Moral stories in hindi : “ लो फिर से आ गई महारानी अपने दोनों बच्चों को लेकर…. अब इनके लिए भी खाना बनाओ… देखो जी कहे देती हूँ… आपको आदत है हर दिन पराठे खाने की तो आपको तो दे दूँगी पर उन दोनो के लिए नहीं बनाने वाली … तो बस भूल से भी अपने साथ खाने की टेबल पर ना बुला लेना।” सुलभा अपने पति नवल से बोली
जया के पति का देहांत हो गया था दो बच्चे सात साल की बेटी आशी और पाँच साल के बेटे अंश को लेकर वो दूसरे शहर रहती थी। नवल और सुलभा, जया के देवर देवरानी है जो ससुर के साथ बड़े शहर में रहते हैं… यहाँ के बैंक में जब तब जया की ज़रूरत होती तो उसे आना पड़ता था…. फिर इलाज के लिए भी उसे अपने ससुराल आना पड़ता था ।जया के पति का अपना व्यवसाय था जो जया अब सँभालने की कोशिश कर रही थी….
सुलभा का व्यवहार ऐसा था कि वो जया से दूर दूर ही रहना पसंद करती थी और अपने बच्चों तक को आशी और अंश के साथ खेलने नहीं देती थी…. सबने बहुत कहाँ वहाँ अकेले कैसे बच्चों को लेकर रहोगी ये तुम्हारा भी ससुराल हैं यही आकर रहो पर जया जानती थी वो तो बर्दाश्त कर भी ले पर बच्चों को सुलभा हर तरीक़े से नीचे गिराने की कोशिश करेंगी और खाने पीने को भी तरसा देंगी जो जया जीते जी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी इसलिए अकेले रहना मंज़ूर कर ली थी… और तो और समय के दिए घाव खुद ही भरने भी थे ।
वो जब भी यहाँ आती सुलभा के तीखे तेवर देख आशी माँ के संग ही दुबकी रहती। पर अंश चाचू चाचू कर के नवल में लगा रहता… खाना भी चाचू के साथ ही खाने के लिए मचल जाता ऐसे में सुलभा ने एक दिन कह दिया…. बाप तो छोड़ कर चले गए भगवान जाने अपने घर में क्या खाते होंगे पर यहाँ जनाब को पराठे खाने है इसलिए चाचू के साथ खाने बैठ जाता….
छोटे बच्चे को कहा समझ चाची क्या बोल रही पर ये बात आशी ने सुन लिया और वो अपनी माँ से जाकर बोली,“ माँ अब हम यहाँ नहीं आएँगे…. चाची बहुत बुरी है…. अंश चाचू के साथ खाने क्या बैठ गया वो कैसे बोलने लगी….. तुम सुनती तो ग़ुस्सा आ जाता…. ।”जया मजबूर थी और कोई ठिकाना जो यहाँ नहीं था और काग़ज़ी कार्रवाई के लिए आना भी ज़रूरी था क्योंकि नवल ही संग जाकर सब काम करवाता था ।
कई साल इस तरह गुजर गए जया अब कम आती थी पर जब भी आती सुलभा के व्यंग्य बाण से आहत होकर रह जाती … आशी के साथ अब अंश भी सुलभा से दूर दूर ही रहने लगा था ।कुछ समय बाद जया के माता-पिता भी इसी शहर में आकर बस गए अब जया जब भी इस शहर आती मायके ही रूकती थी… सुलभा से मिलना कम हुआ तो दूरियाँ बढ़ने लगी।
समय पंख लगा कर उड़े जा रहा था चूँकि जया के ससुराल वाले सारे रिश्तेदार यहाँ थे तो सुलभा से कभी-कभी मिलना हो जाता था पर उसके अंदर की कैकेयी ज्यों की त्यों विद्यमान थी…. वक़्त हो चला था आशी की शादी का…. शादी के लिए जया को सुलभा के पास ही आना पड़ा ससुराल यहीं था तो जाएँ कहाँ…..
आशी ब्याह कर अपने ससुराल चली गई अब सुलभा से मिलना ना के बराबर ही हो गया था ।
बहुत समय बाद आशी सुलभा की बेटी की शादी में आई थी ना चाहते हुए भी उसने सुलभा की बहुत मदद की और छोटी बहन कनु की भी…..
कनु भी ब्याह कर अपने ससुराल चली गई ।एक दिन बाद आशी विदा लेकर जाने वाली थी तभी सुलभा आकर आशी के गले मिली और बोली,“ आती रहा कर आशी…. कितना अच्छा लगता है मिलकर … देख अब दीदी को भी बोल रही हूँ यहीं आकर रहें…।” सुनकर आशी दंग रह गई
“ हाँ चाची आती रहूँगी…।” बड़े बेमन से उसने ये बात कही
अपने घर आकर आशी अपनी माँ को फ़ोन पर सुलभा की बातें बताने लगी…. ,“चाची कह रही थी आती रहा कर….माँ…. चाची ने कहा…. तुम सोच सकती हो…..!” आशी आश्चर्य से माँ से बोली
” बेटा ये सब उम्र का तक़ाज़ा है….एक समय था आशी जब सुलभा को लगता था उससे ज़्यादा किसी के पास कुछ नहीं है जिसे जो चाहे बोल सकती है पर कनु के ब्याह के बाद जब वो चली गई और तू तो जानती है कनु का छोटा भाई जो है वो तो सुलभा को कुछ समझता ही नहीं है…. खड़े खड़े मुँह पर बोल कर चल देता…. अपना बेटा इज़्ज़त नहीं करता… पर तुम दोनों भाई बहन चाची के सौ ताने सुन कर कभी कुछ नहीं बोलते थे ….
अब सुलभा को एहसास हो रहा होगा अपने बच्चे तो दूर जा ही रहे कहीं तुम दोनों भी दूर ना हो जाओ…. इसलिए वो आती रहना बोल रही होगी…..तुम्हें क्या लगता कनु भी आएगी…. नहीं बेटा अपनी माँ की तरह वो भी स्वार्थी निकलेंगी कभी माँ को पूछने ना आएगी….. पर तुम्हें ये सीख मैं नहीं दे सकती…. जब भी शहर जाना हो चाचा चाची और दादा जी से मिल लेना….
बेटा रिश्ते को बाँध कर रखो तो ही वो सँभलते है जैसे हम बूंदी के लड्डू बनाते हैं अलग अलग बूंदी को मुट्ठी बाँध कर मिला कर एक लड्डू बनाते है बस वैसे ही रिश्ते होते…. दूर रहकर सब बिखर जाता…. नज़दीक रहो तो बँधे रहते है ….तू समझ रही है ना…. बेटा वो क्या की भूल जा बस याद रख अब वो दूर नहीं पास रहना चाहती है …. बस ये समझ समय हर घाव भर देता है।”जया आशी को समझाते हुए बोली
” हाँ माँ समझ रही हूँ…. इसलिए मुझे महसूस हुआ चाची मेरे आने पर ज़्यादा रो रही थी जितना कनु के जाने पर भी नहीं…. सच है हम दूर रहकर पास आ गए वो पास रहकर दूर हो गई समय की ही बात है ना जिसने हमें बातों के घाव दिए आज वो ही लेप लगा कर उसे भर रही है ।” आशी एक लंबी साँस लेते हुए बोली
“ हाँ बेटा सही कह रही हो…. उम्मीद करूँगी मेरे बच्चे किसी भी रिश्ते में दूरियाँ नहीं बल्कि नज़दीकियाँ लेकर आए….चल अब रखती हूँ थोड़ा काम देख लूँ ।” कह जया फ़ोन रख दी
आशी को आज एहसास हो रहा था चाची हमेशा हमसे दूर रहना चाहती थी पर जब अपने घाव देने लगे तो पराए के मरहम से उसे ठीक किया जा सकता है तभी अब उन्हें हमारा साथ अच्छा लग रहा है ।
कई बार इंसान के समझ नहीं आता वो क्या कर रहा है…. आगे उसके अपने रिश्ते कैसे होंगे पर अकसर हम जिन रिश्तों से दूर जाने की कोशिश करते हैं वहीं सबसे ज़्यादा नज़दीक आ जाते है…. शायद समय सब सीखा और समझा देता है ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#वाक्यकहानीप्रतियोगिता
# समय हर घाव भर देता है