समयचक्र – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

“ई फोन भी ना, बजता है तो बजता ही चला जाता है। कोनो बच्चा भी घर में नहीं है, ई संजना भी ना जब आएगी कोनो ना कोनो नया चीज पकड़ा कर चल जाएगी।” अपनी बड़ी सी कोठी के आकार के घर के ओसारे पर सूप में चावल लिए बीनती विमला बड़बड़ा रही थी।

“जी आप विमला देवी बोल रही हैं।”

“आपका इंटरव्यू होगा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन, जी पता आपके मोबाइल पर आ जाएगा। नियत दिन नियत समय पर हम आपकी प्रतीक्षा करेंगे।” एक पुरुष की आवाज उभरी।

“आपको कोई गलतफहमी हुआ है, हमारा काहे का इंटरव्यू। रोंगनम्बर है भाई ई।” विमला असमंजस में कहती है।

“आपके पास जो पावर है, वो दुनिया तक पहुॅंचनी चाहिए। पता भेजा जा रहा है आपको, आप जरूर आएं।” इसके बाद विमला के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना आवाज विलीन हो गई।

**

पावर, हमारे पास पावर होता तो ई स्थिति होती हमारी। दर दर की ठोकर खाने के लिए मजबूर होते क्या। विमला के ऑंखों के आगे कई चित्र उभरने लगे थे। “तुम्हीं बताओ भैया, कैसे विवाह होगा इसका। ना हमारे पास पैसा है और ना ही करमजली सुंदरता लेकर आई। जो देखता है मुॅंह बना कर चला जाता है।” विमला की माॅं विमला की कोसती हुई अपने भाई से कह रही थी और फिर वो दिन भी आ गया जब विमला के मामा ने अपनी बिटिया की तस्वीर दिखा कर इंजीनियर लड़के से विमला की जबरन शादी करवा दिया।

विमला के ससुराल पहुॅंचते ना पहुॅंचते हड़कंप मच गया था। “लड़की बदल दी गई है” का शोर विमला के ससुराल पहुॅंचने से पहले पहुॅंच गया था और बिना किसी रस्म के उसे घर के अंदर तो लिया गया था लेकिन सिर्फ फैसला सुनाने के लिए कि यदि यहाॅं रहना चाहती है तो ये भूल जाए कि वो ब्याहता है, नहीं तो अपने घर वापस लौट सकती है। अपने घर, विमला को सुनकर ही हॅंसी आ गई थी। “कहीं तो रहना है” सोचकर विमला वही रह गई,

लेकिन पति की दूसरी शादी के लिए तलाक होना जरूरी था तो जिस बंधन के कारण वो ससुराल में रह रही थी, एक दिन वो भी समाप्त हो गया और अब उसे बेरंग चिट्ठी की तरह वापस उसकी माॅं के पास लौटा दिया गया लेकिन माॅं और मामा ने भी उसे लेने से इंकार कर दिया। जाए तो जाए कहाॅं विमला, अपनों की खरी खोटी सुनती माॅं के साथ रहने लगी और गाॅंव से सटे शहर में जाकर नौकरी भी खोजने लगी। ज्यादा पढ़ी लिखी तो थी नहीं, किसी तरह उसे एक घर में बच्चे संभालने का काम मिल गया और अब वो सुबह जाती और शाम को घर आ जाती। 

**

“कहाॅं खोई हो काकी।” ओसारे में बैठी विमला को झकझोरते हुए कॉलेज से लौटा रमेश कहता है।

“आ गया तू, ये देख किसी ने पता भेजा है क्या।” विमला, रमेश को मोबाइल देती हुई सारी बात बताती है।

“पता तो है काकी, हम सब चलेंगे काकी।” रमेश उत्साहित होकर कहता है।

“पगला, ई कोनो रोंग नम्बर था। हम कौन सा ऐसा काम किए हैं कि इंटरव्यू होगा। चल मुॅंह हाथ धो, खाना खा ले।” विमला हॅंस कर कहती है।

***

“ऐ रमेश सुन ना, आज वहाॅं चलें क्या, हम ना ऊ औरत सब को देखना चाहते हैं, जो बड़का बड़का काम करती है, फिर ऊ का इंटरव्यू होता है। टीवी में देखे हैं, एक बार साक्षात देखते। बच्चा सबके स्कूल से आने से पहले आ जाएंगे।” विमला उत्सुकता से लेकिन थोड़ी सकुचाते हुए रमेश से कहती है।

रमेश की स्वीकृति मिलते ही विमला जल्दी जल्दी तैयार होकर रमेश की बाइक पर बैठ कर चल पड़ी।

हॉल में घुसते ही वहाॅं सजी धजी महिलाओं को देख विमला की ऑंखें चौंधिया गई थी, वो तो बस एक बढ़िया साड़ी लपेट कर आ गई थी। रमेश को लिए विमला चुपचाप हॉल के कोने वाली कुर्सी पर जा बैठी थी।

विमला के आने के एक घंटे बाद कार्यक्रम प्रारंभ हो गया। एक एक कर जानी मानी हस्तियों का नाम पुकारा जा रहा था और पूरा हॉल तालियों से उन सबका स्वागत कर रहा था। विमला अभिभूत सी सब कुछ देख रही थी।

“अब हम जिस शख्सियत को बुलाने जा रहे हैं, उन्हें कोई नहीं जानता है, वो नेपथ्य में रहकर अपना कार्य करती हैं, आज उनका इंटरव्यू होगा और उन्हें सम्मानित करते हुए आगे उनके कार्य में उन्हें सहयोग भी दिया जाएगा। तो मंच पर आमंत्रित हैं विमला देवी जी, जिन्होंने अपने जीवन को उस समय एक सार्थक मोड़ दिया, जब वो खुद टूटी हुई थी और अपनी टूटी हुई कड़ी में वो जोड़ती गईं उन मासूम बच्चों को जो बचपन को जीने की उम्र में ही टूट गए थे। आगे की सारी बातें हम विमला देवी की जुबानी ही जानना चाहेंगे। विमला देवी के मंच पर आने तक तालियों की गड़गड़ाहट रुकनी नहीं चाहिए।”

रमेश खड़ा होकर विमला को मंच पर चलने के लिए अपना हाथ देता है और विमला मंच की ओर जाती हुई अभी भी ताज्जुब में डूबी हुई थी। 

“ये मेरी काकी हैं, नहीं हम सब की काकी हैं।” लेक्चरर और समाज सेविका के रूप में पहचानी जाने वाली डॉ संजना अब माइक पर थी और उसके साथ खड़े थे उसकी उम्र से लेकर पाॅंच साल की शुभ्रा तक। विमला काकी नहीं होती तो आज संजना समाज सेविका नहीं किसी के मनोरंजन का साधन होती। विमला काकी नहीं होती तो आज यहाॅं खड़े सारे बच्चे चोर डाकू होते और ना चाहते हुए भी गलत कार्य की ओर धकेल दिए गए होते। ये काकी का विल पावर, इच्छा शक्ति था, जिसने हम सभी को सम्मानित जीवन दिया है और समाज के उत्थान में सहयोग कर सकने योग्य बनाया है।” विमला काकी की ओर देखती संजना रूंधे गले से कहती है।

***

“ई किसे उठा लाई है, दस साल की संजना को लिए जैसे ही विमला ने घर में कदम रखा, विमला की माॅं चिल्ला उठी। खुद तो हमारी छाती पर आ बैठी है, निकल हमारे घर से।” विमला की माॅं विमला को संजना सहित धक्के देती हुई कहती है।

विमला गाॅंव के कोने में बंजर जमीन पर एक झोपड़ी बना संजना को लेकर रहने लगी। धीरे धीरे ये कारवां बढ़ने लगा। क्या लड़का, क्या लड़की, विमला को जो भी मजलूम अनाथ बच्चा दिखता, उसे ले आती और भरण पोषण के साथ पढ़ाई लिखाई भी करवाती और आज उसी का परिणाम था कि अब वो झोपड़ी झोपड़ी नहीं आलीशान घर बन चुका था और सभी ने मिलकर अपनी अपनी जिम्मेदारी बाॅंट ली थी। 

“आप कुछ कहना चाहेंगी।” मंच पर विमला से सवाल किया गया।

विमला मंत्रमुग्ध सी अपने गले में डले फूलों का हार देख रही थी, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसे इतना सम्मान दिया जा रहा है और उपहार की डलियां उसके लिए सजाई गईं हैं। वो मुॅंह से बोलने में खुद को अवश महसूस कर रही थी लेकिन उसकी ऑंखों से ढ़लकते अश्रु कह रहे थे कि समयचक्र हमेशा एक सा नहीं रहता है। समय आपको परखता है और जो उसकी धुरी पर खरा उतरता है, समयचक्र उसके साथ हो लेता है।

आरती झा आद्या

दिल्ली

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!