समझदारी से स्नेह की बुनाई – सीमा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

इस छोकरी को कितना समझाया कि इन किताबों को छोड़। थोड़ा घर का काम धंधा सीख। पर कोई अच्छी बात पल्ले पड़े तब ना।‌ और जुबान तो कैंची की तरह चले है इसकी। न छोटे का पता है, न बड़े का।‌ मेरे को पहले ही पता था कि सासरे में ये पक्का नाक कटवाएगी।‌ पता नहीं मेरा लाल… बेचारा समधियाने में क्या-क्या सुन रहा होगा?

72 वर्षीय शामली देवी बैठी-बैठी आज सुबह से ये सब अपनी पोती पूजा के लिए बड़बड़ा रही हैं, जब से उनके पुत्र सोहन लाल अपनी बेटी पूजा को लिवाने उसके ससुराल गए हैं। दरअसल, उनकी दूसरे नंबर की पोती पूजा का विवाह दो महीने पहले ही हुआ है। विवाह के बाद वह पहली बार अपने मायके रहने के लिए आ रही है।

शामली देवी जी, उनकी सबसे बड़ी पोती जो कल ही अपने मायके आई है, दोनों छोटी पोतियां और शामली देवी जी की बहू, जिनकी ये चार बेटियां हैं, सारे मिलकर पूजा का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। 

थोड़ी ही देर में सोहन लाल और पूजा अपने दोनों हाथों में पहियों वाले सूटकेस लिए घर में प्रवेश करते हैं। चार सूटकेस देखते ही शामली देवी जी की प्रतिक्रिया देखते ही बनती है, “जिसका डर था वही हुआ ना! जब इस पूजा को कोई काम आता ही नहीं तो सासरे में कौन रखेगा इसे। ऊपर से उल्टा-सीधा और बोल दिया होगा इसने अपनी सासू और दादस को, जैसे यहां मेरे को बोले थी। भेज दिया न इसे वापस।”

ऐसा सुनते ही सोहन लाल जी और पूजा हंसने लगते हैं तो उन्हें देखकर बाकी सब की भी जान में जान आ जाती है, क्योंकि दादी के ऐसा कहने से थोड़ी सी आशंका तो सबको होने लगी थी कि पूजा इतना सामान क्यों लाई है!

सभी दौड़कर पूजा को गले लगाते हैं लेकिन पूजा जल्दी से शामली देवी जी की ओर बढ़कर उनके गले में बाहें डाल कर कहती है, “मेरी प्यारी दादी मां, मैं यहां हमेशा के लिए तो नहीं, पर एक महीने के लिए जरूर आई हूं, अपनी परीक्षाएं देने। मैंने वहां कोई लड़ाई नहीं की। आपसे भी नहीं लडूंगी,अगर आप मेरी सासू मां जैसी बन जाएंगी।”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

“ हां… मुझे कोई शिकायत नहीं है” – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

“अरे, कैसी है तेरी सासू मां? और उसने तेरे को ब्याह के बाद परीक्षा देने भेजा है!!” शामली देवी जी को करंट सा लगा। सिर्फ वही नहीं, बल्कि सभी जानने को उत्सुक हो गए। सबने पूजा को घेर लिया। सिवाय पूजा की मम्मी के। वे अपनी सास शामली देवी जी से आज भी डरती हैं। उनका एक पैर किचन में तो दूसरा पैर बाहर सबको चाय-नाश्ता देने में है। 

शामली देवी जी जब अपनी बहू पर रौब झाड़ती तो सब चुप रहते लेकिन पूजा अपनी मां के पक्ष में, दादी मां को जवाब दिए बिना नहीं रहती थी। इसलिए आज दादी के साथ पूजा के प्यार भरे बर्ताव से सभी हैरान हैं। 

खैर पूजा ससुराल का वर्णन शुरू करती है। जब मैं ससुराल पहुंची तो पहले ही दिन, मैंने अपनी दादी सास जी को हमारी दादी मां से भी ज्यादा कड़क और सख्त पाया। वे मम्मी को डांट रही थीं, “बड़ी बहू,‌ पहले ही दिन से छोटी बहू को कायदा कानून सिखा। आजकल की इन चार अक्षर पढ़ी हुई बहुओं को फैशन और चेहरे की लीपापोती के अलावा कुछ नहीं आता है।” सुनकर मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था। पर इतने सारे मेहमानों के चलते मैं चुप रही।

फिर थोड़ी देर में दादी सास जी ने कड़क आवाज में मम्मी को फ़रमान सुनाया, “बड़ी बहू, बता दे पतोहू को कि कल इसका इम्तिहान है रसोई में। सुबह जल्दी उठकर स्नान करके इसे ही सूजी हलवा बनाना है……..।‌”

आगे का सुने बिना ही मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। पहली बार मुझे लगा कि रसोई के थोड़े काम भी मुझे सीखने चाहिए थें। 

तभी मम्मी मेरे पास आईं और प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं, “पूजा बेटे, मैं सब समझ रही हूं जो भी तुम अनुभव कर रही हो। मैं तुम्हारी मां हूं बिल्कुल वैसे ही जैसे तुम्हारे पति हितेश की। और अपनी मां के सामने किसी भी बात की क्या झिझक! मैं हूं ना। कल की चिंता मत करो और तुम बिल्कुल आराम से रहो।”

अगली सुबह जब मम्मी मुझे बुलाने आईं तो मैं मोबाइल में व्यस्त थी। मम्मी मुझे देखकर मुस्कुराईं और मुझे किचन में ले गईं। वहां मम्मी ने हलवे की सब सामग्री पहले से ही तैयार रखी थी। फिर मम्मी ने मुझसे पूछा, “बताओ तुमने मोबाइल में क्या देखा कि इनके अलावा हलवे की रेसिपी में और क्या डालना चाहिए?”

मैंने हैरानी से कहा, “थोड़ा सा मल्टीग्रेन आटा और थोड़ी मलाई। लेकिन मम्मा, आपको कैसे पता चला कि मैं मोबाइल में रेसिपी देख रही थी?”

मम्मी ने कहा, “जब तुम मुझे इतने प्यार से मम्मा कह रही हो, तो मम्मा अपने बच्चे को नहीं समझेगी तो और कौन समझेगा?” 

फिर मम्मी ने मुझसे बीच-बीच में कोंचा चलवाया। असल में तो हलवा मम्मी ने ही बनाया। सबने हलवे की खूब जमकर तारीफ की। 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मेरी बेटियों तनाव का नहीं खुशी का कारण है – अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi

दादी सास जी तो बहुत ही खुश हुईं, “मेरी बहू तो 80 नंबर लाती थी। ये पौत्रवधू तो सौ नंबर से पास हो गई। अब तो इसे मुंहमांगा ईनाम दूंगी।” 

मम्मी सबको यही कहती रहीं, “न जाने पूजा ने हलवे में क्या डाला है? मैं भी इससे सीखूंगी।” मेरा मन मम्मी के लिए सम्मान और कृतज्ञता से भर गया।

अगले दिन दादी सास जी ने कहा, “छोटी बहू, कल हलवे की तारीफ की थी तो ज्यादा इतराने की जरूरत नहीं है। तब मानेंगे तुझे जब रोज़ बढ़िया खाना बनाकर खिलाएगी। चल, आज कड़ी चावल बना। फिर आकर मेरे पैर दबाना।”

मेरी हालत देख मम्मी ने मुझसे कहा, “पूजा बेटे, ब्याज तो मूल से भी प्यारा होता है। दादी जी तुम पर वैसे ही अपना अधिकार समझती हैं जैसे हितेश पर। और अधिकार तो अपनों पर ही जताया जाता है ना। इसलिए उनकी डांट में ही उनका प्यार छिपा होता है।अच्छा चल बेटा, अब कड़ी की भी रेसिपी देख मोबाइल में।” 

और इस तरह बस एक-दो एक्स्ट्रा इंग्रेडिएंट्स मेरे हाथ से डलवा लेती हैं मम्मी। असल में तो हर बार मम्मी ही खाना बनाती हैं! और मुझे बस दादी सास जी को परोसने के लिए कहती हैं। सभी खाने की तारीफ करते नहीं अघाते हैं। मम्मी ने सबकी नजरों में मुझे मास्टरशेफ बना दिया है।

एक दिन मैंने मम्मी से कहा, “मम्मा, दो महीने बाद मेरी M.Com सेकंड ईयर की परीक्षाएं हैं। मेरी इच्छा थी कि शादी उसी के बाद हो। पर क्योंकि हम चार बहनें हैं तो मेरी दादी मां को हमेशा हमारी शादियों की चिंता रहती है। इसलिए मुझे अभी शादी के लिए मानना पड़ा।”

मम्मी ने तपाक से कहा, “तो क्या हुआ! अब भी तुम परीक्षा दोगी। तुम अपने कमरे में बैठकर पढ़ाई किया करना। तुम्हें बस ये करना है कि तीनों समय अपनी दादी सास जी को ध्यान से खाना परोसना है और लंच के बाद केवल 10 मिनट के लिए उनके पैर दबाना है। ऊपर से चाहे वे कुछ भी कहें लेकिन उनका मन तुम्हें ढेरों आशीर्वाद देगा। बाकी सब मैं संभाल लूंगी।”

पर एक दिन क्या हुआ कि दादी सास जी के पूछने पर छोटी बहू कहां है तो महरी ने बता दिया कि वह तो अपने कमरे में बैठकर पढ़ाई कर रही है। तब दादी सास जी ने गुस्से से सारा घर सिर पर उठा लिया। मम्मी ने बात को संभाला, “मां जी, आजकल हितेश को काम बहुत अधिक रहता है ना तो वह बहू को दुकान के बही-खाते का हिसाब करने को दे जाता है। वही करती रहती है बहू।”

फिर एक दिन पापाजी ने आकर दादी सास जी से कह दिया, “मां जी, हमारी छोटी बहू बहुत भाग्यशाली है। इसके आने से हमारे व्यापार में मुनाफा बढ़ गया है।”

तभी हितेश भी बोले, “और दादी जी, पूजा की एक परीक्षा रहती है। अगर पूजा मायके जाकर वह दे देगी तो व्यापार का सारा हिसाब संभाल सकती है और फिर हमारे व्यापार में बहुत उन्नति होगी।”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

जीवन संघर्ष ही तो है – पूजा शर्मा  : Moral stories in hindi

दादी सास जी बहुत खुश हुईं, “अच्छा फिर तो छोटी बहू की पढ़ाई का बहुत फायदा है। कुछ भी कहो, बहू है तो गुणवती। सारे काम जानती है। मैं भी अब इसे गुस्सा न करूंगी। बड़ी बहू, परीक्षा के लिए छोटी बहू को मायके भेजने की तैयारी कर।”

“जी, मां जी!” कहते हुए मम्मी मेरी ओर देखकर मुस्कुरा दीं क्योंकि ये सब उन्हीं की तो योजना थी।

ससुराल की यह सब बातें सुनाकर पूजा फिर शामली देवी जी और अपनी बहनों से बोली, “और आ गई अब मैं परीक्षा देने। क्यों दादी मां, अब तो विश्वास हो गया न कि मैंने ससुराल में आपकी नाक नहीं कटवाई‌ है!”

दादी मां, शामली देवी, पूजा को मीठी झिड़की देते हुए बोली, “वो तो तेरी सासू बहुत समझने वाली है। वरना तू तो बहुत लड़ाकू है।”

पूजा बोली, “दादी मां, अब मैं लड़ाकू नहीं हूं। मेरी सास मां बिना कहे ही मेरी हर बात समझ जाती हैं। उन्हीं से मैंने सीखा है कि प्यार से कैसे सबको अपना बनाया जा सकता है। परीक्षा के बाद मैं भी गृहस्थी की पूरी जिम्मेदारी संभाल, उन्हें आराम दूंगी।”

पूजा की तीनों बहनें एक साथ बोलीं, “#काश ऐसे समझने वाली सास हर घर में हों।”

तभी पूजा बोली, “काश हमारी दादी मां भी हमारी मम्मी के लिए ऐसी ही समझने वाली सास हों।”

शामली देवी जी ने तुरंत रसोई की‌‌ ओर जाकर आवाज लगाई, “बहू, कितनी देर रसोई में खड़ी रहेगी। अपना ध्यान रखा कर। चल, आजा बाहर। आज से सब एक साथ बैठकर खाना खाएंगे।”

अब शामली देवी जी की चारों पोतियां एक साथ खिलखिला दीं, “हमारी दादी मां भी समझने वाली सास बन गई हैं।”

– सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)

प्रतियोगिता वाक्य: #काश ऐसे समझने वाली सास हर घर में हों।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!