समर्पण – दिक्षा दिपेश बागदरे : Moral Stories in Hindi

मीठी की शादी एक समृद्ध परिवार में हुई थी। पति विवेक एक सरकारी महकमे में बड़े पद पर कार्यरत थे। मां और पिताजी दोनों ही बहुत सुलझे हुए विचारों के थे। 

मीठी आज बहुत खुश थी। आज उसकी पीएचडी कंप्लीट हो गई थी। अभी-अभी वह यह खुशखबरी मां को सुना कर घर (ससुराल) आई थी। 

यहां घर पहुंचते ही उसका भव्य स्वागत हुआ था। पीछे मुड़कर देखा तो मां भी आ चुकी थी। तब समझ आया कि क्यों मां ने फोन पर खुशखबरी सुनने के बाद भी बहुत जीद की कि मैं उनसे मिलने घर जाऊं। 

यहां ससुराल में मेरे भव्य स्वागत की तैयारी देखकर मैं समझ गई थी कि यह सब मां से उनके बेटे विवेक ने ही करवाया था। 

हां जी अब तो विवेक जी ही मां के बेटे हैं। मुझे तो उनसे जलन होने लगी है, क्योंकि मुझेैं लगता है कि अब मां मुझसे  भी ज्यादा विवेक जी से प्यार करती हैं। 

मैं घर जल्दी आकर विवेक जी और मां पिताजी को यह खुशखबरी सुनाना चाहती थी। फिर भी मां मुझे बार-बार किसी न किसी बहाने से 1 घंटे तक रोके रही।

यह सब देखकर मेरा मन बहुत खुश है कि मुझे मेरा पूरा “हक” मेरे ससुराल में भी मिला है। सच में बहुत नसीबों वाली हूं मैं।

विवेक जी ने शादी से पूर्व जो भी वचन और जितने भी “हक” देने के जो भी  वादे किए थे, वे सब निभाएं हैं।

मन अतीत की गलियों में पहुंच गया। जैसे कल ही की बात हो।  मीठी अतीत में खो गई।

 मीठी का पोस्ट ग्रेजुएशन होते ही विवेक जी के घर से रिश्ता आ गया था। 

मीठी आगे पढ़ाई कर कर कॉलेज में प्रोफेसर बनना चाहती थी। मीठी के पिताजी थे नहीं।  मां ने ही उसे पाल-पोस कर बड़ा किया था। 

मीठी जब मात्र 2 वर्ष की थी तभी एक रोड एक्सीडेंट में उसके पिताजी गुज़र गए थे।  तभी उसके दादा-दादी परिवार ने उसकी मां से सारे रिश्ते नाते तोड़कर उन्हें मायके भेज दिया था।

 मीठी की मां ज्यादा पढ़ी-लिखी तो नहीं थी पर सिलाई का काम बहुत अच्छा करती थी। 

 कहते हैं ना कि “हुनर तो भगवान का दिया वह तोहफा होता है जिसके लिए किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं होती।”

मायके में मां को नानाजी नानीजी एवं मामा जी का बहुत सहयोग था। कुछ समय तक तो सब कुछ ठीक चला। लेकिन मामा जी का ब्याह होते ही जैसे सब कुछ बदल गया। घर में माहौल कुछ इस तरह बदल गया की मां और मैं सबको बोझ लगने लगे।

 कहा जाता है ना कि बेटी का जन्म होते ही उसे पराया धन मान लिया जाता है। उसके ससुराल को ही उसका अपना घर कहा जाता है। मां को तो ससुराल में भी अपने घर का “हक” नहीं मिला। 

पिताजी के बाद मां को अपने मायके का ही आसरा था। वह भी अब छिन चुका था। मां तो कोई हक भी नहीं चाहती थी, वह तो केवल अपनापन चाहती थी। फिर भी न जाने क्यों ?? क्या ससुराल, क्या मायका कोई भी अपना ना हुआ।

अंततः 6 साल की मीठी को लेकर मां ने नाना जी का घर छोड़ एक कमरा किराए पर लेकर अलग रहना ही उचित समझा। मां ने दिन रात मेहनत कर मीठी को पढ़ाया लिखाया।

मां की सहेली थी मंजू मौसी। उन्होंने मां का शुरू से ही बहुत साथ दिया।

 मेरे लिए रिश्ता भी वही लाई थीं। उनकी जान पहचान के ही थे विवेक जी के परिवार वाले। उन्होंने मां से कहा- देखो सुषमा मीठी के लिए इससे बेहतर रिश्ता नहीं मिलेगा। 

तुम तो जानती हो बेटी का असली घर उसका ससुराल ही होता है। अच्छा ससुराल मिलना नसीबों की बात होती है। हाथ आया रिश्ता मत छोड़ो, झट से हां कर दो। उन लोगों को कुछ नहीं चाहिए बस एक अच्छे परिवार की अच्छी लड़की चाहते हैं वे।

मां कुछ असमंजस में थी, वे चाहती थी कि मैंने जो भविष्य के सपने देखे हैं वे पूरे हों। मैं अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊं फिर वे मेरा विवाह करें। 

अतीत में जो उनके साथ हुआ, वो नहीं चाहती थीं कि ऐसी कोई भी परिस्थिति मेरे जीवन में कभी भी आए। 

इसीलिए जब विवेक के घर वाले और विवेक मुझे देखने आए तो मां ने विवेक की माताजी से कहा, देखिए विनीता जी मेरे पास देने को कुछ नहीं है। आप तो जानती ही हैं कि मीठी के पिताजी उसके बचपन में ही गुजर गए थे। बहुत ही कठिन हालातो में मैंने मीठी को पाल पोसकर  बड़ा किया है। मीठी अभी आगे पढ़ना चाहती है, वह पीएचडी कर प्रोफेसर बनना चाहती है।

विनीता जी ने कहा हमें मीठी के आगे पढ़ने से कोई समस्या नहीं है। आगे की पढ़ाई वह शादी के बाद भी जारी रख सकती है। 

मां को विवेक जी और उसके परिवार वाले बहुत अच्छे एवं समझदार लगे।

 मां ने मुझे अकेले में ले जाकर समझाया कि बेटा पता नहीं मैं कितने दिन जिऊंगी और तुम तो जानती हो कि हम दोनों का एक दूसरे के अलावा कोई नहीं है। रिश्ता अच्छा है, अगर तुम्हारी हां हो तो मैं हां कर दूं।

 मां अतीत के काले साए से बहुत डरती थी। विवेक से बातचीत कर मुझे भी वे काफी समझदार लगे थे। मैंने मां से कहा मुझे विवेक जी से कुछ जरूरी बातें करनी है, अगर सब ठीक रहा तो मुझे कोई एतराज नहीं है।

 यह सुनकर मां थोड़ा घबरा गई। मैंने मां से कहा घबराओ मत बस थोड़ा सा भविष्य को लेकर ही चर्चा करनी है। 

मां ने बाहर आकर विनीता जी से कहा कि मुझे तो यह रिश्ता मंजूर है, पर एक बार मीठी विवेक जी से मिलना चाहती है। उन्होंने कोई एतराज नहीं जताया। कुछ ही समय में विवेक जी मेरे सामने थे। 

जी कहिए क्या कहना चाहती हैं आप ?

 मैंने एक गहरी सांस लेकर विवेक जी से कहा कि,  मैं यह शादी तभी करूंगी जब आप मुझे वचन दें कि “जब भी मेरी मां को मेरी जरूरत होगी आप मुझे उनका साथ देने से नहीं रोकेंगे। जितना “हक” आपका  एवं आपके परिवार का मुझ पर होगा उतना ही हक मेरी मां का भी मुझ पर होगा। जब तक वे जीवित हैं उनके हर सुख दुख में मैं उनके साथ रहना चाहती हूं।”

 अगर आपको इससे कोई एतराज ना हो तो मुझे यह रिश्ता मंजूर है। मैं यह वचन देती हूं कि मैं आपका और आपके परिवार का हर सुख-दुख  में साथ दूंगी। कभी अकेला नहीं छोडूंगी।

 क्या आप भी मुझे यह वचन देते हैं???

 मुझे आपकी धन संपत्ति किसी पर कोई अधिकार, हक नहीं चाहिए। मैं तन मन धन से पूर्ण समर्पण करूंगी। केवल आप मुझे मेरी मां की सेवा करने का “हक” दे दें। 

आगे बढ़कर विवेक जी ने मेरा हाथ थामा.. मेरी धड़कने बहुत तेज हो गई और उन्होंने कहा – “मैं वचन देता हूं कि आज से तुम्हारी मां को मैं अपनी मां की तरह ही मानूंगा। उनके हर सुख दुख में उनके साथ रहूंगा और भविष्य में कभी भी तुम्हें उनकी सेवा करने से, सुख-दुख में उनका साथ देने से नहीं रोकूंगा। तुम्हें पूरा हक है कि तुम जीवन पर्यंत अपनी मां का साथ दो।”

 “धन्य है वह मां जिसने ऐसी बेटी को जन्म दिया।”

विवेक जी और मीठी का रिश्ता तय हो गया।

कुछ ही दिनों में मीठी विवेक जी की दुल्हन बन उनके घर में आ गई। 

तभी अचानक मेरी तंद्रा टूटी, विवेक जी की आवाज थी चलो मीठी सब इंतजार कर रहे हैं और मैं उनका हाथ थामे आगे बढ़ चली।

स्वरचित 

 दिक्षा दिपेश बागदरे 

#हक

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!