भानू प्रताप सिंह के घर से लेकर बाहर मोहल्ले तक फूलों से सजावट हो रही थी। जगह – जगह फूलों के दरवाज़े बने थे और भानु प्रताप सिंह जिंदाबाद लिखा था। बैंड वाले स्वागत धुन बजा रहे थे। पूरा मोहल्ला ठसाठस लोगों की भीड़ से भरा हुआ था। मोहल्ले के बाहर भी बहुत लोग जमा थे। ऐसा लगता था जैसे पूरा शहर इकठ्ठा हो गया हो। हर कोई भानू प्रताप सिंह की एक झलक पाना चाहता था।
सब बेसब्री से 11 बजने का इंतजार कर रहे थे। क्यों कि भानू प्रताप सिंह को 11 बजे आना था और अभी 11 बजने में 5 मिनट बाकी थे।
तभी दूर से थल सेना के बैंड की आवाज़ सुनाई देती है। सब सजग हो जाते हैं और हाथ में फूल माला और फूल लेकर खड़े हो जाते हैं और साथ ही जय घोष करने लगते हैं——-
जब तक सूरज चांद रहेगा , भानू तेरा नाम रहेगा।
जब तक सूरज चांद रहेगा , भानू तेरा नाम रहेगा।
भानू प्रताप सिंह की जय।
भानू प्रताप सिंह की जय।
थल सेना की गाड़ी धीरे – धीरे आगे बढ़ रही है। उसके आगे और पीछे कारों का काफिला है और भानू प्रताप सिंह …..?
भानू प्रताप सिंह थल सेना की गाड़ी में तिरंगे में लिपटे हुए हैं और दोनों तरफ से उन पर फूलों की बारिश हो रही है। सारा कारवां भानु प्रताप सिंह के घर के बाहर जा कर रुक जाता है और उनके पार्थिव शरीर को उनके घर वालों के सुपुर्द कर दिया जाता है।
भानू प्रताप सिंह घर के इकलौते चिराग, अभी एक महीने पहले ही उनकी शादी हुई थी। उनकी पत्नी विजया तो उनके वीरगति को प्राप्त होने की खबर सुनकर बेसुध हो गई थी। ना कुछ बोली , ना रोई ना चीखी – चिल्लाई। बस एक जगह बैठी रही। जैसे कोई प्रतिमा हो। उनके पार्थिव शरीर के आते ही घर में हाहाकार मच गया। मां भानू – भानू कर के रोने लगीं। लेकिन विजया ? विजया ने तो कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी। वैसे ही चुपचाप मूर्ति बनी बैठी रही।
आस पड़ोस की महिलाओं ने उसको झंझोड़ा ,” विजया – विजया ………।”
“………।” विजया हिली भी नहीं।
महिलाओं ने उसकी चूड़ी तोड़ी , बिंदी हटाई लेकिन तब भी उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। अब सब विज्या को रुलाने की कोशिश में लग गए। विजया की कुछ हम – उम्र महिलाएं विजया को उसके कमरे में ले गईं।
वहां पर उन्होंने उसको शादी की फोटोग्राफ्स दिखाई और सीडी दिखाई। सीडी में विदाई के समय अपने को भानु के साथ खड़ा देखकर और खुद को रोते हुए देख कर उसकी कुछ चेतना लौटी। ये देख कर उसके पास बैठी महिलाओं में से एक ने कहा,
” भानू आया है , बाहर तुम्हारा इंतजार कर रहा है।”
इतना सुनना था कि विजया उठ कर बाहर दौड़ी। बाहर भानू के पार्थिव शरीर को देख कर उस से लिपट गई और पागलों की तरह उसको उठाने लगी।
” भानू उठो ! उठो ना भानू ! कितना सोओगे ? देखो कब से इंतजार कर रही हूं, मैं तुम्हारा। अभी तो हमने एक – दूसरे से बात भी नहीं की है। तुम तो विदा कर के घर लाने के बाद ड्यूटी पर चले गए और अब आए हो तो बस सोए जा रहे हो। उठो ना भानू ।”
भानू प्रताप सिंह शादी के लिए दो महीने की छुट्टी पर घर आए थे, उनकी शादी तो हो गई लेकिन जब बिजया को विदा करा कर घर पहुंचे, तभी उनके पास ड्यूटी जॉइन करने का कॉल आ गया। उनकी एक महीने की छुट्टी रद्ध कर दी गई थी और उनको तुरन्त कारगिल पहुंचना था क्यों कि पाकिस्तानी सेना और कश्मीरी उग्रवादियों ने कारगिल पर कब्जा कर लिया था।
भानू प्रताप सिंह अपनी पत्नी विजया से बोले, ” चिंता नहीं करना । जल्दी ही फतह हासिल करके तुम्हारे पास लौटूंगा । मन तो नहीं का रहा तुम को इस तरह से छोड़कर जाने का लेकिन जाना तो पड़ेगा ही । तुमने एक फौजी से शादी की है और फौजी के लिए सबसे पहले देश है , उसके बाद कुछ और।” इतना कह कर भानू सबसे विदा के कर चले गए।
विजया हक्की – बक्की खड़ी थी। अभी तो उसने अपने पति को जी भरकर देखा भी नहीं था। दो पल पास बैठ कर बात भी नहीं की थी। बस एक – दो बार फोन पर बात हुई थी।
उसी दिन से विजया भानू के लौटने का इंतजार कर रही थी और आज वो दिन भी आ गया जब भानू लौट आया है लेकिन चिरनिद्रा में लीन है।
“भानू – भानू” विजया जोर – ज़ोर से पुकार रही है और भानू को झंझोड रही है। तभी उसकी सासू मां आकर उसको उठाती हैं और बोलती है, ” बेटी ! अब भानू कभी नहीं उठेगा । बहुत थक गया है ।
आओ हम सब उसे सोने दें।”
#रक्षा
अनिता गुप्ता