मिनी और राघव का विवाह हुए 7 साल बीत गए थे लेकिन उनके घर अभी तक कोई शिशु का आगमन नहीं हुआ था। हालांकि उन दोनों को इस बात से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था लेकिन पड़ोसी रिश्तेदार आने जाने वाले और अब तो कामवाली भी——-। जी हां यहां तक कि
घर की कामवाली भी कोई ना कोई इलाज या फिर पीर फकीर का पता जरूर बताकर जाती थी। अब हर किसी से उलझा तो नहीं जा सकता था ना। उनकी सुनी हुई बातों से मिनी अक्सर परेशान हो जाती थी। हालांकि राघव उसे खुश रखने की हर कोशिश करता था। हंसते हुए अक्सर यही कहता था
पूरा मैसूर का राज्य भी बिना वारिस के सालों चल गया ,हमारा तो कोई रजवाड़ा खानदान भी नहीं है। यूं भी इस खानदान के बाकी दोनों भाई भाभी भी हमेशा अपने बच्चों के खर्चों से दुखी ही दिखे हैं। ऐसे ही बातों से वह अपनी पत्नी मिनी को खुश रखने की पूरी कोशिश करता था ,और मौका मिलने पर यह लोग दूर-दूर तक घूमने भी जाते थे।
समस्या इतनी अधिक उन्हें लगती थी या नहीं यह तो उनका निजी मामला है लेकिन लोग उन्हें उनकी समस्या का एहसास जरूर करवाते थे। गांव से आने वाली मामी जी तो जब भी शहर आती थी मिनी के पास ही रुकती थी क्योंकि बाकि भाइयों के घर में बच्चों का शोर और भाभियों की व्यस्तता,
उसे मिनी के पास ही रुकना आरामदायक लगता था। क्योंकि वह आराम से मिनी से सेवा करवा सकती थी और जाते हुए भी जो मर्जी बोलने को भी स्वतंत्र थी। उनको हिदायतें देते हुए वह बहुत मन से दोनों को एक हीनता का एहसास करवा कर जाती थी। उनके जाने के बाद मिनी को सहज होने में काफी वक्त लग जाता था।
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ऐसे लोगों की वजह से ही मिनी अब पार्टियों वगैरह में भी जाने से कतराने लगी थी। उसे लगता था कि लोग उसके बारे में बातें करेंगे या लोगों की घूरती निगाहें, बिना वजह के उसको बेचारगी का जामा पहनाया जाएगा। यूं भी वहां पर अधिकतर लोग अपने बच्चों के बारे में ही बातें करते रहते थे हो सकता है मिनी को अपना आप सबसे अलग थलग लगता हो। कारण भले ही कुछ भी हो जहां मामी जी हो, वहां तो वह जाने के नाम से भी डरती थी।
पिछली बार मामी जी ने उसको बहुत कुछ सुना कर बेइज्जत भी किया था, मानो स्त्री जीवन का चरम लक्ष्य ही केवल यह है कि वह किसी बच्चे की मां बने। उसकी पढ़ाई उसकी बुद्धिमता क्या यह सब चीजें कुछ मायने नहीं रखतीं? खाली समय में उसके द्वारा ट्यूशन पढ़ाए गए बच्चे जब क्लास में प्रथम स्थान लाते थे और उसके पैर छूते थे, सब उसका कितना सम्मान करते थे, क्या इस बुद्धिमता का कोई मोल ना था?
समय सदा एक सा नहीं रहता, कुछ समय बाद मिनी को भी एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राघव ने बेटे होने की खुशी में बहुत अच्छी पार्टी का आयोजन किया था। वही लोग जो पहले कुछ भी बोलते थे अब बधाइयां दे रहे थे। मामी जी उस पार्टी में नहीं आईं थी।
तीन चार साल बाद नन्हा बेटा बंटी भी स्कूल में दाखिल होने जा रहा था तब मामी जी का घर में आना हुआ। आकर उन्होंने मिनी को बोला मुझे पता है मैंने तुम्हें बहुत कुछ बुरा भला बोला था, हालांकि तुम्हारे बेटे की खबर सुनकर मैंने सोचा भी ,कि मैंने तुम्हें बिना वजह इतना क्यों बोला? यह तुम्हारा निजी मामला था और सब परमात्मा की दया पर ही निर्भर होता है वगैरा-वगैरा। मिनी अब भी उसी शांत भाव से मामी जी की आवभगत में लग रही थी।
तब मामी जी ने मिनी के पास आकर बोला बेटा ,तुम्हें तो पता है कि मेरी बेटी की शादी को अब चौथा साल चल रहा है उसके भी अभी तक कोई बच्चे नहीं हुए तो मुए लोग जाने क्या कुछ बोलते हैं? तुमसे ज्यादा यह कौन समझ सकता है? मैं अब भी चुप थी ।
मामी जी ने आगे बोलते हुए कहा वह भले ही मेरी बेटी है लेकिन तुम भी उसे अपनी बहन समझना और तुम तो सब कुछ समझ ही सकती हो। मुझे तो सिर्फ यह बतला दो कि किस डॉक्टर से इलाज करवाने से तुम्हारे घर बेटा आया है। परमात्मा मेरी बेटी की भी सुन ले।
मिनी ने मामी जी के पैर छूते हुए कहा मामी जी मैंने कोई इलाज नहीं करवाया ।बस सब लोगों नेख जो भी उनके मन में आया मुझे वही बोला और जाने परमात्मा को किसका बोला हुआ इतना बुरा लगा कि मेरा आंचल भी भर गया। मुझे तो आपने क्या बोला ,
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यह भी याद नहीं ।उस वक्त मैं सुनने की हालत में थी ही कहां? बस जो भी कोई कुछ भी बोलते थे सिर्फ परमात्मा ही सुनता था। उसी की कृपा है और परमात्मा सब के ऊपर कृपा करें इसके लिए मैं भी प्रार्थना करूंगी।
ऐसा कहकर मिनी मामीजी के खाने का इंतजाम करने के लिए रसोई में चली गई। पाठकगण आपका इस विषय में क्या ख्याल है, समाज में प्रत्येक दिन किसी न किसी को इस समस्या से दो-चार होना ही पड़ता है। कमेंट करके जरूर बताएं। मधु वशिष्ठ फरीदाबाद हरियाणा