पिछले अंक ( 08 ) का अन्तिम पैराग्राफ •••••••••
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एकलव्य के होंठों पर एक फीकी मुस्कराहट तैर गई – ” यह तो एक दिन होना ही था सिम्मी। तुम्हें तो कुछ पता नहीं था, तुम तो एक अपराधी का पीछा कर रही थीं। जबकि मुझे तो शुरू से सब पता था और मैं तुम्हारे साथ विश्वासघात करके लगातार यह भयानक खेल खेलता आ रहा था। मैंने जानबूझ तुम पर लगातार गोलियां चलाई हैं। जो गोलियां मुझे लगी हैं, तुम्हें भी लग सकती थीं लेकिन शायद ईश्वर यही चाहता है कि यह घिनौना खेल अब समाप्त हो जाये।”
अब आगे •••••••••••••
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” ऐसा मत कहो ओम, हमने बहुत बचपन से एक दूसरे को प्यार किया है।”
” हॉ, लेकिन दौलत की चकाचौंध ने मेरी ऑखों को इस तरह अंधा कर दिया था कि मैंने अपने प्यार को धोखा दे दिया। कितना प्यार करती थीं तुम मुझे लेकिन मै तुमसे जानकारी लेकर सरफरोश गिरोह को दे दिया करता था लेकिन इस बार •••••• तुम यहॉ कैसे आ गईं।”
” मुझे तुम पर तो नहीं लेकिन यह समझ में आ गया कि तुम्हारे माध्यम से पुलिस की गतिविधियों की सूचना इस गिरोह की मिल जाती है। इसलिये इस छापे के बारे में मैंने तुम्हें कुछ नहीं बताया था लेकिन क्या जानती थी कि यह सब हो जायेगा लेकिन तुम चिन्ता मत करो, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूॅगी।” एकलव्य की हालत देखकर समाधि का कलेजा जैसे टुकड़े टुकड़े हुआ जा रहा था।
एकलव्य ने उसका हाथ पकड़ लिया – ” अब कोई फायदा नहीं। पहले मेरी बात सुन लो, वरना शायद मैं सब कुछ सीने मे लिये हुये ही चला जाऊॅगा, मेरे पास अधिक समय नहीं है।”
एकलव्य ने अटकती सॉसों में बताया कि सीनियर एडवोकेट राहुल के साथ काम करते हुये उसे पता चला कि उनके ठाट – बाट और खर्चे उनकी आमदनी से बहुत ज्यादा हैं।
जब एकलव्य ने उनसे पूॅछा – ” सर, इतनी जल्दी आपने इतनी सफलता कैसे प्राप्त कर ली? जहॉ तक प्रैक्टिस की बात है तो आपके पास ज्यादा मुकदमें भी नहीं आते हैं।”
राहुल ठहाका लगाकर हॅस पड़े – ” एकलव्य, यह एक राज है। बस, इतना समझ लो कि यह सब इतनी जल्दी केवल कोर्ट और मुकदमों से नहीं मिल पाता है। इसे पाने के लिये बहुत कुछ करना पड़ता है और वह सब करने के लिये बहुत हिम्मत के साथ खतरे उठाने पड़ते हैं। तभी कामयाबी मिलती है।”
” सर, मुझे भी बताइये। मैं भी आपकी तरह कामयाब बनना चाहता हूॅ।”
” नहीं, तुम्हारे बस का यह सब नहीं है।”
एकलव्य बार बार आग्रह करता रहा और राहुल टालते रहे। अचानक राहुल को समाधि और उसकी लखनऊ पोस्टिंग के बारे में पता चला तो चालाकी से उन्होंने एकलव्य को अपना राजदार बना लिया क्योंकि उसके गिरोह का कार्य क्षेत्र लखनऊ और उसके आसपास ही था।
सुनकर अवाक रह गया एकलव्य – ” नहीं सर, मैं अपनी सिम्मी को धोखा नहीं दे सकता। बचपन से हम एक दूसरे को प्यार करते हैं।”.
” मैं वादा करता हूॅ कि जब तक तुम्हारी सिम्मी लखनऊ में है और इस गिरोह से सम्बंधित है तभी तक इस काम में तुम्हें अपने साथ रखूॅगा। उसके बाद तुम स्वतन्त्र हो जाओगे लेकिन इतने दिनों में ही तुम्हारे पास इतना पैसा हो जायेगा कि जितना तुम पचीस तीस साल वकालत करके नहीं कमा पाओगे।”
” फिर भी सर, यह गलत है। यह गिरोह बहुत अवैध और खतरनाक काम करता है। मैं उनके साथ शामिल नहीं हो सकता हूॅ।”
” तुम्हें अधिक खतरनाक काम दिये ही नहीं जायेंगे। तुम्हें केवल सिम्मी से प्राप्त सूचना हमें देनी है और सूचनाओं के लेन देन का काम करना है। किसी भी मीटिंग में मैं तुम्हारे साथ रहूॅगा।” राहुल ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया।
” घबराओ नहीं, कुछ नहीं होगा। किसी को पता भी नहीं चलेगा कि तुम्हारे पास इतना पैसा आया कहॉ से?”
” नहीं सर, मुझसे नहीं हो पायेगा। मैं सिम्मी और मम्मी -पापा को धोखा नहीं दे सकता।”
राहुल ने एकलव्य के कंधे से हाथ हटा लिया और गंभीर होकर तिरस्कार भरे स्वर में कहा – ” तो फिर भूल जाओ दौलत को और ज़िन्दगी भर गुलामी करो अपनी बीबी की क्योंकि तुममे कुछ करने की क्षमता तो है नहीं। अभी तुम्हें आदर्श और प्रेम नजर आ रहा है लेकिन जब जेब में पैसे नहीं रहते हैं तो कोई सम्मान नहीं करता है। आज के समय में पैसे की ही पूजा होती है, कोई नहीं पूंछता कि यह आया किस रास्ते से है। “
एकलव्य को असमंजस में देखकर राहुल ने उसे गहरी नजरों से देखकर कहा- ” तुम्हें क्या लगता है कि आई०ए० एस० अधिकारी बनने के बाद समाधि तुमसे शादी करेगी? कभी नहीं और उसके निर्णय में उसके माता-पिता के साथ तुम्हारे माता-पिता भी साथ देंगे।”
एकलव्य जानता था कि अनन्त और मौली अपने बेटे से अधिक समाधि को प्यार करते हैं।
अब अधिक पैसे कमाकर बहुत जल्दी लखपति और अरबपति बनने के चक्कर में वो और उसके सीनियर राहुल पर्दे के पीछे रहकर अपराधी गिरोह सरफरोश और आतंकवादियों के बीच बिचौलिये का कार्य कर रहे है।
ढाबे के स्टोर रूम के बाहर से जब समाधि का स्वर सुनाई दिया तो एकलव्य सन्न रह गया – ” सिम्मी यहॉ कैसे?”
” सब कुछ भूल जाओ, इस समय वह तुम्हारी सिम्मी नहीं, पुलिस इंस्पेक्टर समाधि है। हमें हर हालत में अपने आप को बचाना है। हमें आत्मसमर्पण नहीं करना है। या तो मारना है या मर जाना है। आगे बढकर गोली चलाओ। इस राह आगे बढ़ कर अब वापस नहीं लौट सकते हो तुम। सारे रिश्ते तो तुमने उसी दिन जला दिया थे जब सरफरोश के सदस्य बने थे। “
इस समय एकलव्य का मस्तिष्क शून्य हो गया। केवल इतना याद रहा कि स्वयं को सुरक्षित रखने के लिये कुछ भी करना है। इस समय पुलिस का सामना करना ही एकमात्र उद्देश्य है। राहुल और अपने तीन साथियों के साथ वह भी पुलिस टीम पर अंधाधुंध गोलियां चलाने लगा लेकिन जैसे ही दो साथी घायल होकर गिरे राहुल ने कहा कि वे तीनों पुलिस टीम पर गोलियॉ चलाते हुये ढाबे के पीछे खड़ी कर्मचारियों की मोटरसाइकिल लेकर वहॉ से भाग जायेंगे।
जब तक पुलिस टीम उनका पीछा करने के लिये आयेगी, वे सब गॉव के किसी घर में जाकर छुप जायेंगे और मौका देखकर वहॉ से भाग जायेंगे।
दरवाजा खोलते ही जब तक वे तीनों आगे बढ़ते तब तक अपने साथियों को घायल और मृत देखकर समाधि ने राहुल और उसके एक साथी को गोली मार दी। एकलव्य भागकर कमरे में रखे ड्रम के पीछे छुप गया।
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समाधि (भाग-10) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर