी को आवाज़ लगाए जा रही थी जो बरामदे में बैठी अपने फोन पर कानों में लीड लगाए गाने सुन रही थी। इतनी देर में उनके पति राकेश जी पानी गर्म करके अपनी पत्नी के लिए ले आए और उन्हें पीने के लिए दिया ।
निर्मला जी अपने पति से बोली कितनी आवाज़ लगा चुकी हूं मैं मानसी को लेकिन एक आवाज का भी जवाब नहीं दिया। चाहे आदमी खांसता खांसता मर ही क्यों न जाए। बहु तो बहू मेरा खुद का बेटा भी बीमार मां के पास बैठना नहीं चाहता। राकेश जी ने इतना ही कहा अरे छोड़ो क्या रखा है इन बातों में जाने दो सबको अपने-अपने काम भी तो होते हैं अब बुढ़ापे में उनके अनुसार रहने की आदत हमें डालनी ही पड़ेगी।
समय के अनुसार आदमी को ढलना ही पड़ता है। यह तो रीत है दुनिया की। राकेश जी और सुमित्रा जी गाजियाबाद में रहते हैं और उनका इकलौता बेटा राजन भी इसी शहर में इंजीनियरिंग कॉलेज में पढाता है राजनगर में उनका अपना घर बना हुआ है। बहु मानसी हाउसवाइफ है। और उसके दो बेटे हैं बड़ा बेटा 7th क्लास में है और छोटा बेटा 5th क्लास में। मानसी को अपने कामों में बेवजह अपनी सास की दखलअंदा जी बिल्कुल पसंद नहीं है निर्मला जी भी थोड़े तेज स्वभाव की हैंहैं, शुरू से ही तानाशाही वाला स्वभाव रहा है उनका, राजन ने मानसी से प्रेम विवाह किया था इसीलिए मानसी मानसी को अपना प्रतिद्वंद्वी मान लिया था उन्होंने।
उन्हें लगता था उनके बेटे को मानसी ने उनसे छीन लिया है। मानसी ने उनसे तालमेल बैठाने की बहुत कोशिश की लेकिन कभी उनका दिल नहीं जीत पाई।
राकेश जी के लाख समझाने के बावजूद भी उनके व्यवहार में कोई फर्क नहीं आया था लेकिन अब एक साल से घुटनों में दर्द होने की वजह से बहुत परेशान रहने लगी है। मानसी ने भी उनके स्वभाव के कारण अब उनसे दूरी बना ली है क्योंकि मानसी में सिवाय कमियों के उन्हें कभी गुण नजर ही नहीं आए। उसने भी यही सोच लिया है जब करते-करते भी भलाई नहीं मिलती तो फिर क्यों कुछ भी किया जाए? मम्मी जी ने कौन सा दादी मां के साथ कोई कसर छोड़ी थी सताने की, उन्हें भी तो पता चले समय सबका आता है।
एक दिन बहू को भी सास बनना है। इसी कारण निर्मला जी को अपने प्रति अपनी बहू का व्यवहार अंदर तक आहत कर रहा था। इसी बात पर वह अपने पति के सामने रो-रो कर बड़बड़ाये जा रही थी। अब अपने शरीर से थोड़ी लाचार जो हो गई थी। राकेश जी उन्हें समझाते हुए बोले देखो निर्मला बात तुम्हें बुरी लग सकती है लेकिन जैसी ध्वनी वैसी प्रतिध्वनि जैसा व्यवहार हम करते हैं वैसा हमारे सामने आता है समयका चक्र घूमता जरूर है मानसी बहू ने देखा है तुम्हें भी मेरी मां के साथ गलत व्यवहार करते हुए।
मानसी अगर दिल की बुरी होती तो अपनी दादी सास की भी इतनी सेवा ना करती। तुम्हें भी कहां अच्छा लगता था जब मैं अपनी मां के पास बैठकर बातें करता था या उनके पैरों पर तेल लगाकर मालिश भी कर देता था। मेरी मां कह भी देती थी मेरी वजह से तू अपने गृहस्ती मत खराब कर मेरा क्या है तुझे तो बहू के साथ जीवन बिताना है?
कितना झगड़ा करती थी तुम भी मेरे साथ, कितना समझाता था मैं तुम्हें की इस उम्र में मैं अपनी मां को ध्यान नहीं रखूं गा तो भगवान को क्या मुंह दिखाऊंगा आखिर उनका भी इकलौता सहारा था मैं कितनी कम उम्र में पिताजी छोड़कर चले गए थे हम दोनों को पिताजी की कमी भी कितनी खलती थी उन्हें। जो बोया है वही काटना पड़ता है। हमारे बच्चों में कोई कमी नहीं है निर्मला अब भी समय है समय रहते अपनी सभी कमियां सुधार लो । मेरी मां तो दुनिया से चली गई लेकिन उसने कभी तुम्हें बद्दुआ नहीं दी।
आज निर्मला जी को अपनी सास के साथ किया गया अपना व्यवहार और एक-एक बात याद आ रही थी उसकी आंखों से आंसू नहीं रुक रहे थे। जब खुद पर बीतती है तब दूसरों का दर्द दिखाई देता है लेकिन शायद तब तक बहुत देर हो जाती है। सही कह रहे हो जी आप, आज मुझे अपनी सारी गलतियां दिखाई दे रही हैं क्योंकि अब मैं उनकी जगह आ गई हू। समझ में आ रहा है मेरे व्यवहार का उन पर क्या असर होता होगा?राजन और मानसी भी उनके पीछे खड़े हुए सब बातें सुन रहे थे।
राजन भी मानसी को यही समझा कर अपनी मां से माफी मांगने के लिए लाया था कि मानता हूं मां ने तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया लेकिन इस समय माँ लाचार हैं और लाचार आदमी की सेवा करना इंसानियत है और यह तो हमारी मां है। स्थिति कैसी भी हो माता-पिता की सेवा करना औलाद का कर्तव्य है। और मैं चाहता हूं मेरे साथ तुम भी अपना फर्ज निभाओ जिससे भविष्य में अफसोस ना रहे कि हमने माता-पिता की सेवा नहीं की। बुढ़ापा एक दिन सबको आना है मानसी हमें भी आएगा।
मानसी जब निर्मला जी से पिछले दिनों किये अपने व्यवहार के लिए माफी मांगती है तो निर्मला जी उसका हाथ पकड़ लेती हैं और अपने व्यवहार के लिए भी उससे माफी मांगते हुए कहती हैं मानसी मैं नहीं जानती किन कर्मों की वजह से मुझे बहू के रूप में तुम मिली हो जिसकी मैंने कदर नहीं की, मुझे याद नहीं मैंने कभी अपनी सास से दो शब्द प्यार से बोले हो, आज वह नहीं है मैं उनसे माफी भी नहीं मांग सकती लेकिन मैं कोशिश करुंगी कि मेरी वजह से परिवार में कभी क्लेश ना हो।
आज सास बहू के बीच में सच में मां बेटी का रिश्ता बन गया था।
पूजा शर्मा
स्वरचित।
Akal aai lakin dher sa
Akal aai lakin dher sa