दिल्ली के अंबेडकर नगर में मालती नाम की सास रहती थी उसकी चार बहुएं थी
बड़ी बहू का नाम गायत्री मंझली बहू का नाम सावित्री और तीसरी बहू का नाम गोमती और सबसे छोटी बहू का नाम राधिका था
शहर में 25 गज की जमीन खरीद कर मालती के पति दिनेश मिश्रा ने
15 साल पहले ही उसे चार मंजिला बनवा दिया था ताकि जब बेटों की शादी हो जाए तो उनकी चारों बहुएं उन कमरों में रह सके
राधिका एक गरीब परिवार से थी दहेज में कुछ साथ नहीं लाई थी
इसलिए घर के सारे काम उसी को ही करने पड़ते थे सुबह उठकर चाय नाश्ता बनाकर अपनी तीनों जेठानी और अपनी सासू मां को बिस्तर पर देना राधिका का प्रतिदिन का नियम था
दिनेश मिश्रा के चारों बेटे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक रेस्टोरेंट चलाते थे इसलिए उनका स्टेशन पर ही रहना खाना होता था दुकान पर प्रतिदिन ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी इसलिए वह अपना रेस्टोरेंट छोड़कर घर की तरफ नहीं आते थे लेकिन रात के समय मोबाइल से थोड़ी बहुत बातें घर में जरूर हो जाती थी
राधिका की सभी जेठानियां अपनी सासू मां के साथ शादी पार्टी और जन्मदिन में बन ठन के जाया करती थी किंतु राधिका को घर पर ही रोक लिया जाता था और उसे घर की साफ सफाई झाड़ू पोंछा बर्तन साफ करने का इत्यादि का काम सोपा जाता था
राधिका अपना मन मार कर रह जाती ना कभी अपने मायके में किसी से शिकायत करती ना स्टेशन पर अपने पति राघव से
बुखार हो या सर दर्द खाना तो राधिका को ही बनाना पड़ता था
सर्दी हो या गर्मी वह बस एक नौकरानी की तरह उस घर में रह रही थी
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जिस दिन चारों बेटों को होली के समय घर आने का मौका मिलता
तो तीनों जेठानियां सुबह से शाम तक घर का सारा काम करके दिखाती और राधिका से कहती तुम आराम करो
लेकिन राधिका उनकी इस चाल को समझ नहीं पा रही थी
चारों बेटे जब अपने पिता के साथ घर आते तो राधिका टेलीविजन देखती हुई मिलती और बाकी घर की तीनों बड़ी बहुएं घर का काम करती हुई मिलती एक रसोई में खाना पकाती हुए मिलती दूसरी घर के सारे कपड़े धोती हुई तथा तीसरी झाड़ू पोछा लेकर फर्श की धुलाई करती हुई ,,
सासू मां अपने पति और अपने चारों बेटों के सामने अपनी तीनों बड़ी बहूओ की तारीफ करती और कहती राधिका तो एक नंबर की निकम्मी है कामचोर है बिल्कुल काम नहीं करती घर का
उसे तो बस बैठे-बैठे बिस्तर पर खाना चाहिए
हम तो पछता रहे हैं राघव की शादी राधिका से करके ,,
एक मां की बातों पर हर बेटा विश्वास कर लेता है उस घर में भी ऐसा ही चल रहा था
छुट्टी खत्म होते ही जब उनके बेटे वापस स्टेशन चले जाते तो राधिका को वापस घर के कामों में झोंक दिया जाता ,, वह बेचारी राधिका दिन पर दिन दुबली पतली और कमजोर होती जा रही थी
तीनों बहूओ का जब मन करता तो अपने मायके घूम कर आ जाती लेकिन राधिका पर पाबंदी लगा रखी थी यहां तक कि वह फोन पर भी अपने मां-बाप और भाई से भी बात नहीं कर सकती थी सामने एक आरती नाम की पड़ोसन थी वह राधिका पर हो रहे अत्याचार और जुर्म को अपने घर की बालकनी से देखा करती थी एक दिन उसने राधिका की वीडियो बनानी शुरू कर दी
जब भी राधिका को डांटा या उसे दुत्कारा जाता तो उसकी पड़ोसन जल्दी से वह सारे कारनामे अपने मोबाइल में कैद कर लेती
एक दिन समय निकालकर आरती नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंची
राघव तंदूरी रोटियां भट्टी से निकाल निकाल कर तवे पर रख रहा था
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आरती ने किसी तरह से बाहर खड़े होकर इंतजार किया 2 घंटे बाद जब राघव अपना पसीना सूखाने के लिए रेस्टोरेंट से बाहर आया तो आरती ने इशारा करके उसे अपने नजदीक बुलाया
राघव ने तुरंत पहचान लिया,,आरती दीदी आप यहां हमारे रेस्टोरेंट में
तब आरती बोली मैं अपने मोबाइल में तुम्हें कुछ दिखाना चाहती हूं मगर इस बात का जिक्र किसी से ना करना और मैं तुम्हें एक सलाह भी दूंगी
तुम्हें मेरी सलाह माननी पड़ेगी
राघव ने जब आरती के मोबाइल में राधिका का वीडियो देखा तो चौंक गया उसे उम्मीद नहीं थी कि उसकी तीनों भाभियां मेरी मां के साथ मिलकर मेरी पत्नी राधिका से घर का सारा काम करवाती है
ऐसा वीडियो देखकर राघव का कलेजा फट गया
तब आरती ने कहा मैं तो ऐसा दृश्य रोज देखती हूं मगर तुम्हारी मां पत्थर दिल है और तुम्हारी तीनों भाभियां भी किसी जल्लाद से कम नहीं है ,, इन चारों को सबक सिखाना जरूरी है
आरती ने राघव के कान में कुछ बताया और स्टेशन से बाहर चली गई
राघव जल्दी से स्टेशन के बाहर आया वहीं दूर राधिका खड़ी हुई थी
राधिका अपने पति राघव को देखकर सीने से लिपट गई और बताया
मेरे माता-पिता ने मुझे विदा करते हुए कहा था कि अपने ससुराल में सबका सम्मान करना बड़ों की सेवा करना भाभियां मां समान होती है और सासू मां देवी इसलिए मैं चुपचाप
बिना शिकायत के ,, सबको खुश रखने के लिए घर के काम करती रही
राधिका ने अपने आंसू पोछते हुए कहा
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आरती भाभी ने रेल की दो टिकट दी है और साथ में पांच हजार रुपए भी दिए हैं
राधिका ने अपने पर्स से एक कागज निकालते हुए राघव को दिया और बताया आरती भाभी ने कहा है इस पते पर आज ही पहुंचना है
राघव राधिका का हाथ पकड़े जल्दी-जल्दी प्लेटफार्म संख्या नंबर 6 पर पहुंचे रेलगाड़ी चलने ही वाली थी दोनों उसमें सवार हो गए
राधिका पूछने लगी मालवीय नगर आने में कितना समय लगेगा
तब राघव ने बताया मैं भी पहली बार जा रहा हूं शायद वहां पर आरती दीदी का पुराना मकान है जो अब खाली पड़ा हुआ है
6 घंटे के लंबे सफर के बाद दोनों मालवीय नगर रेलवे स्टेशन पहुंचे
पता खोजते खोजते वह आरती के पुराने मकान पर पहुंचे
मकान मेंन रोड पर था लेकिन दूर-दूर तक ना कोई बस्ती ना कोई इंसान
लेकिन सड़क पर आते जाते टूरिस्ट बसों को देखकर राधिका ने कहा
तुम तो रेस्टोरेंट में काम करते-करते हलवाई का सारा काम सीख चुके हो आरती दीदी ने कहा था राघव से कहना वहां एक ढाबा खोल ले खूब चलेगा
थोड़े दिन परेशानी जरूर होगी लेकिन बाद में सब ठीक हो जाएगा
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तभी आरती का फोन राधिका के मोबाइल पर आया
हां राधिका तुम लोग ठीक-ठाक पहुंच गए मालवीय नगर
यह पुराना मकान हमारा ही है बरसों से खाली पड़ा हुआ है
मेरे पति ने यहां पर ढाबा खोलने के लिए यह मकान खरीदा था
हमने ढाबे का सारा सामान खरीद लिया था लेकिन अगले ही दिन मेरे पति की जॉब दिल्ली में लग गई और फिर मैं भी दिल्ली आना चाहती थी फिर हम दिल्ली में ही सटल हो गए ,,
तुम्हारी तीनों जेठानी और तुम्हारी सासू मां की हर एक-एक खबर में मोबाइल के जरिए पहुंचाती रहूंगी
इतना कहकर आरती ने फोन बंद कर दिया
राधिका को मेहनत करने की आदत थी उसने चार-पांच घंटे में उस मकान की साफ सफाई करके और ढाबे के बर्तनों को चमका कर एकदम तैयार कर दिया
तभी वहां से एक ट्रक वाला निकला अचानक वह अपना ट्रक रोक कर कहने लगा ,, क्या तुम ढाबा खोल रहे हो मैं इस ट्रक से सब्जियां शहर की तरफ ले जाता हूं आप लोग मुझसे ही सब्जियां खरीद लिया करो मेरे पास सब कुछ मिलेगा गोभी आलू टमाटर बैंगन मूली
मगर आटा नहीं मिलेगा इसलिए तुम्हें मैं यहां से 3 किलोमीटर दूर एक दुकान बताता हूं वहां तुम्हें आटे की चक्की मिल जाएगी वहां से तुम आटा खरीद सकते हो
अब राघव की सारी समस्या सुलझ चुकी थी राधिका ने तुरंत खाना पकाना शुरू किया और राघव ने बेचना
ढाबा देखकर आने-जाने वाले वाहन वहां पर रुकने लगे
राघव ने खाने की एक लिस्ट ढाबे के बाहर चिपका दी
ताकि किसी को बार-बार सब्जी और रोटी का भाव ,,ना बताना पड़े
रात के 10:00 बज चुके थे तब आरती का फोन राधिका के पास आया
आरती ने बताया तुम्हारे घर पर तो महाभारत हो रही है
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तुम्हारी तीनों जेठानियां आपस में लड़ रही हैं घर का खाना कोई नहीं बनाना चाहता सासू मां चीख चीख के पूरे घर में शोर मचा रही है सबसे कह रही है ,, ढूंढो ,, राधिका को ढूंढो,,
शायद तुम्हारे मायके में भी फोन किया मगर वहां से भी तुम्हारा अता-पिता नहीं मिला तुम दोनों अपनी मोबाइल की सिम निकाल दो ताकि किसी को पता ना चल पाए कि तुम दोनों मालवीय नगर में अपना ढाबा चला रहे हो ,,
अब तुम्हारी और मेरी बातचीत कभी नहीं होगी ,,अपना ख्याल रखना
और फिर आरती जी का फोन कट हो गया
राधिका ने जल्दी से मोबाइल से अपनी सिम निकाल दी और राघव ने भी
अगले दिन ट्रक वाला सब्जी लेकर फिर आया तब राघव ने कहा हमें दो नई सिम चाहिए नए नंबर की तब ट्रक वाले ने कहा आधार कार्ड की जरूरत पड़ेगी लेकिन फिर कहने लगा कोई बात नहीं मैं अपने आधार कार्ड से सिम ले आऊंगा आप लोग चिंता मत कीजिए
बस आप लोग मुझसे सब्जियां खरीदते रहिए मेरी ऊपर की कमाई हो जाएगी,, मैं यह सब्जी आजादपुर मंडी में ले जाता हूं
मालिक ने मुझे दिहाड़ी पर रख रखा है,,
आप लोग मेरी कच्ची सब्जियों के बदले में मुझे पका पकाया खाना खिला दिया करो
राघव और ट्रक ड्राइवर में सहमति हो गई
*******
पूरे 3 साल बीत चुके अब आगे ,,
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राघव ने राधिका से कहा रात दिन ढाबा चलने की वजह से हमने अब बहुत पैसा इकट्ठा कर लिया है मैं चाहता हूं शहर में हम अपना एक नया मकान खरीद ले जब हमारे अपने बच्चे बड़े होंगे तो उन्हें रहने का ठिकाना मिल जाएगा
राघव और राधिका ट्रेन में बैठकर शहर चले आए वही रास्ते मैं उन्हें अचानक उनकी पड़ोसन आरती टकरा गई
आरती उन दोनों को देखकर बहुत खुश हुई और बोली यह 3 साल तुम्हारे कैसे बीते तब राधिका ने कहा भाभी जी अच्छे बीते रात दिन ढाबा चलता रहा हमें तो बिल्कुल फुर्सत ही नहीं मिल रही थी हमारे ग्राहक बढ़ते ही जा रहे थे अब हम शहर में एक नया मकान खरीदने आए हैं
आरती कहने लगी अगर तुम्हें मकान ही खरीदना है तो अपनी सासू मां का मकान खरीद लो क्योंकि उनका मकान बिकने वाला है
मेरे साथ चलो मैं तुम्हें रास्ते में सब समझाती हूं
आरती उन्हें अंबेडकर नगर के एक प्रॉपर्टी डीलर के पास ले गई
प्रॉपर्टी डीलर ने बताया हमारे पास एक मकान बिकाऊ है वह मकान दिनेश मिश्रा के नाम पर है उनके घर में रोज तीन बहूओ के आपसी झगड़े होते हैं और उनके तीनों बेटे अपनी-अपनी पत्नी की तरफदारी कर रहे हैं
उनके तीनों बेटों ने फैसला लिया है कि मकान बेचकर आपस में बंटवारा कर लिया जाए ताकि सब लोग अपना-अपना घर संभाले
दिनेश मिश्रा जी और उनकी पत्नी मालती
अपने मकान की कीमत पूरे 30 लाख रुपए बता रही है
लेकिन इतनी बड़ी रकम अंबेडकर नगर में किसी के पास नहीं है
इसलिए उनका मकान अभी तक बिक नहीं पा रहा है
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तब आरती ने कहा राधिका तुम यह मकान खरीद लो कुछ पैसे कम पड़े तो मैं तुम्हें दे दूंगी
तब राधिका ने कहा हमारे ऊपर आपका पहले ही बहुत एहसान है
आपने जो हमें ढाबा दिया सच मानो वहां ईश्वर की कृपा है
दस हजार रुपए हमने प्रतिदिन कमाए हैं कभी-कभी तो कमाई ज्यादा निकल जाती थी रात के 12:00 बज जाते थे हमें जागते जागते लेकिन ग्राहक आते ही रहते थे
इसलिए अंबेडकर नगर में 30 लाख का मकान खरीदना हमारे लिए कोई बड़ी बात नहीं है
राधिका ने प्रॉपर्टी डीलर से कहा हम आपको कल तक 30 लाख रुपए दे देंगे आप दिनेश मिश्रा जी यह मकान खरीद लीजिए
फिर बाद में कागज हमारे नाम कर दीजिएगा ,,
उसी दिन राघव और राधिका तुरंत मालवीय नगर चले गए और रुपए लेकर प्रॉपर्टी डीलर पर पहुंचा दिए
2 दिन बाद दिनेश मिश्रा जी ने अपनी रकम लेने के बाद वह मकान प्रॉपर्टी डीलर को बेच दिया
इस काम के हो जाने के बाद राघव और राधिका को प्रॉपर्टी डीलर वाले ने अपने पास बुलवा लिया
प्रॉपर्टी डीलर ने वह मकान राधिका के नाम कर दिया
और अपना कमीशन मांगने लगा राधिका ने खुश होते हुए कहा मैं तुम्हें पूरे दो लाख रुपए का कमीशन दूंगी क्योंकि मैं आज बहुत खुश हूं
प्रॉपर्टी डीलर वाले ने अपना कमीशन लेने के बाद तुरंत दिनेश मिश्रा जी के घर पहुंचा और कहा घर आज ही खाली करना होगा,, तुम्हें ,,
अपनी तीनों बहूओ और तीनों बेटों को लेकर आप कहीं भी जा सकते हो क्योंकि इस मकान की पेमेंट आपने पूरी ले ली है
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उसी रात आरती ने राधिका को कॉल करके बताया मैंने जो तुमसे नया नंबर मांगा था तो सोचा तुमसे बात कर लूं तुम्हारी सासू मां के घर में रात भर से झगड़ा चल रहा है तीनों बेटे कह रहे हैं 30 लाख रुपए का बंटवारा कैसे करें
राघव के जाने के बाद हमारा रेस्टोरेंट चल नहीं रहा था हमें रोटियां पकाने के लिए एक नौकर रखना पड़ा और उसे भी तनख्वाह देनी पड़ी
घर में सब लोग ऐश की जिंदगी जीते रहे बढ़िया खाना खाते रहे कर्ज दिन पर दिन बढ़ता चला गया
मकान का आधा पैसा तो कर्ज चुकाने में ही चला जाएगा
बचे 15 लाख रुपए
राघव के जाने के बाद हम केवल तीन भाई बचे हैं
प्रत्येक बेटे को 5 लाख रुपए ही मिलेंगे
शहर में इतनी महंगाई के दौर में 5 लाख रुपए में एक कच्चा झोपड़ा भी नहीं आएगा
कितने सालों से नई दिल्ली में रेस्टोरेंट चल रहा था सारे पैसे हम अपनी पत्नियों के महंगे कपड़े और उनके खान पान पर खर्च करते रहे ₹1 भी रुपया इक्ट्ठा ना किया कि बुरे वक्त में काम आ सके अब हमारे पास पछताने के अलावा कुछ नहीं है
राघव हमारा छोटा भाई था हमने उसे भी खोजने की जरूरत नहीं समझी राधिका पर हमारी पत्नियों ने बहुत अत्याचार किये शायद उसी का परिणाम हम भुगत रहे हैं
आरती ने अचानक फोन काट दिया देखा सामने राधिका प्रॉपर्टी डीलर के साथ खड़ी हुई थी अपनी सासू मां के घर के बाहर
तभी प्रॉपर्टी डीलर ने दिनेश मिश्रा से कहा नमस्ते आज से इस घर की नई मालकिन आपके सामने मौजूद है इन्होंने ही आपका मकान खरीदा है
तीनों जेठानियों ने जब नए घर की मालकिन को देखा तो चौंक गई
राधिका 3 सालों में काफी सेहतमंद हो चुकी थी
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महंगे कपड़े हाथों में सोने की अंगूठी गले में सोने का मंगलसूत्र कानों में सोने की बालियां महंगी सैंडल और एक लाख रुपए वाली साड़ी राधिका
के बदन से लिपटी देखी तो सबकी हवा सरक गई
सासू मां को जब पता चला कि इस घर की नई मालकिन राधिका अर्थात मेरी छोटी बहू है ,,यह देखकर मालती को एक जोर का झटका लगा और वह सांस फुला कर देहरी पर बैठ गई
तीनों जेठानियां भीगी बिल्ली की तरह राधिका के सामने खड़ी हुई थी
उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था राधिका जिस मकान में बहू बनकर रहती थी वह उसी मकान को अपने ससुर दिनेश मिश्रा से खरीद लेगी
राधिका ने कहा इस घर से किसी को जाने की जरूरत नहीं है
यह मकान मेरा नहीं हम सबका है
मैं चाहती हूं नई दिल्ली का रेस्टोरेंट दो बेटों को दे दिया जाए
और हमारा मालवीय नगर का रेस्टोरेंट दो बेटों को दे दिया जाए
इस तरह चारों बेटों का उम्रभर रोजगार चलता रहेगा
और हम इस घर की चारों बहुएं मिलकर रहे अपने सास ससुर की सेवा करें
राधिका के फैसला के बाद तीनों जेठानियों को अपनी गलती का एहसास हुआ सासू मां ने अपनी छोटी बहू राधिका को सीने से लगा लिया
इस कहानी से यह सीख मिलती है किसी भी गरीब परिवार से आई लड़की को कमजोर मत समझना
वक्त कभी भी ,, किसी का भी पलट सकता है
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उस दिन के बाद से उस घर की चारों बहुएं अपने घर का काम मिल बांट कर करने लगी
और इस बहाने राधिका को भी अपने सास ससुर की सेवा करने का मौका फिर वापस मिल गया
क्योंकि आज के दौर में बिखरते परिवार को संभालना बड़ा पुण्य का काम होता है और इस काम को राधिका ने बेखूबी निभाया
लेखक नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
मुखर्जी नगर दिल्ली से
स्वरचित रचना